कांग्रेस का दक्षिण गढ़ पुडुचेरी भी ढहा

लेखक : लोकपाल सेठी

(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक)

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पिछले दो हफ्तों में पुडुचेरी, जहाँ दक्षिण के इस एक मात्र छोटे से राज्य में कांग्रेस की सरकार थी, दो बड़ी घटनाएँ घटी। एक शाम अचानक राष्ट्रपति भवन से यह कहा गया कि इस केंद्र शासित प्रदेश के उप राज्यपाल तथा अपने समय की दबंग पुलिस अधिकारी किरण बेदी को उनके पद से हटा दिया गया है। इसके कुछ दिन बाद ही बहुमत के अभाव में कांग्रेस-द्रमुक की मिली जुली सरकार का पतन हो गया। इन दोनों घटनाओं का अगले महीने दो महीनों के भीतर होने वाले विधानसभा के चुनावों पर पड़ेगा। 

जैसा अंदाज़ था, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद वी. नारायणसामी ने आरोप लगाया कि केंद्र की बीजेपी नीत सरकार के इशारे पर उनकी सरकार को गिराया गया है। लेकिन बीजेपी और कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने इसे परले सिरे से खारिज कर दिया। चूँकि सरकार के पतन के तुरंत बाद बीजेपी और एन डी ए के अन्य घटकों, जिसमें अन्नाद्रमुक भी शामिल है, अपनी सरकार बनाने का दावा नहीं किया। इनके नेताओं ने कहा कि राज्य में नयी सरकार का गठन विधानसभा के चुनावों के बाद ही किया जायेगा। लगभग दो साल पहले कर्नाटक में कांग्रेस-जनता दल (स) की मिली जुली सरकार के पतन के बाद दक्षिण में पुडुचेरी ही एक राज्य जहाँ कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बची थी। चूँकि 33 के सदन में कांग्रेस के पास अपना बहुमत नहीं था इसलिए सरकार द्रमुक के सहयोग से चल रही थी। दक्षिण के इस राज्य में बीजेपी नहीं के बराबर है इसलिए अभी यह कह पाना सही नहीं होगा वहां चुनावों के बाद किस की सरकार  बनेगी। 

हाँ, किरण बेदी को यहाँ से हटाकर बीजेपी एक बड़ी कूट राजनैतिक चाल चली है। उनकी वहां नियुक्ति के बाद इस पूर्व आईपीएस अधिकारी और सरकार में टकराव शुरू हो गया था। एक समय हालात ऐसे हो गए थे कि मुख्यमंत्री नारायणसामी उप राज्यपाल के प्रशासन में कथित लगातार दखल के खिलाफ सड़कों पर उतर आये थे। उनका आरोप था कि केंद्र में बीजेपी सरकार के इशारे पर उनकी सरकार के विकास कार्यों को अंजाम नहीं देने दिया जा रहा। केंद्र से मिलने वाला वितीय सहयोग भी नहीं मिल रहा। उनका एक बड़ा आरोप था की उप राज्यपाल सरकारी नियुक्तियों को भी अनुमति नहीं दे रही। दक्षिण का यह केंद्र शासित प्रदेश तमिलभाषी राज्य है जहाँ हिंदी का खुलकर विरोध होता रहा है। आरोप लगाया जाता रहा है कि केंद्र यहाँ हिंदी को थोपना चाहता है। इसके लिए  उप राज्यपाल जैसे पद का दुरूपयोग किया किया जा रहा है। किरण बेदी को तमिल विरोधी भी बताने की हर कोशिश की गयी। 

उधर बेदी का कहना था कि वे केवल संविधान तथा संबंधित कानूनों की सीमा में रह कर अपने अधिकारों को उपयोग कर रही थी। टकराव तब हुआ जब मुख्यमंत्री नारायणसामी ने कानून और नियमों को किनारे पर रख कर काम करने की जिद्द की और उनकी सरकार ने मनमाने ढंग से फैसले लेना शुरू कर दिया। ऐसे फैसले भी किये गए जो निर्वाचित सरकार के अधिकार क्षेत्र में नहीं थे। इन विषयों पर राज्य के प्रशासक के रूप में केवल वे ही निर्णय कर सकती  थी। 

अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार रहती तो यहाँ उप राज्यपाल के रूप में कथित रूप से दखल करना एक बड़ा चुनावी मुद्दा बन सकता था। इस बात को   नारायणसामी तथा द्रमुक के नेताओं न छुपाया नहीं था। बेदी के हटने के बाद यहाँ नया उप राज्यपाल नियुक्त नहीं किया गया बल्कि तेलंगाना के राज्यपाल  तमिलीसाई सौन्दर्यराजन को पुडुचेरी के उप राज्यपाल के पद का अतिरिक्त कार्यभार दे दिया गया। वे तमिलनाडु की रही वाली है तथा बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव और तमिलनाडु बीजेपी की अध्यक्ष रह चुकी है। उनको चुनावों से पहले वहां का कार्यभार देकर बीजेपी यह सन्देश देना चाहती है कि वे तमिल विरोधी  नहीं है। दूसरी और किरण बेदी राजनीतिक नेता अधिक अफसरशाह थी और उनका काम करने का तरीका भी मोटे तौर वही था। जबकि सौन्दर्यराजन विशुद्ध रूप से राजनीतिक है और चुनावों में वे परोक्ष रूप से बीजेपी को सहायता कर सकती है। वे नाडार समुदाय से आती है जो पुडुचेरी में सामाजिक और  राजनीतिक रूप से बहुत प्रभावी है। तमिलनाडु की होने के कारण वे पुडुचेरी की राजनीति को भी समझती है। 

राज्य विधान सभा की कुल संख्या 33 जिसमें 30 निर्वाचित सदस्य है तथा तीन सदस्यों को केंद्र नामजद करता है। बीजेपी को 2016 के चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली थी। बाद में जो तीन सदस्य नामजद किये गए वे बीजेपी शामिल हो गए। इन तीनों सदस्यों को सदन में मत देने का भी अधिकार है। इन चुनावों में कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं और स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। बाद में इसने द्रमुक और एक निर्दलीय के समर्थन से सरकार बनाई। पिछले कुछ हफ़्तों में कांग्रेस के पांच तथा द्रमुक के दो सदस्यों ने सदन से त्यागपत्र दे दिया। एक सदस्य को पहले ही अयोग्य घोषित किया जा चुका था। इस प्रकार सदन की  प्रभावी संख्या 26 रह गयी। सदन में कांग्रेस और द्रमुक के पास केवल 12 सदस्य ही रह गए थे और वह अपना बहुमत साबित करने में असफल रही।  (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)