व्यंग्य : चैन की नींद

www.daylife.page

आजकल बड़ी अनिश्चय की स्थिति है हमारी। वैसे ही जैसे कृषि कानून वापिस लें तो जिन्होंने नए कानूनों के भरोसे राजमार्गों के साथ-साथ बड़े बड़े गोदाम बना लिए उन्हें क्या ज़वाब दें। वापिस न लें तो किसान नाराज़। नेताजी द्वारा सुधरने की चेतावनी देने के बाद भी न सुधरने वाले किसानों को समझाने वाली संवैधानिक स्वचालित जीप का उपयोग करें तो मानवाधिकार वाले चीं-चीं करने लग जाते हैं। दुनिया के इन सिरफिरे लोगों को कैसे समझाएं। 

लेकिन हमारे इस अनिश्चय का कारण न तो राजनीतिक है और न ही आर्थिक। कारण है मौसम जो सरकारों और नेताओं से भी ज्यादा बेईमान होता है। साफ़-साफ़ 'गोली मारो सालों को..' जैसा घातक स्टेटमेंट देकर भी पलट जाता है। शाम को हलकी गरमी, आधी रात के बाद ठण्ड, पंखा चलाना खतरनाक। इन सबके बीच राजस्थान में चल रहा डेंगू का डर। इसी संघर्ष में ढंग से नींद नहीं आई। बरामदे में बैठने का मन नहीं हुआ। सिर में भी हल्का-हल्का दर्द। सिर पर सफ़ेद गमछा बांधे लेटे थे कि तोताराम ने कमरे में घुसते ही प्रश्न फेंका- किसलिए सिर पर कफ़न बाँध रखा है?

हमने कहा- यह 'सबके साथ और सबके विकास' का मरणान्तक काल है। ऐसी स्थिति में कफ़न नहीं तो क्या सेहरा बांधें ? गीता में कृष्ण के सन्देश- हतो व प्राप्यससे स्वर्गम् जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम् वाली 'विन-विन' सिचुएशन है। जियेंगे तो विकास का आनंद लेंगे और मर गए तो ऊपर जाकर स्वर्ग का मज़ा लेंगे। 

बोला- तुझे ही क्या आफत आ रही है ? रसोई गैस के दाम तो सबके लिए समान भाव से बढ़ रहे हैं। खुश हो कि देश 100 करोड़ टीकों का उत्सव मना रहा है।साफ़-साफ़ बता चक्कर क्या है ? 

हमने कहा- रात को ठीक से नींद नहीं आई।

बोला- तेरी सोच में ही खोट है। अन्यथा सुना है मोदी जी को लेटते ही दो मिनट में नींद आ जाती है। यही हाल गाँधी जी का भी था। 

हमने कहा- न तो मोदी जी के कमरे के पास दिन-रात कुत्ते भौंकते हैं और न ही जब-तब टूटी सड़क की छाती कूटते बजरी और पत्थरों के ट्रेक्टर गुजरते हैं। फिर यह भी चिंता नहीं कि कोई बाहर सूखते कपड़े या जूते उठा ले जाएगा। या यह कि यदि समय पर नहीं पहुंचे तो दूधवाला दूध में पानी मिला देगा। अन्य पारिवारिक किचर-किचर भी नहीं। मोर तक को दाना देने वाले नियुक्त होंगे। न ही पद, पे और सुविधाओं को कोई खतरा क्योंकि उनका कोई विकल्प ही नहीं है। यही हाल गाँधी जी का था।उनका भी कोई विकल्प नहीं था। कौन आता अंग्रेजों की लाठियां खाने। चतुर लोग तो धार्मिक संगठन बनाकर या माफ़ी मांगकर एक निश्चित भत्ता प्राप्त कर रहे थे।

हमारे पास न तो घोड़े हैं जिन्हें बेचकर सो सकें, न कोई चैन की बांसुरी है जिसे बजा सकें।

बोला- गाँधी जी और मोदी जी के अतिरिक्त भी बहुत से व्यक्ति हैं जिन्हें चैन की नींद आती है। जबकि उनके पास न घोड़े हैं और न ही बांसुरी है, जैसे राष्ट्रवादी कांग्रेस से भाजपा में आए हर्षवर्द्धन पाटिल और वर्तमान में भाजपा के सांसद संजय पाटिल। दोनों का ही कहना और मानना है कि वे भाजपा में है इसलिए उन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि उनके यहाँ किसी प्रवर्तन निदेशालय या सी बी आई या एन एस ए का छापा पड़ेगा। स्वतंत्र भारत के पहले आतंकवादी और गाँधी जी के हत्यारे का महिमामंडन करने में भी उन्हें न तो शर्म आती है और न ही किसी समाज और समरसता विरोधी अपराध का आरोप लगने का भय रहता है। 

हमने कहा- तोताराम सुना है, सत्ता में होने के कारण माननीयों और उनके नेताओं को अपने और अपने भक्तों के जघन्य से जघन्य अपराध खुद ही माफ़ कर सकने का अधिकार होता है। कोर्ट, कानून और संविधान सब गए भाड़ में।

बोला- तभी तो बड़े से बड़े सेठ भी या तो चुनाव लड़कर सभी कानूनों से परे होना चाहते हैं या फिर कानून के ऐसे रखवालों को खरीदकर सर्वशक्तिमान बनना चाहते हैं। लेकिन तू कभी कभी अपने आदर्शवाद के चक्कर में हास्य-व्यंग्य भी लिखता है। तुझे तो और सावधान रहना चाहिए। 

हमने कहा- अपने राजस्थान में तो कांग्रेस का शासन है। 

बोला- लेकिन किसी को भी बात, बिना बात फँसा सकने वाले सभी विभाग तो किसी और के पास हैं. इसलिए अच्छी नींद के लिए अपने भगवान, भेष, भाव और भाषा बदल ले; नहीं तो आज मौसम के कारण नींद खराब हुई है, कल कोई और, किसी और बहाने से नींद ही क्या, तेरा मनुष्य जन्म खराब करवा देगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है) 

लेखक : रमेश जोशी

सीकर (राजस्थान) 

सम्पर्क : 9460155700 

प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.