लेखिका : ममता सिंह राठौर
राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद
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जी मैं। बात कर रही हूँ भरोसे की!
भरोसा रखना चाहिए बिल्कुल अपने दिल के पास यह आप को हौसला भी देगा और हिम्मत भी, यह बात मैं अपने अनुभव से कह रही हूँ, आज से लगभग एकवर्ष पूर्व यानी 20, 20 की दिवाली आने से कुछ दिन पहले मेरा चश्मा टूट गया, वह टूटता रहता है 6, 8, महीने में कभी भूल कर कही रख दिया, फिर अपने लेंस देकर फ्रेम पसन्द कर के दे दिया चार दिन बाद आया चश्मा। तो कुछ कम समझ में। आये। तो लगा कि कहीं मेरे लेन्स तो न बदल गए चश्मे वाले भैया से, पर साथ आठ दिन में फ्रेम फिर चिटक गया तो फोन किया चश्में वाले को, तो कहने लगा कोई नही मैं आप को दूसरा चश्मा दूँगा। हमारे फ्रेम में ही दिक्कत है।
चलो तसल्ली हुई कि जल्दी नहीं टूटा, इस बार जब चश्मा बन कर आया तो कुछ भी न दिखे अब चिंता बढ़ी की कही नम्बर तो नहीं बढ़ गया। यह सोच कर आँखों के डाक्टर के यहां पहुँची। तो डॉक्टर ने आँखे चेककर। पूछा कि कोई दवा ले रहीं है, तो हमने बताया है जी, टीवी तो डॉक्टर ने कहा इस दवा का ही साइड इफ़ेक्ट है, आपकी आँखों की रोशनी कम हो गयी। इतनी कम की हमसे चश्मे के लिए जो अक्षर पढ़वाते है उसमें सिर्फ पहला अक्षर भी हल्का हल्का समझ आ रहा था। डॉक्टर ने कहा कि रोशनी आ जाती है पर कब तक यह नहीं कह सकते, मेरे लिए। यह बहुत दुःखद, कष्टकारी यह सोच करकी लिखूं पढूं कैसे, पर जिंदगी अब ऐसे ही चलनी थी, जो भी कोई कुछ बताता करती बहुत से डॉक्टरों को दिखाया पर सभी क एक ही जवाब की कह नहीं सकते कि रोशनी आएंगी य नहीं।
और आयेगी भी तो कितनी। इसका दुनिया में कोई इलाज़ भी नही है यह सब सुन कर। मन दुःखी तो बहुत होता। पर मैं सोचती ठीक हो जाऊँगी दिवाली हो गयी फिर दिसम्बर में मेरे घर। भतीजे की शादी थी घर में यह बच्चों की शादियों की शुरुआत, पहली शादी बहुत धूमधाम पर हमें तो कुछ दिखे ही ना बहुत बेचैनी अंदर ही अंदर होती थी कानपुर में भी आँखे दिखाई तो डॉक्टर ने कहा कि दवा बन्द कर दो 6,7 महीने दवा खा ली थी, फिर वापस गाजियाबाद आ गयी, हर महीने डॉक्टर के यहाँ जाती और डॉक्टर का वही पुराना जवाब होता, पर। मेरे लिखने की बेचैनी रुला देती दिन कट रहे थे, हमने भी इसी रोशनी में सादे सफेद कॉपी पे काले, लाल मारकर से, स्यामपट्ट पे लिखने जैसा लिखने लगी।
जो लिखा वो कुछ लाइने :
आप को अपने ह्रदय में हम हर पल निहारते हैं
मेरे प्रश्नों के जवाब आप ही जानते हैं
बुराई भी आप से है, भलाई भी आप से है
जगत की सारी रोशनाई आप से है
यह भरोसा था मेरा ख़ुद पे और ईश्वर पे की मैं लिख रही थी पर टाइप नहीं कर पाती थी। 2020 अक्टूबर के बाद शायद इस 20, 21 नवम्बर में मैं पोस्ट डाल पायी क्योंकि मेरा भरोसा मुझ पर भरोसा करने लगा।
इस दौरान जगत की बहुत सारी बातें जिन्हें मैं महसूस कर पायी, वो भी अपने आप न भूलने वाले अनुभवो ने बहुत कुछ सिखाय।
खैर! अच्छी, सच्ची और भरोसे की बात पर ही बात है कि मेरे एक मित्र, भाई डॉक्टर राहुल शुक्ल जी है जिन्हें मैं सदैव आशीर्वाद देती हूँ। उन्हें जैसे ही पता चला बहुत कोशिश की मेरी आँखों की रोशनी के लिए और भी बहुत लोग है जिन्होंने हिम्मत, हौसला और बिल्कुल चिंता न करने को कह कर मेरी चिंता ले ली
मैं आज आभार नहीं प्रकट करुँगी, क्योंकि वो मेरे अपने है, अपने ऐसे ही होते हैं, मेरा "भरोसा" हौसला है जिंदगी का...!!