सांभर नगरपालिका साठ साल बाद भी सब्जी मण्डी को विकसित नहीं कर पाई

वर्ष 1970 में लगवाया गया टीनशैड अब छलनी हो चुका है, बारिश में भर जाता है पानी

प्लेटफार्म पर बैठकर सब्जी बेचने वालों ने भी बतायी पीड़ा, किराया की रसीद पर नहीं होती है पालिका की मुहर

सांभर के गोला बाजार में सब्जी मण्डी सुविधाओं को तरस रही है। 

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। सांभर में गोला बाजार के नजदीक सबसे पुरानी एकमात्र सब्जी मण्डी स्थापना से लेकर आज तक उसी हालात मे चल रही है, यानी नगरपालिका की ओर से वर्ष 1950 में बारिश व धूप से बचाव के लिये जिस टीनशैड को लगवाया गया था वह जगह जगह से छलनी हो चुका है, आज तक न तो इसे ठीक करवाया गया है और न ही इसको बदलवाया गया है। दो भागों में बनवाये गये प्लेटफार्म को करीब छत्तीस जनो को चार गुणा चार की साईज निधारित कर आवंटित किया गया था, बताया जा रहा है कि पहले सालाना 35 रूपये किराया वसूला जाता था जो अब बढकर 750 के आसपास चला गया है।  

दोनों तरफ बने प्लेफार्म पर जो लोग यहां पर बैठकर सब्जियां बेचने का काम करते थे, इनमें से कुछ मजबूरी के चलते इस काम को छोड चुके है तो कई की मृत्यु हो चुकी है। प्लेटफार्म पर बैठकर सब्जी बेचने वालों को पालिका बीते दशकों में कोई मूलभूत सुविधा आज तक मुहैया नहीं करवा सकी हे।  इस सब्जी मण्डी में तत्कालीन प्रशासन की ओर से कुछ गुमटीनुमा तो कुछ बडी साईज की दुकाने बनायी गयी थी, जिनका किराया मासिक अब करीब 650 रूपये है, इन दुकानों का किराया तो वसूला जाता है लेकिन रंग रोशन व मरम्मत भगवान भरोसे है। तीस सालों से आडती का काम करने वाले पूर्व पार्षद शम्भूदयाल माली से बात करने पर उन्होंने संवाददाता को बताया कि प्लेटफार्म का किराया देने के लिये कोई मना नहीं करता है,लेकिन जिस प्रकार से पालिका ने किराया वसूली का तरीका बना रखा हे उसकी वजह से फुटकर काम करने वालों के सामने बडा आर्थिक संकट खड़ा हो गया है। जब पालिका को याद आता हे तो साल में एक दो बार किराया वसूल करने आते है, जिसकी वजह से उनका किराया काफी बढ जाता है और उनका चुकाना मुश्किल हो जाता है। 

किराया अदा करने पर नोटिस थमा दिया जाता है, यदि किसी ने अपना किराया जमा करवाया है और उसके पास रसीद गुम हो गयी है तो उससे पूरा किराया इस आधार पर वसूला जाता है। यह बताया गया है कि पालिका के पास इस प्रकार का कोई रिकॉर्ड मेंण्टन नहीं है जिससे पता चल सके कि किसने कब और कितना किराया जमा करवाया था यानी यह सारा बर्डन भी सब्जी बेचने वालों पर छोड दिया है जो कि गरीब व कम शिक्षित या अनपढ है। जानकारी में लाया गया है कि किराया जमा करवाने के बाद जो रसीद दी जाती है उस पर न तो कार्यालय नगरपालिका मण्डल सांभर की मुहर होती है और न ही यह पता चलता है कि जिसने किराया मौके पर आकर लिया है उसका पद और नाम क्या है।  यहां तक कि साफ सफाई करवाने के लिये पैसे देकर यह काम करवाया जाता है, इसकी शिकायत अनेक बार पालिका व तत्कालीन चेयरमैन सभी से की जा चुकी है, लेकिन सब जगह पोपाबाई का राज चल रहा है। 

पूर्व शम्भूदयाल माली व व्यापार महासंघ के अध्यक्ष राजेन्द्र नारनोली से बात करने पर उन्होंने बताया कि वर्तमान हालात को देखते हुये खुली जगह में एक बड़ी सब्जी मण्डी का निर्माण करवाये जाने की जरूरत है, क्योंकि जिस जगह यह सब्जी मण्डी है के रास्ते इतने सकडे है कि आसपास के किसानों को यहां आकर सब्जी बेचने में मुश्किल होती है किसानों ने यहां आने से किनारा कर लिया है, करीब नब्बे प्रतिशत से अधिक किसान अब बाहर जाकर अपना माल बेचते है और आडतियों को जयपुर जाकर सब्जी लानी पड रही है जिससे सब्जियों के दामों पर भी असर पडता है, यदि पालिका यहां पर एक बडी सब्जी बनाने का विकल्प ढूंढ ले तो सांभर के लोगों को इससे काफी फायदा होगा। इस सब्जी मण्डी के पास जो शौचालय है वह इतना बदबूदार व गंदा है कि महिलाओं के लिये तो दूर पुरूष भी यूज करने में कतराते है, इस और भी ध्यान दिये जाने की खास जरूरत है।