लेखक : प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़
पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान
http//daylife.page
अणुव्रत जीवन की आचार संहिता है। आचार्य तुलसी ने इस आंदोलन का सूत्रपात किया था। जैन आगमों में अणुव्रत और महाव्रत के रूप में व्रतों का निरूपण है। अणुव्रत का मतलब होता है छोटे-छोटे संकल्प। जिनका पालन मानव अपने जीवन में कर सकता है। महाव्रत यतियों और संन्यासियों के लिए है। इनके पालन में किसी भी प्रकार की त्रुटि नहीं होनी चाहिए। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह पांच महाव्रत है। मुनियों को निरतिचार पूर्वक पालन करना पड़ता है। गृहस्थ अपने लौकिक जीवन के निर्वाह के लिए पूर्ण रूप से इनका पालन नहीं कर सकते, इसलिए इनका पालन करने के लिए गृहस्थों को छूट है। इसलिए इसे अणुव्रत कहा जाता है। इन्हीं सूत्रों का विस्तार पूर्वक आचार संहिता के रूप में आचार्य तुलसी ने वर्णन किया है। यह हर वर्ग के लिए है। शिक्षक, कृषक, व्यापारी इत्यादि समाज में जितने भी वर्ग है सभी वर्गों के लिए एक आचार संहिता की रचना उन्होंने की है। जिसका पालन यदि मनुष्य करता है तो उसका जीवन निरापद रूप से व्यतीत हो सकता है। आचार्य तुलसी का अणुव्रत आन्दोलन स्वतंत्रता की प्राप्ति के साथ ही प्रारम्भ हो गया। उनको इस बात की चिन्ता थी कि आजादी प्राप्त होने के बाद यदि इसको सुरक्षित रखना हो तो देश के लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वे अपने कत्र्तव्य का पालन निष्ठापूर्वक करे। इस आंदोलन का सूत्रपात उन संकल्पों के साथ हुआ जो आज भी न केवल अपनी प्रासंगिकता बनाये है बल्कि अपने प्रभाव को भी अक्षुण्ण रखे हुए है। ये 11 सूत्र या नियम अणुव्रत आंदोलन के मूल है, जिनका राष्ट्र संत आचार्य श्री तुलसी ने आचार संहिता के रूप में प्रतिपादन किया-
1. निरपराध प्राणी की हत्या न करना।
2. किसी पर आक्रमण न करना, आक्रामक नीति का समर्थन न करना और विश्वशांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्नशील रहना।
3. हिंसात्मक उपद्रवों तथा तोड़फोड़ मूलक प्रवृत्तियों में भाग न लेना।
4. धार्मिक सहिष्णुता का भाव रखते हुए साम्प्रदायिक उत्तेजना न फेलाना।
6. व्यवहार तथा व्यवसाय में ईमानदार रहना।
7. निर्वाचन के समय अनैतिक आचरण न करना।
8. सामाजिक कुरीतियांे, रूढ़ियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन न देना, दहेज, मृत्युभोज, बालविवाह आदि का विरोध करना।
9. मादक, नशीले द्रव्यों, शराब, गांजा, चरस, हेरोइन, भांग, तंबाकू, मांस आदि का सेवन न करना।
10. ब्रह्मचर्य का, इंद्रिय संयम का निरंतर विकास करना।
11. व्यसन मुक्त जीवन यापन करना और पर्यावरण की समस्या के प्रति सजग रहना।
इन नियमों व्रतों पर ध्यान देने से अनेक प्रकार की समस्याओं से निजात मिल सकती है। इससे मानव में चारित्रिक पवितत्रता आती है और उनका जीवन अनुशासन में रहता है। इन नियमों में कोई धार्मिक साम्प्रदायिक आग्रह नहीं है। ये सभी को चारित्रिक पावनता प्रदान करने वाले है। स्वस्थ समाज की संरचना करने वाले है। इसलिए इन्हें हिन्दू, मूस्लमान, सिक्ख, ईसाई सभी सम्प्रदायों, जातियों के लोग अपने जीवन में क्रियान्वित कर सकते है। यह सामाजिक क्रान्ति का आंदोलन है और एक प्रकार से मानवीय आचार संहिता है। अणुव्रत आंदोलन मानव धर्म का आंदोलन है। इसका आधार है- संयमः खलु जीवनम्। संयम का आलोक दिखाने वाला यह अणुव्रत आंदोलन सभी के लिए सुलभ और सुगम है। विद्यार्थी, व्यापारी, वकील, अध्यापक, नेता, डाॅक्टर, साधु संन्यासी, अधिकारी, मजदूर, किसान सभी अणुव्रत आंदोलन के पथिक बनकर अपने तथा समाज के उत्थान में सहायक बन सकते है।
सुख की चाह को सीमित करना, परिग्रह को सीमित करना, इंद्रिय तथा मन पर नियंत्रण रखना अणुव्रत की आचार संहिता नैतिक उत्थान के लिए है। यह सर्वधर्म समन्वय, सहिष्णुता, हिंसा मूलक प्रवृत्तियों का प्रशमन, अहिंसा, प्रलोभन से बचना आदि के द्वारा हम सामाजिक या जातीय भेदभाव को दूर कर सकते है, साम्प्रदायिक भावना को समाप्त कर सकते है और एक उदारचेता मनुष्य का निर्माण कर सकते है। अणुव्रत आंदोलन नैतिक मूल्यों का दस्तावेज है। जिसमें मानवता का कल्याण सन्निहित है यह एक व्यापक दृष्टि है सबको जोड़ने की और एक साथ लेकर चलने की क्षमता इस आंदोलन में है। यही उदारवादी दृष्टिकोण सामने देखकर सभी धर्मों सम्प्रदायों के लोगों ने आचार्य श्री तुलसी के निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण किया और करोड़ों की संख्या में अणुव्रती बन गये। अणुव्रत आंदोलन मनुष्य में नैतिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का विकास सौपान है। इसमें मनुष्य, कुटुम्ब, राष्ट्र, सम्पूर्ण मानव जाति के उत्थान का संबल निहित है। इस प्रकार अणुव्रत आंदोलन धर्म निरपेक्ष और मानव जाति का उत्थान करने वाला आंदोलन है।