उम्मीदों का द्वार ‘प्रेम’


फोटो : साभार 


daylife.page


आधुनिक युग में प्रेम का सही मर्म समझ नहीं आता, बस एक सौदा जैसा प्रतीत होता कि जैसा करोगे वैसा पाओगे। इसी विचारधारा ने व्यक्ति को प्रेम की खोखली परतों के आवरण से ढक रखा, जिसमें पे्रम व हिंसा साथ-साथ दिखते और इसी परिवर्तन ने सोचने पर मजबूर किया कि क्या ऐसा प्रेम चिट्ठी में भेजा व क़िताब में दुबका प्रेम है? क्या ये सच्ची भावनाओं का अकूत भण्डार, सपनों में सजा संसार, जो पे्रमी के प्रति छलकती निश्छल अभिव्यक्ति जैसा हो।


फिर भी दोस्तों... प्रेम आसान नहीं। उसमें धोखा, फरेब व इतनी निराशाएं भी होती रहीं हैं। फिर भी एक उम्मीद, विश्वास वही आग, वही लौ, वही तड़फन, वही अर्थ के दहलीज हैं...। बस पे्रम-प्रेम है, जिसके बिना व्यक्ति का मन सूना व जग सूना लगता क्योंकि प्रेम करना मानव का अधिकार व ईश्वर द्वारा दिया गया, सबसे सुन्दर व सार्थक उपहार, जिसे मनुष्य जीवन में अनुभव करके स्वयं को संसार से जुड़ा, प्रसन्न रहता और इसी प्रेम के बन्धन में बंधकर रिश्तों की आवश्यकता व महत्व समझता है।


निष्कर्ष है कि प्रेम अनश्वर और जब तक संसार चलता रहेगा तब तक प्रेम दस्तक देता रहेगा और व्यक्ति को प्रेम के साथ जीवन का आनन्द लेने का स्मरण करवाता रहेगा। उम्मीदों का द्वार, ईश्वर का उपहार प्रेम ही तो है।



लेखिका : रश्मि अग्रवाल
वाणी अखिल भारतीय हिन्दी संस्थान
बालक राम स्ट्रीट, नजीबाबाद- 246763, (उ.प्र.)
 मो. न./व्हाट्सप न. 09837028700
E.mail- rashmivirender5@gmail.com