किसान आंदोलन : विचारों-मतों और चित्रों की दृष्टि में...

प्रस्तुतिकर्ता : ज्ञानेन्द्र रावत वरिष्ठ पत्रकार एवं चर्चित पर्यावरणविद हैं

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यह विडम्बना ही है कि देश के किसान को आज एक वर्ग विशेष के विचारवंत महाभट विद्वानों के द्वारा खालिस्तानी, विरोधी दलों के चमचे और न जाने कितने - कितने विशेष अलंकरणों से विभूषित किया जा रहा है। ऐसा इसलिए कि वह सरकार की कृषि-किसान विरोधी नीति के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। वह गूंगी और बहरी सरकार को अपनी पीड़ा सुनाना चाहते हैं। इसीलिए वह दिल्ली आना चाहते हैं। लेकिन वह दिल्ली न आ सकें, इस ख़ातिर सरकार ने जो जतन किये, उनको रास्ते में ही रोकने के लिए पुलिस बलों की तैनाती की, सड़कें खोदी, मिट्टी के टीले बनाये, गड्ढे खोदे,  यह क्या जाहिर करता है। यह सरकार की हठधर्मिता और लोकतंत्र विरोधी मानसिकता का प्रमाण है। इससे जाहिर हो जाता है कि अपने हक के लिए आवाज बुलंद करना इस सरकार के दौर में अपराध है।



 यदि यह अपराध है तो फिर देश के सत्ताधीश समूची दुनिया में किस मुंह से सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने का दंभ भरने नहीं थकते। यह आंदोलन सरकार के किसान विरोधी रवैये का परिणाम है। यदि सरकार का इसी तरह का रवैया बरकरार रहा तो अभी तो वह सरकार की कृषि - किसान विरोधी नीति का ही विरोध कर रहे हैं, भविष्य में किसान वर्ग के लिए आरक्षण की मांग न करने लग जायें, इस संभावना को नकार नहीं जा सकता। समय की मांग है कि सरकार किसानों की मांग पर गंभीरता से देश हित को दृष्टिगत रखते हुए विचार करे और उनसे बातचीत के माध्यम से समस्या का हल निकालने का प्रयास करे। यही वक्त का तकाजा है। अन्यथा यह विरोध आत्मघाती भी हो सकता है। (लेखक के अपने विचार है)