व्यंग्य
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हमने अखबार में सारा किस्सा विस्तार से पढ़ा कि अमित जी के ट्विटर-परिवार के किसी एक सदस्य ने उनके मरने की कामना कर दी। वैसे कोई कुछ भी कामना कर सकता है लेकिन क्या मात्र कामना करने से कुछ हो सकता है ? शास्त्र कहते हैं-
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः .......
राजस्थानी में एक कहावत है- गीदड़ों की बद्दुआ से ऊँट थोड़ा मरता है !
लेकिन लोग हैं कि अपने लिए अच्छी और दूसरों के लिए बुरी कामना करने से बाज नहीं आते। वे यह नहीं सोचते कि जब किसी के चाहने से कुछ नहीं होता तो फिर किसीके लिए बुरा सोचकर क्यों अपना मन खराब किया जाय |सबके भले में ही हमारा भी भला है।
सदा शांत रहने वाले अमित जी गुस्से में आपा खो बैठे |और अपनी नौ करोड़ की ट्विटर सेना को आदेश दे दिया- ठोक दो साले को।
हम उनके स्वस्थ होने की कामना करते हैं। हमसे छोटे हैं तो और भी मन से उनको आशीर्वाद देते हैं लेकिन उनका आपा खो देना पता नहीं, हमें क्यों अच्छा नहीं लगा।
जब हमने तोताराम से चर्चा की तो बोला- इससे तो अमित जी को खुश होना चाहिए था। अरे, उनके लिए शुभकामना करने वाले तो देश के स्वास्थ्य मंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक हैं। वैसे भी वे साधन संपन्न हैं, पहले भी मौत को मात दे चुके हैं तो किसी एक ट्विटरिये को इतना महत्त्व नहीं देना चाहिए था। हमारे यहाँ तो कहा जाता है कि किसी की मौत की खबर उड़ा देने से उसकी उम्र बढ़ जाती है। तभी सुन्दर बच्चे को दिठौना लगाया जाता है, नए घर पर पुराना टायर लटकाया जाता है। लेकिन जब आदमी ज्यादा बड़ा हो जाता है तो उसे प्रशंसा के अतिरिक्त कुछ भी सुनना नहीं सुहाता। वे अपने ट्विटर पर जो मन चाहे लिखते रहते हैं और करोड़ों लोग बेवकूफ की तरह देखते और लाइक भेजते रहते हैं। इन लाइकों से अमित जी को करोड़ों रुपए की आमदनी होती रहती है। यह भी एक बड़ा धंधा है। यदि ऐसा नहीं होता तो प्रियंका चोपड़ा को अपनी अन्तरंग फोटो ट्विटर पर डालने में क्या मज़ा आता है ? लेकिन क्या करे धंधा जो ठहरा।
हमने कहा- लेकिन तोताराम यदि उनकी बात मानकर उनके नौ करोड़ अनुयायी तलवार, तमंचा लेकर उस अशुभ कामना करने वाले को ठोकने के लिए निकल पड़े तो क्या होगा ? इतनी बड़ी तो भारत, चीन, रूस, अमरीका आदि की सम्मिलित सेना भी नहीं है। देश में तो अराजकता फ़ैल जाएगी |पता नहीं,किसके भरोसे किसको ठोक बैठेंगे।
बोला- ये कोई किसी राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्त्ताओं की तरह मोब लिंचिंग में अपना भविष्य तलाशने वाले नहीं होते। ये तो केवल ट्विटर पर टर्राने वाले मेंढक होते हैं।
हमने कहा- गाँधी ने तो अपनी हत्या का प्रयत्न करने वाले हिन्दू महासभा के कार्यकर्त्ता मदनलाल पाहवा को माफ़ कर दिया था। राम और कृष्ण भी अपने समय के नायक थे लेकिन उन्हें भी इतना क्रोध करते तो नहीं देखा जबकि उन्हें भी अपने समय में बहुत कुछ प्रिय-अप्रिय सुनना पड़ा था। राम चाहते तो मंथरा का एनकाउंटर करवा देते या धोबी को अमित जी की तरह किसी बन्दर-भालू से ठुकवा देते। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
बोला- क्योंकि वे केवल नायक थे। ये महानायक है और वह भी एक दो सदी के नहीं, सहस्राब्दि के। (लेखक के अपने विचार है)
लेखक : रमेश जोशी
प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए.