जानकारों का मानना है कि वोटिंग के पहले यानी एक अप्रैल को उक्त पुरस्कार की घोषणा के भाजपा के पक्ष में गहरे राजनीतिक गूढार्थ भी हो सकते हैं। वैसे राजनीति या सत्ता की चाहत के बारे में सदियों से माना जाता रहा है कि ये कुछ भी करा सकती है। एक ओपिनियन पोल में खुलासा हुआ है कि भाजपा के गठबंधन वाली सरकार इस बार 65 सीटों से ज़्यादा की हकदार नहीं रहेगी। मतलब स्व. मुख्यमंत्री करुणानिधि के पौत्र जूनियर स्टालिन को फिलहाल सरकार बनाना लगभग असंभव हो गया है। यह चुनाव इसलिए भी बहुत रोचक हो गया है कि इकहतर साल के रजनीकांत वास्तविक जीवन में भी दर्शकों के नायक हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स कहती हैं कि रजनीकांत एशिया के सबसे महंगे एक्टर हैं। कुली और कंडक्टरी भी कर चुके रजनीकांत जितनी भी फीस लेते हैं, वह फ़िल्म के कुल बजट का आधा होती है लेकिन अपनी कमाई का आधा हिस्सा परोपकार में दे देते हैं। यानी, वे साउथ की फिल्मों के प्रेमजी हाशमी माने जाते हैं। जान लें कि विप्रो के मानद चेयरपर्सन प्रेमजी हाशमी अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा परोपकार में दे देते हैं। रजनीकांत भी उन्हीं की तरह का कोई आभा मण्डल नहीं दिखाते। फिल्मी समीक्षक मानते हैं कि रजनीकांत स्वयं जानते हैं कि उनका व्यक्तित्व दर्शनीय नहीं है। रंग लगभग अश्वेत है, मग़र वे हेन्डसम न होते हुए भी करीब पांच दशकों से दर्शकों की जान हैं। उनकी हवा में सिगरेट उछालकर फिर उसे मुँह में झेलकर किसी गंजे के सिर पर तीली रगड़कर जलाने की अदा दर्शकों का दिल चीर देती है। वे जब कॉलर उठाकर नेगेटिव रोल में गुंडों की धुनाई करते हैं तो या तो अमिताभ बच्चन या शत्रुघ्न सिन्हा लगते हैं।
अमिताभ वैसे भी उनके पक्के दोस्त हैं। माना जाता है कि रजनीकांत की सफलता का एक राज उनके द्वारा अमिताभ की तमाम सुपर डुपर हिट फिल्मों को लगभग जस का तस रीमेक करना है। इनमे दीवार, डॉन, त्रिशूल, खुद्दार जैसी कई फिल्मों का रीमेक रजनीकांत ने कर दिया। कहते हैं, दृश्य और डायलॉग्स भी वैसे ही ले लिए। इसीलिए फ़िल्मी गपोड़ी कहते हैं पता नहीं शोले की याद रजनीकांत को क्यों नहीं रही। कुछ महीनों पहले ही रजनीकांत ने सियासत में सक्रिय होने के संकेत दिए थे। हिंदी दर्शकों को भी वे रोबोट, अंधा कानून, गिरफ्तार तथा हम फिल्मों के कारण पसंद हैं। कदाचित इसीलिए हिंदी मीडिया ने उनके राजनीति में आने को इतनी गम्भीरता से लिया। वे नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह के लगातार सम्पर्क में भी रहे, लेकिन उन्होंने ही प्रैस वक्तव्य जारी किया था कि राजनीति की भागा दौड़ी मुझे सूट नहीं करेगी, क्योंकि मेरे डॉक्टरों के अनुसार मुझे विशेष रूप से हाई बीपी की शिकायत है। तमिलनाडु के ही कभी स्व. रामचंद्रन मुख्यमंत्री हुआ करते थे।
इसके पहले उनकी फिल्मों में बादशाहत। तब की मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो उनके निधन से विचलित करीब 15 लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। उसके बाद इस सूबे की जगत अम्मा कही जाने वाली स्व. जयललिता के फिल्मों से लेकर मुख्यमंत्री बनने तक के सफ़र की कहानी भी कम रोमांचक नहीं है। उनके समर्थक विधायकों के बारे में तो कहा जाता है कि अपने सीने पर जयललिता का नाम गुदवाकर सड़क पर लोट लगाते हुए उनके दर्शन करने आते थे। उनकी मृत्यु तो आज भी संदिग्ध मानी जाती है।
मीडिया का बड़ा वर्ग कहता है कि रजनीकांत के भी करोड़ों फालोअर्स हैँ। इन्हें ही देखते हुए 51 वाँ दादा साहब फाल्के पुरुस्कार रजनीकांत को प्रदान करने की घोषणा की गई। भाजपा अंतिम समय में कोई रिस्क अफॉर्ड नहीं कर सकती। इसीलिए उक्त पुरुस्कार के मार्फ़त वह सेफ ज़ोन में चली गई ताकि रजनीकांत के फालोअर्स उसके लिए लाइफ सेविंग ड्रग साबित हो। विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि रजनीकांत वाकई टॉलीवुड के साथ बॉलीवुड के भी सुपर स्टार है। उनका इस पुरुस्कार पर अधिकार भी बनता है। बावजूद इसके एक सही शख्सियत को ग़लत समय पर नवाज़ा गया। इसीलिए मीडिया इसे चुनाव के तुरुप का इक्का भी समझ रहा है। यानी मोदी है तो सब मुमकिन है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)
वरिष्ठ पत्रकार (इंदौर)
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