अखण्डता और एकजुटता के प्रतीक सरदार पटेल


सरदार पटेल स्मृति विशेष (15 दिसम्बर 1950) 


पटेल के बारे में कहा जाता है कि नेहरू यदि विचारक थे, तो पटेल कर्ता थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने तो यहाँ तक बोल दिया था कि अगली पीढ़ियों को पटेल कूटनीतिक सूझबूझ से काम लेना चाहिए ताकि देश लगातार दुनिया में शक्ति और सम्मान अर्जित कर सके। 


पटेल के कारण ही देश में शक्तिशाली प्रशासनिक सेवा स्थापित हो पाई। उन्होंने अंग्रेजों की इंडियन नेशनल सर्विस के स्थान पर इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस की स्थापना की। ये सेवाएँ आज भी अस्तित्व में हैं।


  जब से नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, तब से देश की एकता और अखण्डता को लेकर बार-बार ऐलानिया कहा जा रहा है कि देश के सबसे पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की सलाह पहले प्रधानमंत्री पंड़ित जवाहरलाल नेहरू मान लेते तो आज कश्मीर की समस्या खड़ी ही नहीं होती। कहा तो यहाँ तक जाता है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर भी कब्जा कर लेने की राय पंड़ित नेहरू द्वारा न मानने पर एक बार पटेल ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि एक दिन नेहरू इस गलती पर रोएगा। दूसरी ओर इस तथ्य को भी विभिन्न पुस्तकों में उजागर किया गया है कि दरअसल पटेल तो मुस्लिम आबादी की बहुलता (90 प्रतिशत से ज्यादा) होने के कारण पूरा कश्मीर पाकिस्तान को सौंपना चाहते थे। खैर ! इस विवाद पर ज्यादा चर्चा नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि ऐसी बातें ईयर पेड (सुनी-सुनाई) भी हो सकती हैं। अब तो यह देखा जाना चाहिए कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला अनुच्छेद 370 हटा लिया गया है और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी कई-कई बार स्पष्ट रूप से कह चुका है कि हम भी मानते हैं कि जम्मू कश्मीर का अविभाज्य अंग है।


 सरदार पटेल के जीवन पर आधारित उपलब्ध किताबों को पढ़ने के बाद निष्कर्ष निकलता है कि वे स्वतंत्र भारत को ही एकीकृत और अखण्ड रखना चाहते थे। जिस तरह उन्होंने हैदराबाद में निजामशाही के खिलाफ सैन्य कार्यवाही करने का ऐतिहासिक काम तत्कालिन सेनाध्यक्ष जनरल नरिप्पा के तहत किया था, वैसा कोई इरादा पाक अधिकृत कश्मीर पर कोई उनका इरादा नहीं था। सरदार पटेल मात्र तैंतीस वर्ष की आयु में विदुर होने के बाद एकदम कर्मयोगी हो गए थे। वे जीवनपर्यन्त जन्मभूमि को समर्पित और निष्ठावान रहे और उन पर गर्व इसलिए भी किया जाना चाहिए कि वे इस काम को विज्ञापित या प्रक्षेपित करने के हक में कभी नहीं रहे।


 भारत जब 1950 में स्वतंत्र गणतंत्र बना तो पटेल का पहला सपना था कि पाँच हजार से ज्यादा के इतिहास में पहली बार वह (भारत) एकीकृत तथा एकरूप धारण करे। पटेल के समग्र जीवन के गहन अध्येताओं का  यह भी कहना है कि लगभग पूरी कांग्रेस लौह-पुरूष कहे जाने वाले सरदार पटेल को पहला प्रधानमंत्री बनाना चाहती थी लेकिन चूँकि गाँधीजी, जवाहर लाल नेहरू को अपना बेटा मानन लगे थे और पटेल गाँधीजी का बहुत आदर करते थे इसलिए उन्होंने अपने आपको पीछे कर लिया और बाद में वे उप-प्रधानमंत्री बना दिए गए। हाँलाकि इस बारे में दूसरे तथ्य भी दिए जाते हैं। इन अध्येताओं का कहना है कि पटेल के बिना राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचार व्यावहारिक रूप से शायद कम असरकारी सिद्ध होते और दूसरी तरफ पंड़ित नेहरू का आदर्शवाद भी कदाचित अधूरा रह गया होता। पटेल न सिर्फ स्वतंत्रता संग्राम के आयोजक थे, वरन जब यह संग्राम जारी था, तो वे इसके शिल्पकार भी थे। पटेल एक साथ कूटीनीतिज्ञ तथा विद्रोही भी थे। इतिहास में ऐसा बहुत कम ही हुआ है।  पटेल की सबसे बड़ी उपलब्धि देसी रियासतें जिनकी संख्या 550 के आसपास थीं उनका विलीनीकरण। उन्हें सरदार ही इसलिए कहा गया था कि गुजरात के बारडोली कस्बे में किसानों के बुलावे पर वो उनके लिए संघर्ष करने गए थे। यह संघर्ष सफल रहा तो सबसे पहले बारडोली की महिलाओं ने उन्हें सरदार विेशेषण दिया ।


बाद में वे राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सरदार के नाम से स्थापित हुए। वे अपने कार्य के प्रति इतने निष्ठावान थे इसका अद्भुत उदाहरण यह है कि उनकी पत्नी श्रीमती झावेरा बा का निधन मुंबई के हाॅस्पिटल में केंसर से हो गया। उस दिन पटेल किसी कोर्ट में मुकदमा लड़ रहे थे, एक व्यक्ति ने उन्हें उनकी पत्नी की मृत्यु की पर्ची दी। वह पर्ची पटेल ने जेब में रख ली और फिर मुकदमा लड़ना शुरू कर दिया। जिस व्यक्ति पर हत्या का मुकदमा लगा था कहते हैं कि उसे पटेल ने बचा लिया। जब लोगों ने पूछा कि आपकी पत्नी की मृत्यु हो गई तब भी आपने सूचना मिलने के बावजूद मुकदमा लड़ना जारी रखा। उन्होंने जवाब दिया कि मेरी पत्नी का तो देहांत हो चुका उसे तो मैं वापस ला नहीं सकता, परन्तु उस व्यक्ति का मुकदमा नहीं लड़ता तो शायद उसे मृत्यु-दण्ड भी मिल सकता था। 


 पटेल के कारण ही देश में शक्तिशाली प्रशासनिक सेवा स्थापित हो पाई। उन्होंने अंग्रेजों की इंडियन नेशनल सर्विस के स्थान पर इंडियन एडमिनिस्ट्रेशन सर्विस की स्थापना की। ये सेवाएँ आज भी अस्तित्व में हैं। इन सेवाओं की वजह से हमारा देश आज भी कई विवादास्पद स्थितियों के बावजूद लोकतांत्रिक रूप से ज्यादा कसा हुआ है। सरदार पटेल देश की आर्थिक व्यवस्था को भी ताकतवर बनाना चाहते थे, मगर उनके जो नुस्खे थे उन्हें उनकी (पटेल) की मृत्यु 15 दिसम्बर 1950, जन्म 31 अक्टूबर 1875 के बाद एक तरह से देश निकाला दिया गया। बाद के समय में कथित समाजवाद लागू किया गया, मगर यह समाजवाद तत्काल असफल हो गया और नई उदारवादी नीति अपनानी पड़ी।


 पटेल ही वही नेता थे जिन्होंने संविधान सभा की अल्पसंख्यक उपसमिति के अध्यक्ष रहते हुए देश में साम्प्रदायिक एकता आने की कोशिश की। वे कठोर देशभक्त थे, लेकिन कट्टरपंथी नहीं थे। फिर बात मुस्लिम कट्टरपंथ की हो या हिन्दू कट्टरपंथ की या सिख कट्टरपंथ की। माना जाना चाहिए कि पटेल को मुसलमान विरोधी कहना, बिलकुल उचित नहीं है। वे अपने विचारों में इतने धर्मनिरपेक्ष, सहिष्णु, बड़े दिल वाले तथा असाम्प्रदायिक थे कि एक बार उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा था कि यदि कोई भारत में हिन्दूवाद संरक्षक है तो उसे सोचना चाहिए कि हिन्दूवाद एक व्यापक जीवन सिद्धांत, दृष्टिकोण और जीवन शैली का संदेश देता है। हिन्दूवाद तो दरअसल बहुत सहनशील है। यही वह जीवन शैली है जो सभी जाति सम्प्रदायों को मिलजुल कर तथा एकजुट होकर रहना सिखाती है। पटेल कितने असाम्प्रदायिक थे यह उनके कई व्याख्यानों तथा वार्तालापों से जाहिर होता है। वे हिन्दू संस्कृति या राज्य नीति स्थापित करने के जबर्दस्त खिलाफ थे। कोलकाता में दिए गए उनके भाषण को अक्सर कोट किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि हिन्दू राज्य के संदर्भ में कोई भी गंभीर चर्चा नहीं की जा सकती। भारत ने धर्म निरपेक्षता को ही चुना है।


 भारत का ताजा इतिहास यह भी कहता है कि आजादी के आसपास ही कुछ सिखों ने खालिस्तान की माँग की थी मगर पटेल ने पंजाब के विभिन्न भागों में घूमकर लोगों को समझाया कि हम सभी को भाई-बहनों की तरह रहना चाहिए। यह गाँधी या नेहरू की तरह ही भावुक प्रार्थना थी जो भारी कामयाब रही। पटेल अंदरूनी लड़ाई-झगड़ों में कतई न उलझने की सलाह हरदम दिया करते थे । वे कहा करते थे कि हम इस तरह के लड़ाई-झगड़ों में उलझे रहेंगे तो अलगाववाद, खालिस्तान, सिखिस्तान या जाटिस्तान की माँगों में उलझकर ही रह जाएँगे और आखिरकार यह देश पागलों का देश यानी पगलीस्तान के रूप में बदल जाएगा।


 पूरी तरह यह बात स्पष्ट है कि अगस्त 15, 1947 को जब पूरा देश स्वतंत्रता जश्न मना रहा था, तब दो ही नेता इस जश्न से एकदम दूर थे गाँधी और पटेल। सबसे पहले पटेल ने देश को स्पष्ट संदेश दिया था कि अभी तो हमें विदेशी रियासत से मुक्ति मिली है, स्वराज नहीं। स्वराज तो हमें अपने आप में तलाशना होगा। सबसे पहले पटेल का संदेश जातिप्रथा तथा साम्प्रदायिकता का उन्मूलन का था।  वे कहा करते थे कि छुआछूत के साथ ही भुखमरी मिटानी होगी और एक संयुक्त परिवार की तरह रहना होगा। वे यह भी कहा करते थे कि अंग्रेजों ने दरअसल भारत में फूट के बीज नहीं रोपे। यह पौधाकरण हमारा ही था जिस पर चलकर अंग्रेजों ने दशकों हम पर राज किया। सरदार पटेल की याद में गुजरात में स्टेचू आॅफ यूनिटी प्रतिमा का जहाँ निर्माण किया गया है उसे देखने देश-विदेश के पर्यटक लगातार आते हैं।


 पटेल के बारे में इतिहास में यह भी प्रमाण मिलते हैं कि वे मजदूरों कोे रोजगार दिलाने के खुलकर समर्थक थे। वे मानते थे कि मजदूरों की कथित हड़तालों ने ही उन्हें बर्बाद कर दिया, क्योंकि ये हड़तालें सिर्फ कथित मजदूर नेताओं का राजनीतिक मंच बन गया है। कहा जाता है कि गरीबी और गुरूबत का सबसे अच्छा गर्भनिरोधक विकास है लेकिन विस्फोटक रूप से बढ़ती जनसंख्या ने पटेल के इस सपने को भी पूरा नहीं होने दिया। पटेल के बारे में कहा जाता है कि नेहरू यदि विचारक थे, तो पटेल कर्ता थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद ने तो यहाँ तक बोल दिया था कि अगली पीढ़ियों को पटेल कूटनीतिक सूझबूझ से काम लेना चाहिए ताकि देश लगातार दुनिया में शक्ति और सम्मान अर्जित कर सके। पटेल ने ज्यादातर अध्ययन घर पर ही रहकर किया लेकिन लाॅ की पढ़ाई करने के लिए वे ब्रिटेन गए जहाँ से बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की। उन्हें भारत-रत्न से भी सम्मानित किया गया। (लेख में लेखक के अपने विचार एवं अध्ययन है) 


 



नवीन जैन
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