मीथेन वातावरण में सिर्फ 9 साल तक ही मौजूद रहती है, मगर इसमें ऊष्मा बढ़ाने की ताकत कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले 28 गुना ज्यादा होती है
लखनऊ (यूपी) से
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जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में आज जारी आईपीसीसी की रिपोर्ट में पहली बार, कम समय तक अस्तित्व में रहने वाली ग्रीन हाउस गैसों की जलवायु संकट को बढ़ावा देने में अहम भूमिका पर एक अध्याय को शामिल किया जाएगा।
ऐसे में, क्योंकि कृषि, अपशिष्ट तथा कोयला खनन मीथेन उत्सर्जन के सबसे बड़े स्रोत हैं, मीथेन की भूमिका पर चर्चा दिलचस्प और ज़रूरी हो जाती है।
वैश्विक तापीकरण के लगभग एक चौथाई हिस्से के लिए जिम्मेदार होने के बावजूद नीति निर्धारकों ने मीथेन गैस के उत्सर्जन को काफी हद तक अनदेखा किया है। मगर आईपीसीसी की इस रिपोर्ट में मीथेन पर आधारित नए विज्ञान को भी शामिल किया गया है। इसमें इस तथ्य को खोजा गया है कि किस तरह इस तेजी से बढ़ते हुए उत्सर्जन को कम करके हम वर्ष 2040 के दशक तक वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 0.3 डिग्री सेल्सियस तक कम कर सकते हैं।
ध्यान रहे कि हम वैश्विक तापमान में वृद्धि के डेढ़ डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य का उल्लंघन करने के बहुत करीब पहुंच गए हैं। ऐसे में इसमें 0.3 डिग्री सेल्सियस की कमी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है। रिपोर्ट में उन रास्तों को भी सुझाया गया है जिनके जरिए हम प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार तीन क्षेत्रों कृषि, जीवाश्म ईंधन और अपशिष्ट में इस लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
मानव द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) के कारण जलवायु परिवर्तन रफ्तार पकड़ रहा है। औद्योगिक युग से पहले की अवधि में दुनिया में पाई गई वार्मिंग के हर स्वरूप के लिए यह उत्सर्जन जिम्मेदार है। जिनमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की भूमिका सबसे ज्यादा रही। CO2 के बाद मीथेन CH4 जलवायु परिवर्तन के लिहाज से सबसे बड़ा खलनायक है।
क्या है समस्या की वजह
यह गैस वातावरण में सिर्फ करीब 9 साल तक ही मौजूद रहती है, मगर इसमें ऊष्मा बढ़ाने की ताकत, 100 साल के दौरान, कार्बन डाइऑक्साइड के मुकाबले 28 गुना ज्यादा होती है। मीथेन का संकेंद्रण 1980 के दशक के किसी भी समय के मुकाबले अब ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है और यह औद्योगिक युग से पूर्व (प्री- इंडस्ट्रियल) के स्तरों के मुकाबले ढाई गुना से ज्यादा के स्तर तक पहुंच रहा है। यह आईपीसीसी द्वारा AR5 में बताई गई सुरक्षित सीमा से काफी अधिक है। मीथेन इस वक्त कुल वैश्विक तापीकरण के लगभग एक चौथाई हिस्से के लिए जिम्मेदार है और इसकी वजह से हम वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के अपने लक्ष्य का उल्लंघन करने की कगार पर पहुंच चुके हैं। वार्मिंग की दर को तेजी से कम करने और वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लिए इंसान द्वारा उत्सर्जित मीथेन में कटौती करना ही सबसे किफायती रास्तों में से एक है।
कौन से क्षेत्र करते हैं मीथेन उत्सर्जन?
मीथेन का उत्सर्जन प्राकृतिक संसाधनों, जैसे कि वेटलैंड से होता है मगर कुल वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के आधे से ज्यादा हिस्सा इंसानी गतिविधियों के कारण उत्पन्न होता है। इंसानी गतिविधियों के कारण उत्सर्जित मीथेन गैस के ज्यादातर हिस्से के लिए तीन क्षेत्र कृषि (मानव जनित उत्सर्जन का 40%), जीवाश्म ईंधन (35%) और अपशिष्ट (20%) जिम्मेदार हैं। कृषि कार्यों से उत्पन्न होने वाली मीथेन गैस का लगभग एक तिहाई हिस्सा (32%) पशुधन उत्पादन से पैदा होता है।1 जीवाश्म ईंधन द्वारा उत्सर्जित कुल मीथेन गैस का 23% हिस्सा तेल तथा गैस के उत्खनन, प्रसंस्करण और वितरण के कारण उत्पन्न होता है। वहीं, इसमें कोयला खनन का योगदान 12 फीसद है। अपशिष्ट के क्षेत्र से निकलने वाली मीथेन गैसों का 20% हिस्सा लैंडफिल और गंदे पानी से उत्पन्न होता है।
क्या हो सकते हैं उपाय?
इस मुश्किल के हल के लिए अनेक किफायती उपाय पहले से ही मौजूद हैं जैसे कि प्राकृतिक गैस की आपूर्ति श्रृंखला से होने वाले उत्सर्जन को कम करना, ठोस अपशिष्ट का बेहतर निस्तारण और पशुधन तथा फसल प्रबंधन को बेहतर बनाना। इन तीन क्षेत्रों में प्रदूषणकारी तत्वों के उत्सर्जन में कमी लाने के विकल्प उन सर्वश्रेष्ठ उपकरणों की तरह हैं, जिनके जरिए अगले 30 वर्षों के दौरान वार्मिंग और जलवायु पर पड़ने वाले उसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। खास तौर पर जीवाश्म ईंधन उद्योग के पास वर्ष 2030 तक मीथेन गैस के उत्सर्जन में कटौती करने की सर्वश्रेष्ठ संभावना है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक तेल और गैस संबंधी उपायों का 80% तक का हिस्सा और कोयले संबंधी उपायों का 98% हिस्सा बहुत कम या फिर बिना किसी कीमत के लागू किया जा सकता है। मगर यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इन सभी क्षेत्रों में होने वाला उत्सर्जन वैश्विक तापमान में वृद्धि को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के लक्ष्य के अनुरूप ही हो। साथ ही साथ इन तीन क्षेत्रों में मीथेन के उत्सर्जन में कटौती करने से वर्ष 2030 तक मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाली मीथेन गैस के उत्सर्जन में 45% तक की कमी की जा सकती है। ऐसा होने से वर्ष 2040 के दशक तक ग्लोबल वार्मिंग में 0.3 डिग्री सेल्सियस के करीब कटौती की जा सकती है। इससे वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित रखने में मदद मिलेगी और 255000 असामयिक मौतों और 26 मिलियन टन फसल के नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी।
कैसे हों नीतिगत प्रयास?
कृषि
पशुधन प्रबन्धन में सुधार : चारे में बदलाव और फ़ूड एडिटिव्स के जरिये एंट्रेमिक फर्मेंनटेशन को कम करना, उत्पादकता और जानवर के स्वास्थ्य/प्रजनन क्षमता में सुधार के लिये सेलेक्टिव ब्रीडिंग, झुण्ड में सुधार करना और बेहतर खाद प्रबन्धन जिसमें बायोगैस डाइजेस्टर्स का प्रबन्धन और खाद के स्टोरेज समय में कमी जैसे कार्य भी शामिल हैं। चावल प्रबंधन में सुधार : जल प्रबंधन में सुधार या वैकल्पिक फ्लडिंग/ड्रेनिंग वेटलैंड चावल, डायरेक्ट वेट सीडिंग और वैकल्पिक हाइब्रिड
कृषि उपज के अवशेष : कृषि अवशेष जलाने से रोकें।
उपभोग : भोजन की बर्बादी और नुकसान को कम करना, जैसे कि फूड कोल्ड चेन को मजबूत करना और उसे विस्तार देना, उपभोक्ता को जानकारी देने के अभियान और कुछ ही पशु उत्पादकों का इस्तेमाल करके सतत आहार को अपनाना।
जीवाश्म ईंधन
तेल और गैस: उत्पादन, संचालन और वितरण आदि के दौरान होने वाली लीकेज का पता चलाने और रोकने के लिये मरम्मत करने के उपाय लागू करना। व्यर्थ हुई गैस की पुनर्प्राप्ति और उसका इस्तेमाल और अनैच्छिक फ्यूजिटिव एमिशंस को नियंत्रित करना।
कोयला : खनन पूर्व डीगैसीफिकेशन के जरिये बेहतर खदान मीथेन प्रबन्धन करना और प्रतिपूर्ति तथा वेटिलेशन एयर मीथेन का ऑक्सीडेशन एवं निष्प्रयोज्य कोयला खदानों में पानी भरना। ऊर्जा उत्पादन के लिये
रिन्युब्ल : बिजली उत्पादन के लिये वायु, सौर तथा पन बिजली के विस्तारित इस्तेमाल को पोषित करने के उद्देश्य से प्रोत्साहनों का इस्तेमाल। सुधरी हुई ऊर्जा दक्षता एवं ऊर्जा मांग प्रबन्धन : घरेलू उपयोग के उपकरणों या इमारतों में ऊर्जा दक्षता को सुधारना, रूफटॉप सौर ऊर्जा उपकरणों की स्थापना को बढ़ावा देना, स्वच्छ ऊर्जा विकल्पों के प्रति उपभोक्ताओं की जागरूकता में सुधार और उद्योगों के लिये महत्वाकांक्षी ऊर्जा दक्षता मानकों को लागू करना।
अपशिष्ट प्रबन्धन
ठोस अपशिष्ट के प्रबन्धन में सुधार : जैव अपघटनीय (बायो डीग्रेडेबल) घरेलू कचरे के पृथक्करण और निस्तारण की व्यवस्था करना, किसी भी गैर जैव अपघटनीय/ऑर्गेनिक कचरे को लैंडफिल (घरेलू कचरा) तक न पहुंचने देना और ऊर्जा रिकवरी (औद्योगिक कचरा) की रीसाइक्लिंग या निस्तारण।
अपशिष्ट जल के निस्तारण में सुधार : लैट्रिन के बजाय अपशिष्ट जल के निस्तारण (घरेलू) के प्लांट तैयार करना और द्वि-स्तरीय प्रबन्धन तक उन्नत बनाना, जैसे कि वायवीय निस्तारण (औद्योगिक) के बाद बायोगैस रिकवरी के साथ अवायवीय निस्तारण।
उपभोग : व्यर्थ नहीं होने देने के लिये कचरे को अलग-अलग करके रीसाइकल करें और सतत उपभोग को अपनायें।
मीथेन एवं कृषि : ऐसी समस्या जिसकी अनदेखी की गयी
कृषि क्षेत्र से उत्पन्न होने वाली ज्यादातर मीथेन गैस एनटेरिक फर्मेंटेशन (जुगाली करने वाले जानवर की कुदरती पाचन प्रक्रिया) के जरिए जानवरों को बड़ा करने से पैदा होती है। अन्य मुख्य कृषि संसाधनों में लैंडफिल, कचरा और चावल की खेती शामिल है।
जहां विभिन्न देश कृषि को मीथेन गैस के उत्सर्जन के एक स्रोत के तौर पर मानते हैं वहीं उनमें से ज्यादातर मुल्क इसमें कटौती करने के ठोस कदम नहीं उठाते। सच्चाई यह है कि कृषि से उत्पन्न होने वाली मीथेन गैस का उत्सर्जन भविष्य में भी जारी रहने की उम्मीद है, क्योंकि मांस की मांग बढ़ रही है। खासतौर पर निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों में।
कृषि क्षेत्र के विशाल फुटप्रिंट को देखते हुए जलवायु संबंधी लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मीथेन गैस के उत्सर्जन में कटौती के लिए फौरी कदम उठाया जाना बेहद जरूरी है। एक ठोस प्रमाण आधार से यह संकेत मिलते हैं कि भोजन की बर्बादी और उसके नुकसान में कटौती करने पशुधन प्रबंधन में सुधार करने और कुछ ही पशु उत्पादों का उपयोग करने से अगले कुछ दशकों के दौरान एक साल में मीथेन के उत्सर्जन में 65 से 80 मिलियन टन की कटौती की जा सकती है।
बड़े पैमाने पर इन कदमों को उठाए जाने से मानव जनित गतिविधियों के कारण पैदा होने वाली मीथेन गैस के उत्सर्जन की मात्रा को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखने के अनुरूप बनाया जा सकता है। मगर सरकारों को अपनी नीतियों का चुनाव बहुत सावधानी से करना होगा क्योंकि कुछ मॉडल यह दिखाते हैं कि प्रति किलोग्राम प्रोटीन बेहद कम उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने में बड़े पैमाने पर औद्योगीकृत कृषि की भूमिका शामिल हो जाती है। यह समस्या का कारण है क्योंकि औद्योगिक कृषि पद्धतियों के साथ अनेक सामाजिक तथा पर्यावरणीय प्रभाव जुड़े हुए हैं जो विभिन्न मॉडलों में शामिल नहीं है और इनसे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हो सकती है।
अगर इन तथ्यों को भी साथ में लें तो औद्योगिकृत कृषि के कारण वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को डेढ़ डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लक्ष्य को हासिल करना नामुमकिन हो जाएगा। कृषि वानिकी एवं ऑर्गेनिक खेती जैसी कृषि पद्धतियां, जो कि औद्योगिक कृषि से अलग हैं, के जरिए न सिर्फ सभी प्रकार की ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती करने में मदद मिलेगी बल्कि इससे किसानों की आजीविका खाद्य सुरक्षा तथा जैव विविधता में सुधार भी होगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)