विद्या ददाति विनयम्


प्रोफेसर (डॉ.) सोहन राज तातेड़


पूर्व कुलपति सिंघानिया विश्विद्यालय, राजस्थान


(डे लाइफ डेस्क)


हमारे देश में ज्ञान को सबसे अधिक महत्व दिया गया है। कहा गया है कि बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं होती। विद्या शब्द ज्ञान का वाचक है। विनम्रता विद्या से आती है, शिक्षा से आती है। विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है। योग्यता से धन प्राप्त होता है और धन से सुख की प्राप्ति होती है। विद्या मूल है और सुख उसका फल। अच्छा इंसान बनने के लिए विद्या और विनम्रता का योग आवश्यक है। प्रोफेसर तातेड़ एक उदाहरण के द्वारा समझाते हुए कहते है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी प्रतिदिन सौलह से अठारह घंटे तक देश के विकास के लिए कार्य करते है। उनका कहना है कि देश का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक गरीब और अमीर की खाई मिट न जाये।


शिक्षा ही वह तत्व है जो इस भेदभाव को मिटा सकती है। इसके लिए उन्होंने देश के आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष कार्ययोजना तैयार की है जिससे वे लोग शिक्षा और ज्ञान प्राप्त कर जीवन निर्माण प्राप्त कर सकें और देश के विकास में भागीदार बन सकें। पशु और मनुष्य में अंतर यही है कि मनुष्य ज्ञान सम्पन्न होता है और पशु ज्ञानहीन होता है। यदि मनुष्य में ज्ञान नहीं है तो वह भी पूंछ और सींग से रहित पशु ही है। धनवान तो कोई भी बन सकता है। किन्तु विद्यावान सभी नहीं बन सकते। विद्या या ज्ञान प्राप्त करने के लिए गुरुकुल वास या गुरु का सान्निध्य आवश्यक होता हैै। बिना गुरु के ज्ञान संभव नहीं। गुरु ही शीष्य को अनुशासन, विनम्रता, प्रेम, सहिष्णुता का पाठ पढ़ाकर पूर्ण मानव बनाते है। मानव समूह में रहता है। पशु भी समूह में रहते है। पशुओं के समूहों को समज कहा जाता है।



इस संसार में अज्ञान ही सबसे बड़ा दुःख है और ज्ञान सबसे बड़ा सुख। देव गुरु और ईश्वर की कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है। अज्ञान को अंधकार कहा जाता है। अंधकार दो प्रकार का है। एक तो रात्रि का अंधकार जो कि सूर्य के प्रकाश से दूर हो जाता है। दूसरा मनुष्य के अन्तःकरण में स्थित अंधकार जिसे अज्ञान भी कहा जाता है। यह बहुत ही सघन होता है। इसे दूर करने के लिए ज्ञान रूपी दीपक की आवश्यकता होती है। इस अज्ञान को दूर करने के लिए शास्त्रवचन आवश्यक है। शास्त्रों के अध्ययन और उसके आचरण के द्वारा यह अज्ञान दूर होता है। इस अज्ञान के दूर होने से अन्तःकरण निर्मल हो जाता है। सरस्वती जो कि विद्या की अधिष्ठात्री देवी है उनकी कृपा से ज्ञान प्राप्त होता है।


विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और शिक्षण संस्थाओं में सर्वप्रथम सरस्वती माता की पूजा होती है। देवपूजन से मानव की बुद्धि निर्मल बनती हैै। मनुष्य सुख-दुःख के द्वन्द्व से परे जीवन व्यतीत करता है। अनुकूलता और प्रतिकूलता की स्थिति में मानव सम रहता है। अज्ञान या विद्या दुःख का कारण है और ज्ञान सुख का। सुख भी दो प्रकार के हैै- एक भौतिक सुख और दुसरा आध्यात्मिक। भौतिक सुख नश्वर है और आध्यात्मिक सुख साश्वत। विद्या या ज्ञान ही आध्यात्मिक सुख को प्रदान करता है। विनम्रता से शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है और अशिष्टता मित्र को भी शत्रु बना देती है। इसलिए मनुष्य को विनम्रता धारण करनी चाहिए। वृक्ष जब फल से युक्त होता है तो नम्र होकर के झुक जाता है। वैसे ही विनम्र व्यक्ति अहंकारहीन होता है वह सदैव झुक कर चलता है। उसमें सहिष्णुता, समता आदि गुण स्वयं आ जाते है।


संसार में विद्या ही ऐसी वस्तु है जिसकी सर्वत्र पूजा होती है। विद्वान या विनम्र व्यक्ति जहां भी जाता है वहीं पर प्रतिष्ठा को प्राप्त करता है। विद्वान पुरुष ही जीवन में सम्यक् रूप से योग्यता और अयोग्यता में, कत्र्तव्य और अकत्र्तव्य में भेद करने में समर्थ होता है। आज के प्रजातांत्रिक युग में विद्या या ज्ञान बहुत आवश्यक है। विद्या से आदमी महान् बनता है धन से नहीं। बहुत बड़े-बड़े साम्राज्य और धन दौलत वाले पुरुष नष्ट हो गये काई उनका नाम भी लेने वाला आज नहीं है, किन्तु वाल्मीकि, कालीदास, भवभूति और बाण, तुलसीदास जैसे अकिंचन किन्तु विद्या एवं विनय सम्पन्न महापुरुषों का नाम आज जन-जन का कंठहार बना हुआ है।


विद्या के इसी महात्म के कारण ही कहा गया है कि सभी धनों को भाई, पुत्र इत्यादि बांट सकते है। किन्तु विद्या एक ऐसा प्रच्छन्न धन है जिसका कोई बंटवारा नहीं कर सकता। चोर इसे चुरा नहीं सकता। राजा इसे छीन नहीं सकता। इसीलिए विद्या को सभी धनों में प्रधान माना गया है। भौतिक स्वर्ण आदि सभी धन क्षण भंगुर और विद्युत् के समान चंचल है लेकिन विद्या एक ऐसा धन है जो जीवनपर्यन्त साथ में रहती है और कभी भी मानव का साथ नहीं छोड़ती।


विनम्रता का तात्पर्य है हम बड़ों के साथ केसा व्यवहार करें, छोटों के साथ केसा व्यवहार करें जिससे सभी व्यक्ति हमारा अनुकरण करें। प्रोफेसर तातेड़ कहते है कि एक माता अपने दो पुत्रों का परीक्षण करने के लिए बड़े पुत्र को बुलाती है और कहती है कि बेटा बाजार से कुछ समान ले आओ। बड़ा बेटा तत्काल ही माता के इंगित को समझकर कार्य कर देता है। किन्तु छोटे बेटे को उसी कार्य के लिए कहती है तो छोटे बेटे ने कहा माता अभी बहुत धूप है धूप कम होने के बाद मैं जाउंगा और आपका कार्य कर दूंगा। माता ने तत्काल निर्णय लिया कि हमारा बड़ा बेटा मेरे आदेश को शिरोधार्य कर तत्काल कार्य कर दिया। अतः यह अधिक विनम्र है। इससे यह सिद्ध होता है कि जिस व्यक्ति में ज्ञान होता है विनम्रता स्वयं उसमें आ जाती है। (लेखक के अपने विचार है)