हमने कहा - तोताराम, नेट की कम स्पीड से दुखी होकर जब से बीएसएनएल के ब्रोड्बैंड कनेक्शन को फाइबर में बदलवाया है कुछ नई तरह की समस्याएं पैदा हो गई है। बिजली जाते ही लैंड लाइन भी काम करना बंद कर देता है। शिकायत की तो उत्तर मिला इमरजेंसी के लिए इनवर्टर लगवा लीजिये। यह तो बाबाजी वाली वही कहानी हो गई जिसमें एक से दो लंगोटी रखने पर अंततः बाबाजी को फांसी चढ़ने की नौबत आ गई।
बोला- जो जितनी सुविधाएं चाहेगा उसे उतनी ही असुविधाओं का सामना करना पड़ेगा। पैदल या साइकल से गिरने पर तो हाथ-पैर ही टूटते हैं लेकिन हवाई जहाज से गिरने पर तो कुरते पायजामे के रंग से ही पहचाना जा सकता कि अमुक श्रीमान की यह अंतिम निशानी हो सकती है. जब बिजली नहीं थी तब आदमी अपनी चिमनी, केरोसिन और माचिस संभालकर रखता था। दिन दिन से खाना बना और खा लेता था. पूरी नींद लेता था और सुबह एकदम फ्रेश उठता था. अब बिजली पर आश्रित रहने की असुविधाओं का पता चल रहा है.लेकिन शुक्र है कि सुविधाओं की असुविधाओं में भटक रहे लोगों के लिए मेघवाल जी जैसे संतों के नुस्खे उपलब्ध हैं।
हमने पूछा- क्या उन्होंने क्या कोई बिजली का सुझाया है? या मीटर को स्लो करने की की कोई तकनीक बताई है?
बोला- नहीं, उन्होंने तो शुद्ध सात्विक परम्परागत भारतीय नुस्खा बताया है कि बिजली संकट से निबटने के लिए 'एक रात चाँद के साथ' बिताएं।
हमने कहा- वे संस्कृति मंत्री भी हैं इसलिए उनकी बात में दम हो सकता है क्योंकि उनके द्वारा बताये गए 'भाभीजी पापड़' के बल ही अपने राजस्थान में कोरोना से मौतें बहुत कम हुईं। फिर भी उनके इस नुस्खे को काम में लेते समय दो बातों का ध्यान अवश्य रखना नहीं तो चक्कर पड़ सकता है।
बोला- रात में परिजनों के साथ घर की छत पर चांदनी रात में बतियाने में क्या चक्कर पड़ सकता है बल्कि इससे तो सांस्कृतिक संबंध और मज़बूत होंगे।
हमने पूछा- यह दिव्य ज्ञान मंत्री जी ने कहाँ और किसे दिया?
बोला- यह उन्होंने जोधपुर के पास आफरी में स्थित पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों से आज़ादी के अमृत महोत्सव के बारे में चर्चा करते हुए बताया।
हमने कहा- यह इस स्थान 'आफरी' का प्रभाव भी हो सकता है. वैसे भी मंत्री बनते ही किसी को भी ज्ञान का 'अफारा' चढ़ जाता है। मंत्रियों के ऐसे ही ज्ञान के 'अफारों' से विज्ञान की दुनिया में भारत का नाम आजकल बड़े आदर से लिया जाता है। बस, जल्दी ही दुनिया सर्वसम्मति से हमें 'विश्वगुरु' स्वीकार करने ही वाली है।
तेरे ज्ञानवर्द्धन के लिए आज से साठ वर्ष पहले की शरद पूर्णिमा की घटना सुनाते हैं। हमने कुछ मित्रों के साथ खीर बनाकर उसे चन्द्रमा से झरने वाले अमृत से युक्त होने के लिए छोड़ दिया और कविगोष्ठी में मग्न हो गए। जब रात बारह बजे उस अमृतमय हो चुकी खीर को संभाला तब तक एक कुत्ता उसे पूरी तरह साफ़ कर चुका था और जब मित्रमंडली उदास होकर घर जाने लगी तो पता चला कि कइयों की चप्पलें गायब थीं।
इसलिए चाँद के साथ एक रात बिताने से पहले कुत्तों और उचक्कों से बचने का इंतज़ाम अवश्य कर लेना चाहिए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखक : रमेश जोशी
(वरिष्ठ व्यंगकार)
सीकर (राजस्थान)
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.