हिम्मत - ए - मर्दा, मदद - ए - खुदा

(डे लाइफ डेस्क) 


एडवांस मेडिकल साइंस भी तय है कि करीब ढाई दशक पहले घटी इस घटना पर यकीन  या ऐतबार नहीं करेगा, लेकिन इसे सिद्ध करने की पूरी जिम्मेदारी मैं व्यक्तिगत रूप से अपने ऊपर लेता हूँ।आज हर तरफ मौत के जंगल उग आएं हैं और बिना मोल उन्हें बाज़ार में लुटाया जा रहा है। कोई इस तथ्य से वाकिफ कराने को तैयार ही नहीं है कि बीमारी से बड़ा उससे मरने का डर होता है और  यही अनजान या कह सकते है कि काल्पनिक डर हमें घरों में बैठे - बैठे लगातार मार रहा है। किसी को यह समझाने की फुर्सत नहीं है कि जो इस डर से उबर गया, उसके दरवाजे से यमराज भी लौट जाएगा।


इस संदर्भ में हिंदी कविता के गांधी कहे जाने वाले  स्व.पंडित भवानीप्रसाद मिश्र का व्यक्तिगत किस्सा आपको सुना रहा हूँ। भवानी दादा या भवानी भाई को रह - रहकर छह दिल के दौरे पड़े थे। फिर बता रहा हूँ कुल छह, लेकिन बंदा हरदम सलामत।  सिर्फ ह्रदय गति नियंत्रक (  पेस मेकर )  उन्हें लगाया गया था।भवानी भाई नाम के भवानी भाई नहीं थे मात्र। उनकी हिम्मत तथा जिजीविषा भी देवी भवानी जैसी थी। दिल का झटका इधर पड़ता और वो बिस्तर से कुछ दिनों में उठकर फिर देश की संत कबीरदास की तरह परिक्रमा लगाने निकल पड़ते। सीढ़ियां तक  हाँफते हाँफते चढ़ जाते। उन्हें जब एक ऐसा ही अटैक पड़ा तो उनके साथी यशपाल ने अस्पताल में आकर उन्हें सलाह दी , भवानी भाई बस हुआ। अब घर में ही रहकर आराम कीजिए। भवानी दादा ने कुछ सेकंड सोचा। फिर  बोले -  यार यशपाल  मौत तो एक पल का तमाशा है। उसका घड़ी में कांटा ऊपर वाले ने फिक्स कर रखा है, न इधर जाएगा और न उधर जाएगा। बताओं फिर यही भी कोई जीता हुआ कि मौत के डर से घर में ही पड़े रहो।


इसका मतलब यह कृपया कतई न निकालें की कोविड - 19 के लॉक डाउन की समाप्ति के बाद हम सभी बेलगाम घोड़े की तरह सड़कों पर दौड़ पड़ें। अपने लिए नहीं तो दूसरों के लिए ही सही, पूरे संयम तथा संयम में रहे, लेकिन जान लें कि भवानी दादा की सांतवें दौरे पर ही रवानगी की खबर मिली थी। वो बिना किसी की परवाह किए दूसरी दुनिया में चले गए। उन्हें कई साहित्यिक पुरस्कार मिले, उन्होंने कुल ग्यारह काव्य संग्रह लिखे, अन्य  साहित्य दर्ज है उनके नाम, टी.वी. में काम किया वगैरह। सारांश। यह कि " हिम्मत - ए - मर्दा मदद - ए - खुदा" । भवानी दादा ने यह कर दिखाया था। आखिर मेरे दिल में गर्दिश कर रही उनकी एक पंक्ति -- चलो नया गीत गाएं..................... 


अगली कहानी देश के कभी सबसे बड़े उद्योगपति कॉरपोरेट कारोबारी रहे स्वर्गीय धीरूभाई अम्बानी का उन्हें दरअसल लकवा हो गया था। लंबा इलाज चला लेकिन ज़रा से ठीक हुए वापस काम पर किसी पत्रकार ने पूछा आप रिटायरमेंट कब लेंगे धीरू भाई बोले आपने क्रीमीनेशन ग्राउंड देखा है कभी बस वहीं पर।


इस बात को भी कोई गलत मानेगा की पद्मश्री से सम्मानित इंदौर के प्रेस्टिज इंस्टिट्यूट के चेयरपर्सन नेमिचन्द्र जैन को दो स्ट्रोक दो हार्ट अटेक और पेस मेकर लगा है। मगर रोज़ पांच घंटे ऑफिस में काम करते हैं। कुल मिलाकर हमें कोरोना को जीवन का अभिन्न अंग मानते हुए उसी के साथ जीना होगा चूंकि कई सामाजिक समारोह में बेजा खर्च बंद हो सकता है, इसलिए वाज पैसा लोग स्वास्थ सेवाओं में खर्च हो सकता है। (लेखक के अपने विचार हैं)



लेखक: नवीन जैन, इंदौर