सतत विकास के लिए सींचना होगा जड़ों को


जड़ों की गहराई बताती है कि वृक्ष कितना ऊंचा होगा,
जड़ों का विस्तार बताता है कि वृक्ष कितना सघन होगा,
जरूरी है सहजना सींचना इन जड़ों को वर्तमान में,
वरना भविष्य के प्रश्नों का उत्तर भी हमें ही देना होगा।


वृक्ष की जड़ें जितनी गहरी होंगी वृक्ष उतना ही ऊँचा और मजबूत होगा और जड़ें जितनी फैली होंगी वृक्ष उतना ही सघन होगा। 
जितनी गहरी जड़ें होंगी वृक्ष उतना ही सशक्त होगा और तूफान भी उसे गिरा नही सकेगा ठीक इसी प्रकार जड़ें जितना अधिक फैलाव लिए होंगी उनकी एकदूसरी जड़ों के साथ पकड़ अच्छी होगी जो तेज आंधी में उन्हें एक दूसरे का सहायक बनाएंगी। भविष्य के साथ संतुलन बनाये रखने के लिए इन जड़ो का विस्तार और गहराई दोनों में बढ़ना जरूरी है।


अब हम एक देश के संदर्भ में बात करें तो उसकी जड़ें होती हैं उसकी प्राकर्तिक संपदा, पर्यावरण, उसके गांव और क्षेत्रीय अंचल जो कि उस देश की आत्मा भी कहलाते है यही वो प्राथमिक क्षेत्र हैं जो लोक कला, परम्परा, संस्कृति, हस्तशिल्प, खेती बाड़ी इत्यादि से भरपूर हैं विकास का तानाबाना बुनने में इनका अच्छा खासा योगदान होता है। यहां देश के संतुलित और सतत विकास की अवधारणा को समझना भी आवश्यक है, विकास से अभिप्राय मात्र देश की राष्ट्रीय आय या उत्पादन में वृद्धि से नही है अपितु उस देश का बुनियादी ढांचा कितना विकसित है या नही यह जानना भी आवश्यक है। बुनियादी ढांचे को ही देश की आधारभूत संरचना भी कहते हैं जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, दूरसंचार, परिवहन, शक्ति-ऊर्जा, बांध व सिचाई क्षमता, विधुतीकरण, सुरक्षा,सड़क, डाक व कोरियर, कुटीर उद्योग आदि अनेक क्षेत्र शामिल हैं।


यदि विश्व के देश सतत व संतुलित विकास चाहते हैं तो इसकी शुरूआत भी जड़ों से ही होनी चाहिए। अर्थात विकास का दृष्टिकोण '' ग्रासरूट विकास '' होना चाहिए। लेख के प्रारम्भ में हमने जड़ों की गहराई और फैलाव की बात भी इसी संदर्भ में कही है। हमारे गांव जितने अधिक विकसित होंगे देश रूपी तना उतना ही मजबूत होगा। एक देश की रीढ़ की हड्डी होती है उसकी जनता अथार्थ जनसंख्या इसीलिए इस जनसंख्या का सशक्त होना भी अति आवश्यक है। गांवों और शहरों में कितनी जनसंख्या निवास करेगी ये निर्भर करता है कि औद्योगिकरण का बटवारा कैसा है यदि इसका विस्तार शहरी क्षेत्रों में ज्यादा है तो शहरीकरण की प्रवृत्ति अधिक होगी जिससे गांवों से लोग रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करेंगे परिणामस्वरूप शहरों में जनसंख्या बढ़ जाएगी जो बेरोजगारी,निर्धनता , पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देगी साथ ही मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव हो जाएगा। 



ऐसे औद्योगिकरण को हम विकास नही कह सकते क्योंकि ये तो केवल औद्योगिक इकाइयों का केंद्रीकरण है जिसमें इकाइयां तो स्थापित हो गईं किंतु उनके लिए पर्याप्त सविधाएँ सृजित नही हो पाई। जब औद्योगिक इकाइयां एक स्थान पर लगाई जाती हैं तो उस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे जा विकास भी तेजी से होना चाहिए ताकि उन इकाइयों का तेजी से विस्तार हो साथ ही उनमें कार्यरत कर्मचारियों को भी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें , इनके अभाव में गरीबी , बेरोजगारी व असामाजिक गतिविधियां बढ़ती है। औद्योगिकरण की तेज रफ्तार और उसके अनुकूल बुनियादी ढांचे का विस्तार बड़े पूंजीगत निवेश के बिना सम्भव नही है और अविकसित या विकासशील देशों की सबसे बड़ी समस्या ही 'पूंजी का अभाव' है।


ऐसे में आवश्यक है कि प्रत्येक क्षेत्र का उसके आर्थिक व प्राकर्तिक संसाधनों के अनुसार संतुलित विकास हो जिसमें कम पूंजी निवेश की आवश्यकता होगी साथ ही रोजगार की तलाश में जनसंख्या का गांवों से शहरों की ओर पलायन भी रुकेगा , शहरों पर पड़ने वाला अतिभार भी कम होगा इसके अलावा उस क्षेत्र विशेष के लोगों को उनके कौशल के अनुसार कार्य करने का अवसर मिलेगा।


यहां सतत विकास की अवधारणा को समझना भी महत्वपूर्ण है। सतत विकास से अभिप्राय है कि भविष्य की आवश्यकताओं और संभावनाओं को सुरक्षित व संरक्षित करते हुए वर्तमान का विकास। अर्थात देश के आर्थिक, प्राकृतिक संसाधनों तेजी से विदोहन नही करके उन्हें भावी पीढ़ी के लिए भी सुरक्षित रखा जाए , पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पृथ्वी को उसके प्राकर्तिक स्वरूप के साथ सहज कर रखा जाए।
अब हम भारत के संतुलित और सतत विकास की बात करते हैं। भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था वाला कृषि-प्रधान देश है। स्वतंत्रता के पश्चात 1951 से पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से नियोजित आर्थिक विकास की प्रकिया अपनाई गई। 12वीं पंचवर्षीय योजना के बाद इन्हें समाप्त कर नीति आयोग का गठन किया गया और अब ये ही विकास योजनाओं का नियोजन करता है।


भारतीय अर्थव्यवस्था तीन भागों में वर्गीकृत है - कृषि क्षेत्र , औद्योगिक क्षेत्र व सेवा क्षेत्र। इन तीनो में कृषि क्षेत्र सबसे बड़ा है लेकिन देश की राष्ट्रीय आय में सबसे अधिक अंश सेवा क्षेत्र का है।सभी विकास योजनाओं में इन तीनो क्षेत्रों के समेकित विकास को ध्यान में रखा जाता है। वर्तमान सरकार द्वारा स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, स्वच्छता मिशन, बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ जैसी अनेक योजनाएं चलाई जा रहीं है जिनका मूल लक्ष्य भविष्य को ध्यान में रखते हुए वर्तमान का विकास करना है। युवा भारत को स्टार्टअप्स योजनाओं के माध्यम से सशक्त किया जा रहा है जो भावी भारत वाहक है।


अब हम वर्तमान हालातों पर आते हैं जिन्हें कोरोना जैसी वैश्विक महामारी ने हिलाकर रख दिया है। विकास प्रकिया पर अनेक मायनों से फिरसे विचार करना होगा , नए दृष्टिकोण के साथ विकास को फिरसे नई परिभाषा देनी होगी। अब डिजिटल इंडिया जैसी अनेक ई - योजनाएं , ई- बुनियादी ढांचा मजबूत करना होगा , गांवों को ऑनलाइन संचार माध्यमों से जोड़ना होगा।



विषय को अतिविस्तार न देते हुए वर्तमान हालातो पर सतत विकास पर अब मैं मेरे विचार रखना चाहूंगी। चूंकि भारत एक विकासशील देश है यहाँ पूंजी तो है लेकिन अभी तक उसे सही दिशा में खपाया ही नही है , अनेकों योजनाओं के बावजूद भी गरीबी , बेरोजगारी , निरक्षरता , आदि बुनियादी ढांचे का अभाव बना हुआ है जिसका मुख्य कारण तेजी से जनसंख्या वृद्धि और उसका गांवों से शहरों की ओर पलायन है , औद्योगिकरण की धीमी रफ्तार के कारण तकनीकी कौशल का विदेशों में पलायन भी बड़ी समस्याएं हैं जिनका ग्रासरूट स्तर पर ही समाधान किया जा सकता है। हमारे गांव व आंचलिक क्षेत्र लोक कलाओं , हस्तशिल्पों के अदभुत ज्ञान से भरे है फिर भी निर्धन है , इन क्षेत्रों को आर्थिक रूप से सशक्त किये बिना यहां शिक्षा की बात नही की जा सकती अतः आवश्यक है कि इन्हें इनकी लोक कलाओं और हस्तशिल्प के साथ ही विकसित किया जाए , इन्हें ऑनलाइन बाजारों से , स्वयं सहायता समूहों , सामूहिक ऋणों , सहकारिता आदि से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया जाए जिससे कि ये रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन ही न करें साथ ही इन्हें अपने कौशल के अनुरूप कार्य करने के अवसर भी मिलेंगे।
 
जब तक ग्रामीण भारत स्वावलंबी और आत्मनिर्भर नही बनेगा तब तक विकसित भारत एक सपना ही रहेगा। एक महत्वपूर्ण समस्या ये भी है कि ग्रामीण भारत के उत्कर्ष के लिए सरकार ने योजनाएं तो बहुत सी बनाई हैं किन्तु जिनके लिए ये योजनाएं है उन्हें ही इनका ज्ञान नही है अतः सरकारी योजनाओं के लिए ग्रासरूट स्तर के जागरूकता मिशन भी होने चाहिए। लॉक डाउन के हालातों ने बता दिया है कि अभी तक अधिकांश काम कागजों में ही हुआ है अब उन्हें धरातल पर उतारने की आवश्यकता है और डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया के साथ भारत के ऑनलाइन बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने की आवश्यकता है। अंततः यही कहना चाहूंगी कि सतत विकास का लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ सामाजिक समावेश, बुनियादी और आर्थिक विकास होना चाहिए। जिसका विस्तार और गहराई ग्रासरूट स्तर तक होना हो।


''नींव की मजबूती तय करती है कि इमारत कितनी बुलंद होगी।''


बदलेगा भारत, संवरेगा भारत



लेखिका : मीनाक्षी माथुर 
जयपुर