सस्ता साबुन, ताकतवर कोरोना, देखें कौन जीतता है...?

दृष्टिकोण



लेखक डॉ. पी.डी. गुप्ता पोलेंड स्थित लाइफ साइंसेज यूनिवर्सिटी में लेखक रेक्टर के साथ एक संबोधन के दौरान। फ़ाइल फोटो


लेखक : पी.डी. गुप्ता
पूर्व निदेशक साइंटिस्ट सेंटर फ़ॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, हैदराबाद, भारत सरकार  


जयपुर। वर्तमान में कोरोनावायरस की दवा किसी भी कीमत पर नहीं मिल सकती। लेकिन दादी की साबुन की टिकिया कोरोनावायरस को मार सकती है। 


साबुन का नाम रोम में माउंट सैपो से मिला। लैटिन भाषा में सैपो का मतलब है साबुन। बेबीलोनियन के निवासियों ने लगभग 2800 ई. में पहली बार साबुन का जीवन में उपयोग किया। खाने से पहले हमें साबुन से हाथ धोने चाहिए। साबुन से हाथ धोने से हमारे हाथ की गंदगी साफ हो जाती है । साबुन गंदगी के हानिकारक जीवाणुओं को बढ़ने से रोककर हमें रक्षा प्रदान करता है। सस्ता और आसानी हर जगह से मिलने वाला साबुन 100% बायोडिग्रेडेबल होता हैं। साबुन में गन्दगी हटाने व सूक्ष्म जीवों को विघटित करने की शक्ति होती है। इसलिए साबुन से जल प्रदूषण समाप्त हो सकता है।


लोग आमतौर पर साबुन को सौम्य और सुखदायक मानते हैं, लेकिन सूक्ष्मजीवों और दिखाई नहीं देने वाले जीवों के लिए यह अक्सर बहुत विनाशकारी होता है। एक बूंद साबुन के पानी में नए कोरोनोवायरस सहित कई प्रकार के बैक्टीरिया और वायरस को तोड़ने और मारने के लिए पर्याप्त क्षमता होती है, एवं वायरस के प्रसार को तोड़ने के लिए भी कारगर साबित होता है। साबुन के प्रभावशाली होने का कारण इसकी सूक्ष्म संरचना है।


क्योंकि वायरस एक स्वसंचित नैनोपार्टिकल है, जिसमें सबसे कमजोर लिंक लिपिड (फैटी) बायलीयर होता है। अधिकांश वायरस में तीन प्रमुख बिल्डिंग ब्लॉक्स होते हैं।  रिबो या डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक एसिड (आरएनए या डीएनए), प्रोटीन और लिपिड। एक वायरस के सेल में जाने के बाद उसके हजारों वायरस बन जाते हैं। जब एक संक्रमित कोशिका मर जाती है, तो ये सभी नए वायरस बच जाते हैं और अन्य कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। कुछ वायरस साँस की नली द्वारा फेफड़ों में भी चले हैं। 


साबुन के पानी से गंभीर वायरस की इकाइयों में एक साथ रखने वाले कोई मजबूत सहसंयोजक बंधन नहीं रहता। जिसका अर्थ है कि कठोर इकाइयों को अलग करने के लिए कठोर रसायनों की आवश्यकता नहीं होती। साबुन वसा झिल्ली को तोड़ देता है और वायरस ताश के पत्तों की तरह बिखर जाता है और मर जाता है।



साबुन का पानी बिल्कुल अलग है। साबुन में वसा जैसे पदार्थ होते हैं जिन्हें एम्फीफाइल्स कहा जाता है, जिनमें से कुछ संरचनात्मक रूप से वायरस झिल्ली में लिपिड के समान होते हैं। साबुन के अणु वायरस झिल्ली में लिपिड के साथ "प्रतिस्पर्धा" करते हैं। साबुन में एमिफिल्स नामक वसा जैसे यौगिक होते हैं, जो वायरस झिल्ली में पाए जाने वाले लिपिड के समान होते हैं। जब साबुन इन वसायुक्त पदार्थों के संपर्क में आता है, तो यह उनके साथ जुड़ जाता है और उन्हें वायरस से अलग कर देता है। यह वायरस को त्वचा से अलग करने के लिए भी मजबूर करता है।


यह कमोबेश है कि साबुन त्वचा से सामान्य गंदगी को कैसे हटाता है। साबुन न केवल वायरस और त्वचा के बीच "गोंद" को ढीला करता है, बल्कि वेल्क्रो की तरह फिक्स हो जाता है। गोंद जो की वायरस में प्रोटीन, लिपिड और आरएनए को एक साथ जोड़कर रखता है ऐसे में साबुन इन सब यूनिट्स को अलग-अलग कर देता है। अकेले पानी से भी त्वचा को धोने से वायरस हटाया तो जा सकता है, परन्तु साबुन इस्तेमाल करने से इसकी क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। 
 
अल्कोहल आधारित (सेनेटाइजर्स) में आमतौर पर 60-80% अल्कोहल होता है और उसके उपयोग से वायरस मर जाता है। परन्तु साबुन के पानी की काफी कम मात्रा भी सेनेटाइजर्स जैसा काम कर सकती है। वस्तुतः सेनेटाइजर्स से वायरस को ख़त्म करने के लिए कुछ समय के लिए सेनेटाइजर्स को त्वचा पर लगा कर इंतजार करना पड़ता है। जबकि साबुन के पानी को हाथ के प्रत्येक हिस्से पर रगड़ने से वायरस तुरंत ख़त्म हो जाता है।


डॉ. पी.डी. गुप्ता कहते हैं हमें बच्चों को सेनेटाइजर से दूर रखना चाहिए। यदि जरूरत लगे तो बच्चों व परिवार के लिए बोतल में साबुन का पानी भर कर रखा जा सकता है। जब भी जरूरत लगे तो उस साबुन के पानी का इस्तेमाल सेनेटाइजर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है।