स्वास्थ्य समस्याओं और 14वें आईवीएफ सर्किल के बाद नासिक की महिला देगी जुड़वा बच्चों को जन्म
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नासिक। हिम्मत न हारे तो जीत निश्चित होती है। ये बात किताबों से निकल कर अब हमारे जीवन में भी देखने को मिल जाती है। इस बात का जीता जागता उदहारण प्रस्तुत किया है नासिक के रहने वाले अभि और विभा (काल्पनिक नाम ) ने। शादी के 15 साल हो चुके हैं। दोनों एक बच्चे के माता पिता भी हैं। लेकिन हम दो हमारे दो के सपने को संजोने वाले ये दम्पति, अपने सपने को साकार करने निकल चुके थे। लगातार प्रयास से जब विभा गर्भधारण न कर सकीं तो इन्होंने विज्ञान का शरण लेना उचित समझा और सहायक प्रजनन तकनीक (एआरटी) का उपयोग करके स्वाभाविक रूप से गर्भ धारण करने की कोशिश की और रूख किया शहर स्थित देश के बैहतरीन आईवीएफ सेंटर, इंदिरा आईवीएफ की ओर।
जहाँ पहुंच कर 36 वर्षीय विभा ने क्रोनिक हाइपरटेंशन और हाइपोथायरायडिज्म होने की सूचना दी। फिर फर्टिलिटी टेस्ट्स करने पर पाया गया कि एडिनोमायोसिस है। विदित हो कि ऐडेनोमायोसिस महिलाओं में होने वाली ऐसी बीमारी है जिसमें गर्भाशय की मांसपेशियों के भीतर के लाइनिंग टिश्यू (एंडोमीट्रियम) का स्थानान्तरण गलत जगह पर होने से गर्भाशय की मांसपेशियों में सूजन आ जाती है। इतना ही नहीं विभा के बाईं फैलोपियन ट्यूब तरल पदार्थ (बाएं टर्मिनल हाइड्रोसालपिनक्स) से अवरुद्ध थे। इधर अभि के वीर्य के नमूने का विश्लेषण करने पर, उनके ओलिगोएस्टेनेथोएटेरोज़ोस्पर्मिया यानी ओएटी का पता चला। इस स्थिति को शुक्राणु में तीन विशिष्ट दोषों द्वारा चिह्नित किया जाता है कम शुक्राणु संख्या, खराब शुक्राणु गति और असामान्य आकार।
हालात काफी गंभीर थें लेकिन उत्साह थोड़ा भी कम न था। इस विषय पर इंदिरा आईवीएफ कि आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ पल्लवी उंटवाल ने विस्तार से बताया कि पहले तो उन्होंने एआरटी को 12 बार सेल्फ एग (यानी खुद का अंडा ) देने का प्रयास किया था, जो सभी में विफल रहे, इसके बाद दाता (डोनर) अंडे का उपयोग करते हुए दो बार गर्भपात हुआ। ऐसे में स्वस्थ अंडे के आरक्षित और शुक्राणुओं के युगल स्तर को देखते हुए, दाता भ्रूण का विकल्प चुनना सबसे अच्छा विकल्प होता है। डोनर भ्रूण आनुवंशिक रूप से और शारीरिक रूप से स्वस्थ होते हैं और गर्भाशय में आरोपण की बेहतर संभावना रखते हैं, और बाद में जीवित जन्म लेते हैं।
डॉ. पल्लवी ने बताया कि आरोपण के लिए विभा के गर्भाशय को तैयार करने के लिए, उसे भ्रूण हस्तांतरण से 10 दिन पहले प्लेटलेटसमृद्ध प्लाज्मा (PRP) दिया गया था। लेजर असिस्टेड हैचिंग ने भी साइट को तैयार करने में मदद की। दो दाता भ्रूण स्थानांतरित किए गए थे। फिर जब हमने टेस्ट किये तो मानव कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (एचसीजी) के स्तर और एक अल्ट्रासाउंड ने दो बढ़ते भ्रूणों की उपस्थिति की पुष्टि की। और इस तरह 14 बार आईवीएफ की असफलता के बाद भी विभा.अभि के जिद और इंदिरा फर्टिलिटी फाइटर के कुशल ट्रीटमेंट ने कामयाबी दिला ही दी। अपनी इस जीत पर उत्साहित डॉ पल्ल्वी बताती है कि "बार-बार (आवर्तक )आरोपण विफलता एक जटिल समस्या है जो कई कारणों से होती है और सबके अलग अलग उपचार होते हैं। हमें तो उम्मीद की आखिरी किरण जब तक दिखाई देती है हम लड़ते हैं।
इंदिरा आईवीएफ के बारे में
इंदिरा आईवीएफ देश भर में 94 केंद्रों के साथ भारत की सबसे बड़ी फर्टिलिटी क्लीनिक श्रृंखला है, जहाँ 2200 से अधिक ऊर्जावान लोग काम करते हैं। इंदिरा आईवीएफ एक वर्ष में लगभग 33,000+ आईवीएफ प्रक्रिया करता है। ज्ञात हो कि ये संख्या देश में सबसे अधिक है।
एक जिम्मेदार अग्रणी संस्था के रूप में, इंदिरा आईवीएफ लगातार निःसंतानता से जुड़ी हुयी गलत धारणाएं, मिथक आदि को दूर करती हुई, जनजागरण का काम भी करती है और सही, सटीक एवं वैज्ञानिक जानकारियां देने का प्रयास करती है। इंदिरा आईवीएफ फर्टिलिटी उपचार के लिए एक फोर्स तैयार करने का काम भी इंदिरा फर्टिलिटी एकेडमी के माध्यम से करती है। तभी तो इनके डॉक्टर्स फर्टिलिटी फाइटर्स कहे जाते हैं और इनके नाम 75 हज़ार से ज्यादा सक्सेस स्टोरीज हैं। अपने सेक्टर में अग्रणी होने के कारण इंदिरा आईवीएफ में 2019 में एक अमेरिकी प्रमुख वैश्विक इक्विटी फर्म, टीए एसोसिएट्स ने निवेश किया।