29 अक्टूबर 'वर्ल्ड स्ट्रोक डे'
'वर्ल्ड स्ट्रोक डे' पर बोन एंड ब्रेन फिजियोथैरेपी क्लिनिक के डायरेक्टर डॉ. जावेद अहमद से खास बातचीत
जयपुर। 29 अक्टूबर को दुनिया भर में 'वर्ल्ड स्ट्रोक डे' मनाया जाता है। स्ट्रोक किसी भी इंसान को कभी हो सकता है। हर 40 सेकेंड में दुनिया में कोई न कोई एक व्यक्ति स्ट्रोक का शिकार होता है। अमेरिका जैसे देश में स्ट्रोक मौत का पांचवां सबसे बड़ा कारण है। स्ट्रोक के प्रति लोगों को जागरुक करने के लिए हर साल 'वर्ल्ड स्ट्रोक डे' मनाया जाता है। इसमें न्यूरो के विशेषज्ञ, डॉक्टर्स एवं फिजियोथैरेपी से जुड़े डॉक्टर्स लोगों को इसके संभावित खतरों से आगाह करते हैं ताकि समय रहते व्यक्ति को बचाया जा सके। हमने आज के हमारे मेहमान बोन एंड ब्रेन फिजियोथैरेपी क्लिनिक के डॉक्टर जावेद अहमद से इस विषय पर बातचीत की, पेश है उनके अपने विचार :
डॉ. जावेद ने बताया कि स्ट्रोक के कारण हर साल पूरी दुनिया में लाखों लोग मौत का शिकार होते हैं। ब्रेन के एक खास हिस्से तक ब्लड सप्लाई नहीं होने पर स्ट्रोक की समस्या पैदा हो सकती है। अगर किसी व्यक्ति में स्ट्रोक के वॉर्निंग साइन की पहचान कर ली जाए तो समय रहते उसकी जान बचाई जा सकती है। मेडिकल जगत के लोग संक्षिप्त भाषा में इसे 'FAST' टाइम कहते हैं। इसके लक्षणों में यदि किसी व्यक्ति का चेहरा हंसते वक्त एक तरफ से बेजान सा दिखाई दे या चेहरे का कोई भी हिस्सा सुन्न पड़ जाता हो तो इसका खतरा हो सकता है। इंसान की हंसी में भी अजीब से असमानता दिखने लगती है।
यदि किसी व्यक्ति को बोलने में दिक्कत हो रही है या वो शब्दों का सही उच्चारण नहीं कर पा रहा है तो ये स्ट्रोक से जुड़ी समस्या हो सकती है। यदि किसी व्यक्ति में इस तरह के लक्षण नजर आएं या लक्षण दिखना अचानक बंद हो जाएं तो डॉक्टर्स की सलाह या स्वास्थ्य विभाग को कॉल कर इसके बारे में तुरंत जानकारी दें या मरीज को हॉस्पिटल पहुंचने में देरी न करें। ताकि समय रहते उपचार मिल सके।
फिजियोथैरेपी विशेषज्ञ डॉ. जावेद का मानना है कि इसके अलावा स्ट्रोक के कई और भी लक्षण होते हैं। इससे इंसान के शरीर का कोई अंग कमजोर या खराब भी हो सकता है। मेडिकल साइंस में इसे पैरालाइज कहते हैं, ऐसे में शरीर के किसी भी हिस्से में सु्न्नपन या झनझनाहट जैसा महसूस होने लगता है। चलने-फिरने में दिक्कत हो सकती है और शरीर का बैलेंस बनाना मुश्किल हो जाता है। कई बार इसका असर इंसान की आंखों पर भी देखा जा सकता है, उसे एक या दोनों आंखों से देखने में दिक्कत भी हो सकती है। इस कंडीशन में व्यक्ति को धुंधला नजर आने लगता है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा व्यक्ति को चक्कर आना, सिरदर्द, कन्फ्यूजन, मेमोरी लॉस, इंसान के व्यवहार में बदलाव, मांसपेशियों में जकड़न और निगलने या खाने में भी दिक्कत इसके लक्षण हो सकते हैं।
बोन एंड ब्रेन फिजियोथैरेपी क्लिनिक डॉ. जावेद ने स्ट्रोक के मरीजों को स्ट्रोक से बचने के लिए खान-पान (डाइट) पर अपना विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि उसके संभावित खतरों को कम किया जा सके। स्ट्रोक से पीड़ित व्यक्ति को हाई फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट से अपने आपको बचाना चाहिए जो दिल की सेहत के लिए अच्छे नहीं होते हैं। लेकिन बिना फैट वाला प्लेन यॉगर्ट खा सकते हैं, इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि अमेरिका हार्ट एसोसिएशन के मुताबिक जो महिलाएं ज्यादा पोटैशियम वाली चीजें खाती हैं, उनमें स्ट्रोक का खतरा ओरों की तुलना में कम होता है।
पोटेशियम के लिए सिर्फ केला ही एकमात्र बेहतरीन फूड है जो तुरंत एनर्जी देता है और काफी फायेदमंद होता है। हमें हाई ब्लड प्रेशर के कारण पैदा होने वाली स्ट्रोक की समस्या से निजात पाने के लिए शकरकंद (स्वीट पोटैटो) का भी इस्तेमाल करना चाहिए जो बेहद कारगर है। इसमें मौजूद फाइबर और पोटेशियम आपकी सेहत के लिए बड़े फायदेमंद होता है। अच्छी बात यह है कि इसे आसानी से किसी भी भोजन में शामिल कर खाया जा सकता है। इसी तरह बंदगोभी की तरह दिखने वाला ब्रसल्स स्प्राउट आकार में उससे छोटा होता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर ब्रसल्स स्प्राउट हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल कर स्ट्रोक का खतरा दूर करने में मदद करता है। ब्रसल्स स्प्राउट को बनाकर, उबालकर या भूनकर भी खाया जा सकता हैं।
डॉ. जावेद ने कहा कि मछली में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है, जो शरीर में अच्छे HDL कॉलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ाता है और खराब LDL को घटाता है। सालमन, सरडाइन्स और मैकेरल तीन प्रकार की मछलियों में ओमेगा-3 की मात्रा सबसे ज्यादा पाई जाती है। दलिया भी शरीर में LDL कॉलेस्ट्रोल को घटाने में मदद करता है दलिया फाइबर से भरपूर शरीर के लिए यह बेहद फायदेमंद खाद्य है कुछ लोग तो अपनी मॉर्निंग डाइट में दलिये का इस्तमाल करते हैं। डालिये को सुप या पुलाव की तरह भी बनाकर खाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि मछली की तरह अखरोट और बादाम जैसी मेवा भी ओमेगा-3 फैटी एसिड मोनो अनसैचुरेटेड फैट से भरपूर एवोकाडो धमनियों के लिए भी काफी अच्छे माने जाते है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर में कॉलेस्ट्रोल की मात्रा को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
डॉ. जावेद ने कहा कि फिजियोथैरेपी के लिए जब किसी रोगी या व्यक्ति को डॉक्टर सलाह देते हैं तो वे बोन एंड ब्रेन फिजियोथैरेपी क्लिनिक, ई-49, साइंस पार्क के सामने, शास्त्री नगर, जयपुर में आकर हमसे सलाह एवं उपचार भी ले सकते हैं एवं कही से भी कॉल कर +91 78210 11117 अपॉइंटमेंट ले सकते है। डॉक्टर के साथ साथ मैं भी एक इंसान हूँ मेरा कहना यही है कि यदि किसी भी व्यक्ति को उपरोक्त स्ट्रोक के लक्षण हो तो वे बिना देरी के हॉस्पिटल जाकर डॉक्टर की सलाह एवं उपचार करायें ताकि हम सब मिलकर जागरूकता के साथ स्ट्रोक जैसी बीमारी से अपनों को बचा सकें।
डॉ. जावेद ने कहा कि हमारा मकसद मरीजों को फिजियोथैरेपी के माध्यम से बेहतर सेवा देना है हमने गत वर्षो में अनेक लकवा रोगियों को फिजियोथेरेपी के माध्यम से फिजियो के क्षेत्र में अपडेट टेक्नोलॉजी के साथ-साथ बेहतर इंस्ट्रूमेंट का उपयोग कर मरीजों को लाभान्वित कर उनका उपचार किया है। पिछले सालों में हमें लकवा के दुर्लभ एवं अनेक ऐसे मरीजों को देखने का मौका मिला जो इधर-उधर भटक कर हताश हो चुके थे, लेकिन हमने उनको थोड़ा टाइम लेते फिजियोथेरेपी के माधयम से ठीक किया। यह हमारे लिए नया तजुर्बा रहा। हमारा मानना है मरीज के साथ-साथ डॉक्टर भी मरीज को जल्द से जल्द सही करना चाहता है।
अंत में डॉ. जावेद अहमद ने बताया कि हमारा मक़सद मरीजों, लोगों में फिजियोथेरैपी क्लिनिकल चिकित्सा पद्धति का प्रचार-प्रसार कर रोगियों को लाभान्वित करना है। फिजियोथेरैपी क्लिनिक पर हम विभिन्न बीमारी के मरीजों का इलाज प्रभावी ढंग से करते रहे हैं, जिनके परिणाम बेहतर रहे हैं और मरीजों का हमारे प्रति विश्वास बना है। एक मरीज जब ठीक होता है तो वह दूसरे को भी लेकर आता है। क्लिनिक पर हम लकवा (पेरेलेसिसि) , चेहरे का लकवा, कमर दर्द, सियाटिका, स्लिपडिस्क, रीड की हड्डी का टेढ़ापन दूर करना, पार्किंसन, गर्दन दर्द, मांसपेशियों का दर्द, कूल्हे जाम हो जाना, हाथ-पैरों में सुना आ जाना, फ्रेक्चर के बाद की समस्याएं, स्पोर्ट्स इंजरी, हाथ पैरों का टेढापन, कपिंग थैरेपी (हिजामा), शारीरिक विकलांगता, कंधे का दर्द, जोड़ों का दर्द, कोहनी एवं एड़ी का दर्द का कारगर इलाज नई तकनीकी वाली मशीनों के माध्यम से करते हैं, यह सब मरीज एवं रोगी की बीमारी के अनुसार किया जाता है।