गुलज़ार का एक गीत है जिसे आशा ने बड़ी सिद्दत से गाया है- 'मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है । मेरा वो सामान मुझे लौटा दो' । ये प्रेमी भी अजीब होते हैं । या तो अपना सामान छोड़ आते हैं या दूसरे का उठा लाते हैं जिससे आने-जाने का बहाना बना रहे । पर गाँधी जी के पास न इतना सामान था और न वे इतने असावधान थे कि अपना सामान छोड़ आयें । कौन जय ललिता की तरह चप्पलों की हजारों जोड़ियाँ थीं या दस पाँच चश्मे थे कि भूल आते । एक चश्मा आँखों पर और एक जोड़ी चप्पल पैरों में । भूलने का प्रश्न ही नहीं । हमें तो लगता है कि यह ओटिस नाम का आदमी कोई चालाकी कर रहा है । भारत में चुनाव आ रहे हैं और कांग्रेस के लिए गाँधी के बहाने कोई न कोई मुद्दा बन सकता है । सो पट्ठे ने गाँधी जी की वस्तुओं की बात उड़ा दी । और सब लगे चिल्लाने कि गाँधी की वस्तुओं को किसी भी कीमत पर वापस भारत लाओ ।
इस आदमी की जालसाजी एक और बात से समझ आती है कि यह कह रहा है कि इसके पास गाँधी जी के खून का सेम्पल है और गाँधी की भस्म भी । गाँधी का खून हमने ही इतना पी लिया था कि और बचने का प्रश्न ही नहीं । रही बात राख की सो क्या पता चलता है कि यह राख किसकी है । यह तो अपने जलने का विधान है वरना यह आदमी यह भी कह सकता था कि उसके पास गाँधी जी की खोपड़ी है ।
हम इसी पहेली में फँसे हुए थे कि तोताराम आ गया । हमने सोचा कि यह शायद हमारी मदद करेगा पर उसने तो आते ही समस्या को और उलझा दिया । बोला- मास्टर मेरे पास गाँधी जी की पाँच-सात चीजें हैं । मैं उस ओटिस जितना कमीना नहीं हूँ जो बापू की चीजों को नीलाम करूँ । बाप की विरासत को तो सँभाला जाता है, सही सलामत अगली पीढ़ी को सौंपा जाता है न कि नीलाम किया जाता है । हमें हँसी आगई, कहा- तोताराम हमें तो लगता है कि किसी दिन कोई कबाड़ी घर के आगे से गुज़रेगा- बापू की चीजें ले लो । चश्मा, घड़ी, थाली, कटोरा। हर माल पचास रूपया ।
तोताराम गंभीर हो गया, बोला- मास्टर मज़ाक नहीं । सच कह रहा हूँ मेरे पास बापू की खादीई, शराब-बंदी, मितव्ययिता, सादगी, सत्य, अहिंसा, सर्व धर्म समभाव, ग्राम स्वराज आदि सब अच्छी हालत में हैं । सुरक्षित है । मैं इन्हें बिना किसी मूल्य के देना चाहता हूँ । हमें फिर हँसी आ गई , तोताराम! बावला हुआ है क्या । इन चीजों की भला इक्कीसवीं सदी में किसे ज़रूरत हो सकती है । बापू की ये चींजें आचरण की माँग करती हैं । और यह आचरण करके नेताओं को क्या भूखा मरना है ? उन्हें तो वोट कबाड़ने के लिए बापू की भौतिक वस्तुओं की पूजा का नाटक करना है । लोग वस्तुओं के आगे हाथ जोड़ते रहें और ये कुर्सी की जोड़- तोड़ करके माया जोड़ते रहें ।
तोताराम ने लम्बी साँस मारी- लगता है अब ये वस्तुएँ स्वर्ग जाने पर मुझे ही बापू को स्वयं को ही सौंपनी पड़ेंगी।
खाता-पीता रात को औ' दिन को आराम ।
बुरी तरह से व्यस्त है भारत देश महान ॥
भारत देश महान, तनिक अवकाश न मिलता ।
मिलता तो बापू के रस्ते पर भी चलता ॥
कह जोशीकविराय हो गया अज़ब करिश्मा ।
दारू पीता देश पहन बापू का चश्मा ॥
(व्यंग्यकार/लेखक के अपने विचार है)
रमेश जोशी
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