पौरोहित्य की बुराइयों का खात्मा सबसे बड़ा धर्म : स्वामी विवेकानंद

जयंती 12 जनवरी पर विशेष 


लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत 

वेदांत के प्रकाण्ड विद्वान, आडम्बरों के प्रबल विरोधी और पाश्चात्य विश्व में हिंदू धर्म की सारगर्भित व्याख्या करने वाले प्रख्यात स्वामी विवेकानंद ने न तो स्वंय को कभी तत्व जिज्ञासु की श्रेणी में रखा, न कभी सिद्ध पुरूष माना और न कभी दार्शनिक ही कहा। सदैव जीवन में संपूर्ण रूप से चरित्र निर्माण को प्रमुखता दिये जाने और सत्य के आलंबन पर बल दिया। उनका मानना था कि परोपकार, विस्तार व प्रेम ही जीवन है और परोपकार न करना, संकोच व द्वेष मृत्यु। उनके अनुसार हमने उसी दिन से मरना शुरू कर दिया जब से हम अन्यान्य जातियों से घृणा करने लगे। यह मृत्यु विस्तार के बिना किसी उपाय से रूक नहीं सकती जो जीवन का गति नियामक है। 

दास जाति के दोष, पराधीनता के जन्म, पाश्चात्य विश्व के लोगों की सफलता और किसी राष्ट्र की दुर्बलता के कारणों का समय पर अपने प्रवचनों व भक्तों को लिखे पत्रों में उन्होंने विस्तार से खुलासा किया है। उनका सपना था कि पराधीन भारत के बीस लोगों में नवशक्ति का संचार हो, करोड़ों-करोड़ पद्दलित दारिद्रय, पुरोहिताई के छल-प्रपंचों, प्रबलों के अत्याचारों से मुक्त हों, गरीबी और अशिक्षा के अभिशाप के चलते जो असभ्यता के प्रतीक माने जाते हैं, उनके जीवन में खुशहाली आए। इसके लिए उन्होंने पर भरोसा रखते हुए निस्वार्थ भाव से चारित्रिक दृढ़ता के साथ कर्तव्य पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी। उनका उनका स्पष्ट मत था कि प्रत्येक दास जाति का मुख्य दोष ईर्ष्या होता है और सदभाव का अभाव पराधीनता उत्पन्न करता है व स्थायी बनाता है। पाश्चात्य वासियों की सफलता का रहस्य यही सम्मिलन शक्ति है। 

जितना कोई राष्ट्र निर्बल या कायर होगा, यह उतना ही अधिक प्रकट होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जिनकी सदाचार सम्बंधी उच्च अभिलाषा मर चुकी है, जो भविष्य की उन्नति लिए बिल्कुल भी चेष्टा नहीं करते और भलाई करने वाले को धर-दबाने के लिए सदा तत्पर रहते हैं, उन मृत जड़ पिण्डों के भीतर प्राण कर पाना असंभव है। यह सच है कि अमरीकी और यूरोपियन विदेश में भी अपने देशवासियों की सहायता करता है, जबकि हिंदू अपने देशवासियों को अपमानित होते देख हर्षित होता है। हमारे सामने समस्या है कि स्वाधीनता के बिना किसी प्रकार की उन्नति असंभव है उन्नति की पहली शर्त स्वाधीनता है। यह हमें विचार की अभिव्यक्ति के साथ-साथ खान-पान, पोशाक, पहनावा, विवाह आदि हर मिलनी चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि वह दूसरों को हानि न पहुंचाए। 

उन्होंने देशवासियों को याद दिलाया कि- 'कर्मण्येवाधिकारस्ते फलेषु कदाचन' अर्थात तुम्हें कर्म का अधिकार है, फल का नहीं। चट्टान के समान दृढ़ रहो, सत्य की हमेशा जय होती है। देश को नवविद्युत शक्ति की आवश्कता है जो जातीय धमनी में नवीन बल उत्पन्न कर सके। यह काम हमेशा से धीरे-धीरे ही हुआ है। निस्वार्थ भाव काम करने में संतुष्ट रहो, अपनी आत्मा को पूर्ण रूप से शुद्ध, दृढ़ और निष्कपट रहते हुए किसी को धोखा न दो। क्षुद्र मनुष्यों व मूर्यो बकवास से निराश न हो, उन पर ध्यान न दो क्योंकि सैकड़ों युगों के उद्यम से चरित्र का गठन होता है और सत्य का एक शब्द भी नहीं हो सकता, वह देर-सबेर प्रकट होगा ही, इसलिए आगे बढ़ों। सत्य अनश्वर है, गुण और पवित्रता भी अनश्वर है, बस स्थिर चित्त रहो। 

कोई भी तुम्हारे विरुद्ध कुछ नहीं कर सकेगाउन्होंने कहा कि-'अत्याचारों से पीड़ित भारत के करोड़ों पद्दलितों के लिए आओ हम सभी हमेशा प्रार्थना ज्योतिगर्मय'... 'कृपामयी ज्योति, रास्ता दिखाओ, और तब अंधकार में से एक किरण दिखाई देगी, पथ-प्रदर्शक कोई हाथ आगे मैं निर्धन हूं और निर्धनों से प्रेम करता हूं। देश के करोड़ों नर-नारी जो सदा गरीबी में फंसे हैं, उनके लिए किसका उनके उद्धार का क्या उपाय है ? कौन उनके दुख में भी दुखी है ? वे अंधकार से प्रकाश में नहीं आ सकते, न उन्हें शिक्षा कौन उन्हें प्रकाश देगा और कौन उन्हें द्वार-द्वार शिक्षा देने के लिए घूमेगा? यथार्थ में ये ही तुम्हारें ईश्वर हैं। ये ही तुम्हारे बनें। निरंतर इनके लिए ही सोचो, काम करो, प्रार्थना करो-प्रभु तुम्हें मार्ग दिखायेंगे। मेरी दृष्टि में वह महात्मा है जिसका लिए सदैव द्रवीभूत होता है, अन्यथा वह दुरात्मा है। 

जब तक देश में करोड़ों भूखे और अशिक्षित हैं, तब तक वह हरेक आदमी खर्च पर शिक्षित हुआ है, विश्वासघातक है। वे लोग जो गरीबों को कुचलकर धनवान बनकर आज ठाठ-बाट से अकड़कर करोड़ों देशवासियों के लिए कुछ न करें तो घृणा के पात्र हैं। भाइयों ! यदि हम संसार का सबसे अच्छा धर्म चाहते हैं, तो पौरोहित्य की बुराईयों को उखाड़ फेंकें। मुझे विश्वास है एक दिन ऐसा अवश्य संभव होगा। आओ हम सब देशवासियों की अपनी इच्छा शक्ति को एक्यभाव से निरंतर प्रार्थना में लगावें। हम अनजान, बिना सहानुभूति के विलाप रहित, बिना सफल परन्तु हमारा एक भी विचार नष्ट न होगा, वह कभी-न-कभी फल अवश्य लाएगा। स्वामी जी के यह विचार उनकी भावनाओंऔर जीवन दर्शन का स्पष्ट प्रमाण हैं, साथ ही यह संदेश भी कि उनके बताये मार्ग पर चलकर ही विश्व का कल्याण संभव है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार हैं)

लेखक परिचय : ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद, अध्यक्ष, राष्ट्रीय पर्यावरण सुरक्षा समिति, ए-326, जीडीए फ्लैट्स, फर्स्ट फ्लोर, मिलन विहार, फेज-2, अभय खण्ड-3, समीप मदर डेयरी, इंदिरापुरम्, गाजियाबाद-201010, उप्र मोबाइल : 9891573982 ई-मेल : rawat.gyanendra@rediffmail.com rawat.gyanendra@gmail.com