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तोताराम ने आते ही बड़ा विचित्र प्रश्न किया, बोला- तू फाँसी पर कब झूलेगा ?
हमने कहा- हमारे जीवित रहने से तुझे क्या परेशानी है? कोरोना की आड़ में पेट्रोल, डीज़ल, गैस के दाम बढ़ाकर खजाना भरने मगर स्वास्थ्य, शिक्षा पर कुछ खर्च न करने वाली और नेताओं पर जी भरकर लुटाने वाली सरकारों को ज़रूर हम जैसे पेंशन भोगी व्यर्थ का बोझ लगते होंगे।
मर गए तो पेंशन का मज़ा कौन लेगा। तुझे रोज मुफ्त की चाय कौन पिलाएगा और फिर फांसी पर झूलना करोड़ों खर्च करके महाबलीपुरम में शी जिन पिंग के साथ झूला झूलने या ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम के लिए पधारे ट्रंप की बाँहों में झूल जाने जितना आसान काम थोड़े ही है।
और जहां तक देश की आज़ादी के लिए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे पर झूल जाने वाले दीवानों की बात है तो वह तो नस्ल ही समाप्त हो गई। अब तो कोई गरीब, दलित वंचित, अपमानित, न्याय न पाने से कुंठित या किसी साहूकार का क़र्ज़ न चुका सकने वाला भला किसान ही झूलेगा फाँसी पर। नीरव, चौकसे जैसे तो विदेशों में इश्क लड़ा रहे होंगे और उन्हें वहाँ से लाने के लिए गए विशेष विमान अधिकारियों को विदेश-भ्रमण करवाकर लौट आते हैं।
बोला- आदरणीय मैंने तो अपने राजस्थान के एक मात्र दिलावर मतलब बहादुर और सत्य-न्याय के अलमबरदार मदन जी की बात से सन्दर्भ में चर्चा की दृष्टि से कहा था। और आप हैं कि पूरी शताब्दी का इतिहास सुनाने लगे।
हमने पूछा- दिलावर जी ने अपने दिल कौनसा राज खोल दिया।
बोला- उन्हें अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं की ईमानदारी पर इतना विश्वास है कि जयपुर नगर निगम और बीवीजी कंपनी के 20 करोड़ के घोटाले में संदेहास्पद, संघ के प्रचारक निम्बाराम के सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषी ठहरा दिए जाने की स्थिति में फाँसी पर झूल जाने की घोषणा की है।
हमने कहा- ये सब किन्तु-परन्तु लगा-लगाकर उलटे सीधे बयान देना ध्यानाकर्षण की बीमारी है। जब किसी पर कोई ध्यान नहीं देता वह ऐसे ही करता है। रोज-रोज कुएँ में गिर जाने की धमकी देने वाली औरत कभी कुएँ में नहीं गिरती. पति को मरवाकर छिनाल सबसे ज्यादा धाड़ें मार-मार कर रोती है। अनपढ़ पंडित ज्यादा लम्बे तिलक खींचता है, जोर-जोर से मन्त्र बोलता है।
बोला- मान ले, निम्बाराम दोषी पाए गए तो क्या दिलावर फांसी के फंदे पर झूल जाएंगे?
हमने कहा- पहले तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाएगा ही नहीं। दूसरी बात जब मुख्यमंत्री अपने विरुद्ध मुकदमे वापिस ले सकता है, शाह बानो के फैसले की मिट्टी पलीद की जा सकती है, न्यायाधीश को उपकृत करके या दबाकर फैसले करवाए जा सकते हैं तो निम्बा का मामला तो बहुत लम्बा है।
यदि कोई खुद्दार हो तो जर्मनी के हेस राज्य के 54 वर्षीय वित्तमंत्री थॉमस शेफर की तरह कोरोना के कारण खराब वित्तीय स्थिति को लेकर हताशा में ही आत्महत्या कर सकता है। लेकिन हम विश्वगुरु हैं. हम 15 लाख के चुनावी वादे को बेशर्मी से जुमला कह कर ठहाका लगा सकते हैं।
झूठा और बेशर्म कभी मरता नहीं है क्योंकि वह जिंदा होता ही नहीं।
(लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)
लेखक : रमेश जोशी
सीकर (राजस्थान)
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.