लालाजी और कुम्हार


पिछले पाँच-सात दिन से तोताराम किसी शादी में गया था। कल शाम को ही लौटा था। आज सुबह जैसे ही हाज़िर हुआ, हमने वैसे ही मज़ाक में पूछ लिया- 'तोताराम, लौट आए कोपेनहेगन से बीस प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन कम करने का वादा करके ? चलो अच्छा है, ओबामा द्वारा घोषित किए गए पैकेज में से कुछ करोड़ डालर पेलने को मिल जायेंगे।' खैर, बात तो चिढ़ाने वाली ही थी पर इतनी नहीं जितना कि तोताराम चिढ़ गया। बोला- हाँ, कर आया समझौता। कटवा आया देश की नाक। मुकर गया संसद को दिए गए वचन से । अब क्या मेरी जान ही लेगा ? अगर यही इरादा है तो ले आ कपड़े कूटने वाला डंडा और फोड़ डाल मेरा सिर।


हमें लगा आज खुराक कुछ ज़्यादा हो गई अतः हमने बिना नू नकर के माफ़ी की मुद्रा में घोषित किया- माफ़ करना बन्धु, तुम्हारी कोई गलती नहीं है। हमने तो वैसे ही मज़ाक कर दिया। हमारी क्या गलती है प्रदूषण फ़ैलाने में। हमारे पास कार तो दूर साइकल ही नहीं है। न बीड़ी पीते और न सिगरेट। जिनकी गलती है वे ही नहीं सोच रहे तो अपन क्यों बिना बात अपराध-बोध से ग्रसित हों।


अब तक तोताराम सामान्य हो चुका था। बोला- वैसे मास्टर, अपन भले ही नेताओं की आलोचना करें पर यदी उनकी असली हालत पर गौर फ़रमाएँगे तो पाएँगे कि उनकी कोई इतनी बड़ी गलती नहीं है। सोच, सारी दुनिया के देशों का सम्मलेन और उसमें ओबामा, गोर्डन ब्राउन, सारकोजी, एंजेलिना मार्केज, जिया बाओ जैसी हस्तियाँ मौजूद हों और वे सब दुनिया को बचने की चिंता करें तो एक महान भारतीय कैसे भावुक हुए बिना रह सकते है। जब अमरीका जैसा व्यापारी देश दुनिया की भलाई के लिए एक सौ बिलियन डालर का पैकेज देने को तैयार हो गया तो अपन क्या ज़रा सा कार्बन उत्सर्जन कम करने का आश्वासन भी नहीं दे सकते? अकेले में आदमी चाहे जितना ही स्वार्थी क्यों न हो जाए पर सबके सामने पाँच पंचों में बैठ कर बड़ी बात करनी ही पड़ती ही है। सच पूछे तो मुझे तो मनमोहन जी से कोई शिकायत नहीं है।


हमने कहा- शिकायत होकर भी क्या हो जाएगा। चुनी हुई सरकार है, जो मर्जी हो सो करेगी। और अगर कभी मान ले कुछ सांसद विरोध भी करें तो भी कुछ होने वाला नहीं है। यदि चार विरोध करेंगे भी तो, दस सांसद पैसा लेकर सरकार बचाने के लिए तैयार बैठे हैं। लोकतंत्र में सरकार होना ही सौभाग्य की बात है। जैसे कि सिंदूर लगाने और करवा चौथ का व्रत करने के लिए कैसे भी हो, पति का होना ज़रूरी है। खैर, छोड़ इन बातों को और एक सकारात्मक, आदर्शवादी कहानी सुन।


किसी गाँव में एक कुम्हार रहता था। उसका नाम था भोला और था भी वास्तव में भोला ही। सारा दिन भाँडे बनाने में ही निकल जाता। गाँव के बाहर से खंदे में से मिट्टी लाना, साफ़ करना, भिगोना, खूँदना, चाक पर बर्तन बनाना, सुखाना, आवे के लिए जलावन लाना, आवा लगाना। आवा पक कर तैयार होने के बाद भी कोई ज़रूरी नहीं कि सारे बर्तन पक ही जाएँ। आधे पके, कुछ टूटे, कुछ अधपके। फिर उन बर्तनों के लिए ग्राहकों का इंतज़ार। और ग्राहक भी आजकल ऐसे जो भले ही बड़े स्टोरों में बिना भाव पूछे चीजें खरीद लेते हैं । सौ पचास का पेप्सी-कोकाकोला और पिज्जा चुपचाप खरीद लेंगे पर मटके के पचास रुपये देने में जान निकलेगी। हज़ार तीन-पाँच लगायेंगे।


बेचारे भोला का जी तोड़ मेहनत करके भी बड़ी मुश्किल से काम चलता था। वह अपने घर के सामने से एक लालजी को रोज़ आते-जाते देखता था। कभी मंडी जाते तो कभी उगाही करने। बढ़िया कुर्ता-जाकेट, सिर पर पगड़ी, आँखों पर चश्मा, पैरों में बढ़िया जूते, मोटा पेट। भोला सोचता कि ये सेठजी काम तो कोई खास नहीं करते पर ठाठ पूरे हैं। एक दिन भोला ने हिम्मत करके पूछ ही लिया- सेठ जी, आप क्या करते हैं? सीधा ज़वाब दे दें तो लालाजी ही क्या। हीं,हीं करके बोले- अरे भैया, करते क्या हैं। बस, इससे-उससे दो चार बातें करते रहते हैं। भगवान की दया से दाल-रोटी चल रही है। भोला को बड़ा आश्चर्य हुआ कि कोई केवल बातों से ही कैसे कमाई कर सकता है। बहुत पूछने पर भी लालाजी ने कुछ नहीं बताया। बस यही कहकर चले गए कि कभी समय आएगा तो ढंग से समझायेंगे।


बात आई-गई हो गई। भोला भी भूल गया। पर लालाजी और भोला का बातचीत का खाता शुरू हो गया। कभी-कभी लालाजी भोला के चबूतरे पर बैठ जाते। भोला उनके लिए जल-सेवा कर दिया करता था। एक दिन लालाजी ने भोला से कहा- भोला, हमें मिट्टी के एक सौ रुपये के सिक्के बना दे। बच्चा रुपयों से खेलने की जिद करता है पर तू तो जानता है कि बच्चे को असली रुपये कैसे दिए जा सकते हैं। तेरी जो मजूरी होगी सो दे देंगे। कुछ तो मजूरी का लालच और कुछ लालजी का मुलाहिजा, भोला रुपये बनाने के लिए तैयार हो गया।


अब तो लालाजी जब भी भोला के घर के आगे से निकलते तो आते-जाते लोगों को सुना कर ज़ोर से आवाज़ लगते- क्यों भोला, रुपये तैयार हैं कि नहीं? भोला भी अन्दर से ही उत्तर देता- दस पाँच दिन दिन और रुक जाइए लालाजी। एक दिन भोला ने उत्तर दिया- जी, लालाजी, आज आपके रुपये तैयार हैं। बस तनिक चबूतरे पर बैठिये।


लाला चबूतरे पर बैठ गया। रस्ते जाने वाले दो-चार लोगों को भी लालाजी ने कुछ न कुछ बातचीत के बहाने बैठा लिया।
इतने में भोला अन्दर से एक थैला लेकर आया और लालाजी के सामने चबूतरे पर ही थैला पलटते हुए बोला- लो लालाजी, गिन लीजिये, पूरे एक सौ हैं।


लालाजी धोती से बाहर हो गए, चिल्लाने लगे- यह क्या मज़ाक है भोला। ये रुपये हैं क्या ? क्या मैनें तुम्हें ये ही रुपये दिए थे ? और फिर लोगों की तरफ मुख़ातिब होकर कहने लगे- भाइयो, क्या ज़माना आ गया है। मुझे असली रुपयों के बदले ये मिट्टी के रुपये लौटा रहा है।


लोग अक्सर आते-जाते लालजी को भोला को रुपयों के बारे में पूछते सुनते थे। सो लोग भोला को ही डाँटने लगे- भले आदमी, कल तक तो लालाजी को कहता आ रहा था कि आपके रुपये बस पाँच-सात दिन में दे दूँगा और आज जब दे रहा है तो ये मिट्टी के रुपये। यह क्या मज़ाक है। आगे भगवान को ज़वाब देना है। क्यों अपना ईमान बिगाड़ रहा है ? भोला क्या कहता। कौन विश्वास करता कि लालाजी ने उससे मिट्टी के रुपये बनवाए थे। कोई नेता तो था नहीं जो जनमत की परवाह किए बिना कोई भी गर्हित से गर्हित काम कर जाए। भोला तो आम आदमी था । जनमत और भगवान के दबाव में आ गया। खून के आँसू पीकर बोला- आपके रुपये दूँगा। जैसे भी होगा ज़ल्दी ही दूँगा। पर लालाजी जवाब तो आपको भी देना पड़ेगा । यहाँ नहीं तो ऊपर भगवान के वहाँ।


लालाजी ने भी उदारता दिखाते हुए कहा- भाई, मैं कोई अभी थोड़े ही तुम्हारे गले में फाँसी लगा रहा हूँ। जब तेरे पास हों तब दे देना पर सबके सामने मान तो ले कि रुपये देगा। भोला खून का घूँट पीकर रह गया। लोग भी कुछ-कुछ ऐसा-वैसा बतियाते हुए अपने-अपने घर चले गए । तब लालाजी ने भोला का हाथ पकड़ कर अपने पास चबूतरे पर बैठाया और बोले- हमने कहा न था भोला कि हम तो केवल बातों की कमाई खाते हैं। सो देख ली न बातों की कमाई ? अरे भले आदमी, तुझसे हराम के रुपये लेकर कहाँ जायेंगे। हमें भी तो भगवान को मुँह दिखाना है । भोला की जान में जान आई, बोला- लालाजी, मान गए आपको। ठीक किया जो आपने अभी मुझे बतला दिया वरना हो सकता था कि मैं रात भर सोच-सोच कर पता नहीं सुबह तक जिंदा भी रहता या नहीं।


कहानी सुनकर तोताराम ने कहा- ठीक है मास्टर, इसीलिए मैं कहता हूँ कि शंका नहीं करनी चाहिए। भगवान सबकी रक्षा करते हैं। क्या तुझे भगवान पर विश्वास नहीं है ? देखा नहीं, किस तरह भगवान ने कुम्हार की रक्षा की।


हमने कहा- तोताराम, हमें भगवान पर तो विश्वास है पर लालाजी पर नहीं। बात भगवान के हाथ में नहीं है । बात लालाजी के हाथ में है। (लेखन 2009/12/25 का) (लेख में लेखक के अपने विचार हैं)



पता : रमेश जोशी (वरिष्ठ व्यंग्यकार, संपादक 'विश्वा' अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, अमरीका)
आइडिया टावर के सामने, दुर्गादास कॉलोनी, कृषि उपज मंडी के पास, सीकर -332001  
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