जाने कैसा होता हैं आत्मा का प्यार और दोस्ती से सम्बंध

हम सभी एकही परमात्मा की संतान हैं।  हमसे जुडी प्रत्येक आत्मा का पहले भी कभी कोई ना कोई हमसे सम्बन्ध जरूर रहा है। मैं इस बात की प्रबल समर्थक हूँ।


           जब आत्मा शरीर रुपी वस्त्र धारण कर इस संसार में जन्म लेती है तो जन्म के साथ ही कई सांसारिक रिश्तों में वो बंध जाती है, आप विश्वास नहीं करेंगे, पर ये सब पूर्व-नियोजित है। माँ-बाप, भाई-बहिन, चाचा-ताऊ, दोस्त रिश्तेदार सब कोई उसे पूर्वजन्म या उससे पूर्वजन्म के सम्बन्धों के आधार पर ही प्राप्त होते हैं।  ये सभी वो आत्माए होतीं हैं जिनसे जन्म लेने वाली इस आत्मा का कोई ना कोई हिसाब चाहे वह लेने का हो या देने का हो बाकी रहा होता है। व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना ये भी है कि यदि रिश्तों के मध्य "दोस्ती या प्यार " का जज़्बा नहीं है तो प्रत्येक रिश्ता बेमानी और नीरस हो जायेगा। उसमें एक अज़ीब सा रूखापन आ जाएगा।



माँ-बाप तानाशाह से दिखाई देंगे और बेटा-बेटी संस्कारहीन, लापरवाह, मतलबी से दिखाई  देंगे। इसी प्रकार प्रत्येक रिश्ते में अलगाव साफ़-साफ़ झलकता दिखाई देगा। यह एक बड़ी भयावह स्थिति होगी और जीवन में आनन्द का स्थान नीरसता लेगी तथा सृष्टि विनाश को कगार पर पहुंचाने में समय नहीं लगेगा |


कोई विश्वास करे न करे इस संसार में जन्म लेने वाली आत्मा को जितने भी दोस्त ,रिश्तेदार जन्म के साथ मिलते हैं या बाद में आत्मा के साथ जुड़ते हैं सब नियति द्वारा या कहें भगवान् द्वारा पूर्व-नियोजित हैं। किसी से इस आत्मा से कुछ लेना बाकी होता है किसी को कुछ देना। फिर चाहे वो धन हो,जमीन हो , प्यार हो या दुश्मनी। और किसी कारण यह कार्य इस जन्म में भी अधूरा रह गया तो आत्मा का पुनः जन्म लेना निश्चित है। यह जन्म लेने का क्रम निरंतर जारी रहता है। यह क्रम इसलिए भी जारी रहता है कि अपने हर जन्म में आत्मा के कुछ पुराने हिसाब बराबर होते हैं तो कुछ नये हिसाब उसके कर्मों की वजह से फिर बन जाते हैं। इसका अर्थ ये कभी नहीं लेना है कि हम कर्म ना करें, कर्म तो आत्मा को करने ही होंगें पर यदि वह बार -बार जन्म लेने से मुक्ति चाहती है तो निष्काम कर्म ही एक मात्र रास्ता है, क्योंकि निष्काम भाव से किये कर्म का कोई प्रभाव आत्मा पर नहीं पड़ता। यहाँ मेरा ये भी मानना है कि मनुष्य कितने भी जन्म क्यों ना ले  हर बार वह मनुष्य योनी में ही जन्म लेता है। यह जरूरी नहीं आप इससे सहमत हों। हर आत्मा का सहज स्वभाव शांत-स्वरूप और आनन्दमयी होता है। अगर हम ये कहें कि परमात्मा ने आत्मा को सिर्फ़ प्यार बाँटने के लिए मनुष्य शरीर प्रदान किया है तो कोई आतिशयोक्ति नहीं होगी। आप किसी भी धर्म को देखिये सब में प्रथम सन्देश यही मिलेगा, सब उसकी सन्तान है इसलिए प्राणी मात्र से प्यार करो | ये भी कहा जाता है कि "प्रेम से तो भगवान् भी वशीभूत हो जाते हैं" आप ही सोचिये जिस प्रेम से स्वयं भगवान वश में किये जा सकते हों तो प्राणी मात्र की क्या बिसात है। यही कारण है कि जहां दोस्ती है प्यार है वहां आत्मा को सकून प्राप्त होता है क्योंकि ये ही आत्मा का स्वयं का भाव होता है और जहां ये नहीं होते वहां आत्मा अशांत और व्याकुल रहती है। आपको ऐसे कई उदहारण देखने को मिल जायेंगे जहां दोस्त सिर्फ़ दोस्त ना रह कर परिवार के सदस्यों जैसा हो जाता है और वो उस आत्मा के लिए वो कार्य करता है जो उसके परिवार


के अपने भी नहीं करते। क्यों? स्पष्ट है उसका जिस आत्मा से दोस्ती का सम्बन्ध इस जन्म में हुआ है वो उस आत्मा का पूर्व जन्म की कर्ज़दार है और इस जन्म में वो कर्ज़ दोस्त के रूप में जुड़ कर चुका रहा है।


इसलिए यदि हमें जीवन का वास्तविक आनन्द प्राप्त करना है तो सिर्फ़ प्यार बांटिये। आत्मा से आत्मा के रिश्ते पहचानिये रिश्ते बनाइये प्यार से निभाइए भी प्यार से क्योंकि ------------" शरीर तो आत्मा का कपड़ा है, एक दिन बदल ही जाएगा


                   'जो प्यार बाँटा है जग में, वही अगले जन्म काम आएगा"


लेखक : तिलकराज सक्सेना