विवाद “केवल हिन्दू” वाले विज्ञापन पर

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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तमिलनाडु सहित दक्षिण के सभी राज्यों में धर्मस्थल विभाग है। यह विभाग, सरकार के प्रबंधन वाले मंदिरों के देखभाल करता है। सरकार द्वारा इन मंदिरों के देखभाल और पुजारी सहित अन्य कर्मचारियों के वेतन के लिए सालाना करोड़ों रूपये का अनुदान देटी है। अकेले कर्नाटक में सरकार के पास लगभग साढ़े तीन हज़ार मंदिरों और मठों का प्रबंधन है। दक्षिण के अन्य राज्यों में भी सभी बड़ी संख्या में मदिर सरकारी प्रबंधन से ही चल रहे है। बहुत से मंदिर अपने स्तर पर शैक्षणिक संस्थान भी चला रहे है। मंदिर के पुजारी तथा सेवकों की नियुक्ति सरकार करती हैं। इसके लिए बाकायदा विज्ञापन दिया जाता है तथा आवेदकों का साक्षात्कार कर योग्य उम्मीदवार का चयन किया जाता है। 

लेकिन पिछले दिनों तमिलनाडु के धर्मस्थल विभाग ने एक ऐसा विज्ञापन अख़बारों में दिया जिसे लेकर शुरू हुआ विवाद खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के विधान चुनाव क्षेत्र कोलाथुर में एक मंदिर संस्थान 36 स्कूल, पांच कालेज  और एक तकनीकी संस्थान   चलाता आ है। इसके एक कालेज अरमिगु कपिलेश्वर आर्ट्स एंड साइंस कालेज ने अपने यहाँ लगभग एक दर्जन प्राध्यापकों की नियुक्ति के लिए राज्य के सभी बड़े अख़बारों में विज्ञापन दिया। सारा विवाद इस बात को लेकर है की कालेज प्रबंधन ने साफ़ शब्दों में लिखा है कि केवल हिन्दू ही इन पदों पर नियुक्ति के लिए आवेदन कर सकते है। संभवत  ऐसा पहली बार हुआ है कि धर्मस्थल विभाग के प्रबंधन में आने वाले किसी शैक्षणिक संस्थान केवल और केवल हिन्दू   प्रत्याशियों से ही आवेदन करने को कहा है। राज्य की सत्तारुद्ध पार्टी द्रमुक के कुछ नेताओं ने इसको लेकर कड़ी आपति जताई है। उनका तर्क है कि इस तरह अगर केवल हिन्दू ही इन पदों के आवेदन कर सकते है तो यह संविधान का खुला उल्लंघन है। 

उन्होंने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है कि वे इस मामले तुरंत हस्तक्षेप करे। सामान्य तौर पर द्रमुक उच्वर्गीय हिन्दुओं के खिलाफ मानी जाती है इसलिए उनके नेताओं का कहना है की इस प्रकार केवल हिन्दुओं की नियुक्ति करना पार्टी की मूलभूत नीतियों के खिलाफ है। लेकिन स्टालिन ने इस विवाद पर अभी तक अपना मुहं नहीं खोला है। जहाँ तक धर्मस्थल विभाग का सवाल है वह इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहता और विज्ञापन के अनुसार साक्षात्कार का कार्यक्रम नहीं बदला। जो लोग विभाग के इस निर्णय को सही बता रहे है उनका कहना है कि धर्मस्थल विभाग के लिए बनाये गए कानून की धारा 10 अंतर्गत उसे हिन्दुओं और हिन्दुओं की नियुक्ति का पूरा अधिकार है। उनका कहना है कि विभाग ने इस बारे में कोई गलत नहीं निर्णय नहीं किया है। उसका निर्णय पूरी तरह कानून सम्मत है। इस सब हो हल्ले के दौरान विभाग ने कुछ भी नहीं कहना तय किया तथा चयन की प्रक्रिया को जारी रखा यानि इन पदों पर केवल हिन्दू प्रत्याशियों को ही नियुक्त किया जायेगा। यह तर्क दिया गया कि  मंदिरों की तरह इनके द्वारा चलाये जा रहे संस्थानों में केवल हिन्दुओं को ही नौकरी दिये जाने का गलत नहीं कहा जा सकता। ये संस्थान मदिरों का  विस्तार ही है तथ मंदिरों की तरह यहाँ भी केवल हिन्दुओं को नौकरी दी जानी चाहिए।   

उधर कानून के विशेषज्ञों का कहना है की धर्मस्थल कानून के अंतर्गत केवल मंदिरों की पुजारियों तथा अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के मामले में ही धारा  का प्रावधान किया गया है न कि इसके द्वारा चलाये जा रहे शैक्षणिक तथा ऐसे ही अन्य संस्थानों में नियुक्तियों के लिए। इसलिए केवल हिन्दुओं को ही  आवेदन के लिए कहना एक दम गैर कानूनी है। पुराने लोगों का कहना है की पहले भी  मंदिरों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में नियुक्तियों के लिए ऐसे ही विज्ञापन दिए जाते रहे हैं लेकिन तब किसी ने कोई ऐतराज़ जाहिर नहीं किया था। पूर्व में बिना इस शर्त के विज्ञापनों के जरिये जो भी नियुक्तयाँ की गयी उसमे किसी भी गैर हिन्दू को चयनित नहीं किया गया। हालाँकि नियमों में कही नहीं लिखा की गैर हिन्दू इन पदों के लिए आवेदन नहीं दे सकते लेकिन आम तौर किसी गैर हिन्दू को चुना ही नहीं जाता था। इस प्रकार यह एक तरह का अलिखित कानून माना जाता रहा है। अभी तक इसका विरोध केवल द्रमुक नेताओं के एक वर्ग दवारा ही किया जा रहा है लेकिन इस बात को नाकारा नहीं जा सकता की देर सवेर अन्य दल और कुछ मुस्लिम संस्थाएं इस विरोध के साथ हो जायेगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)