क्या अरेन्ज मैरिज आज भी उतनी ही मुश्किल है एक लड़की के
पिता के लिए जितनी पहले के जमाने में हुए करती थी
हम चाहे कितने ही आधुनिक क्यों न बन जाये लेकीन फिर भी आज समाज का रुतबा वही का वही है है ! नयी पीढ़ी भले ही कुछ आगे बढ़ के अलग सोच रही हो लेकीन हमारे समाज के कुछ पूज्यनीय लोग आज भी उसी रुढिवादिता में धसे हुए है जहां 50 साल पहले थे, बस फर्क इतना है की आज बाते कहने का ढंग और तरीका बदल गया है ! लड़का लड़की के पैदा होने से लेकर उनकी शादी तक उनकी सोच लगभग वही है जो हुआ करती थी !
जिसमें देहज प्रथा ने तो अलग ही रूप धारण कर लिया है, की कहने ही क्या ! लोग पहले मुह खोल के देहज मांग लिया करते थे और आज अच्छी शादी के नाम पर पैसे ऐठा करते है ! पहले हर रस्मो-रिवाज में सामने से दिखा कर पैसे दिए जाने होते थे, आज हमारा स्टैंडर्ड ऐसा है, हमारे रिश्तेदारों के सामने हमारी ईज्जत है, वो हमे देते है तो हमे भी देना है, ये बोल के लड़की वालो से अच्छी खासी मोटी रकम ऐठ ली जाती है ! और आगे से ये भी कहा जाता है की आप चिंता न करे कुछ कम होगा तो हम मिला देंगे, बस आप तो वैसा करते जाये जैसा हम कहे रहे है ताकि लड़के वालो की नाक न नीची हो जाये ! आखिर ये कैसे शादी की परम्परा है जहां एक पिता अपनी बेटी को बिना समाज के ताने सुने पुरे आत्मसम्मान से साथ अपने घर से विदा नहीं कर सकता ! क्यों एक बेटी की शादी निश्चित होते ही पिता की आँखों में आसू आकर जम जाते है ! क्यों एक बेटे वाला ये बोल के मुह से यही शब्द निकलते है की भाई साहब आपकी लड़की तो हीरा है और बहुत भाग्यशाली है जो हमारे घर में आ रही है, क्या यह लड़के का भाग्य नहीं है जो उसे एक अच्छी लड़की मिल रही है उसका घर सवारने के लिए ? क्यों एक पिता बस ये अच्छी शादी का मतलब निकलने में ही खुद के खून पसीने की कमाई अपनी बेटी की शादी में लगा देता है ?
आज हमारे विचारो में परिवर्तन भले ही आ गये हो लेकीन इतना नहीं की हम देहज प्रथा जैसी इस गन्दी सोच को पूरी तरह रोक सके ! उस पर लोग कहते है की लड़की वाले हां ही क्यों करते है दहेज के लिए, तो क्या कोई इस बात का जवाब दे सकता है की कितने गिने चुने लड़के वाले है जो दहेज नहीं मांगते जो वास्तव में एक लड़की को ही अपने घर लाना चाहते है, जिन्हें इस समाज में अपने रिश्तेदारों में ये बोलने से फर्क नहीं पड़ता की हमे सिर्फ लड़की चाहिए उसका माँ बाप का पैसा नहीं उन्होने जो किया वो बहुत है हमारे लिए तो और सम्मानीय भी ! शायद 10 % भी नहीं होंगे, तो क्या अब एक बाप अपनी बेटी की शादी का करे, जिस बेटी को वो 25 साल तक उसने इतने प्यार और दुलार से सीचा है, उसे वैसा ही जीवन साथी मिले क्या ये बात नहीं सोचे ! क्यों हर रिश्ते को आज पैसे से ही तौला जाता है, शादी खाना अच्छा कर दिया तो कपडे खराब से दिए, कपडे अच्छे दे दिए तो नजरों में पैसे कम कर दिए क्या एक शादी के बंधन से बड़ी है ये छोटी छोटी और गिरी हुए बाते ! क्या एक लड़की के माँ बाप का दिल इसे बड़ा नहीं हो सकता ! और अगर लड़की की उम्र थोड़ी से ज्यादा हो जाये तो फिर समाज वाले अपना मुह खोलने से बाज़ नहीं आते, की अभी तक लड़की को घर बिठा रखा है ! क्या एक लड़की पैदा करना उसे प्यार करना कोई गुन्हा है या उस लड़की का लड़की होना पाप है ! आखिर कब बदलेगी लोगो की सोच !
हम कितने ही बदल गये हो कितने ही अपने आप को मोर्डेन कहने लग गये हो , बड़ी बड़ी गढ़ियो में घुमने लग गये हो ,माल में जाने लग जाये, लड़के- लडकियो को शिक्षित कर दिया हो लेकीन जब भी शादी की बात आती है तो वही रुढिवादिता, वही परम्परायें, वही प्रथाए हमारे सामने मुह फाडे खड़ी हो जाती है ! जहा सिर्फ एक लड़की के माता पिता को ही अपना सर झुकाना होता है, शायद वो भी ये मान के बैठ जाते है की हम लड़की वाले है कितना ही कुछ अच्छा करले लेकीन कभी लड़के वालो के मुह से एक तारीफ नहीं सुन पायंगे, बाकि हमारी बच्ची की किस्मत है !
क्या हम लोग वाकई में एक आधुनिक भारत की और बढ़ रहे है हमारे हाथो में स्मार्ट फ़ोन है , घर पर इन्टरनेट है , खरीददारी के लिए ऑनलाइन मार्केट है , बाते शेयर करने के लिए सोशल मिडिया है लेकीन फिर भी हमारी सोच एक लड़का और लड़की पर क्यों रुकी हुई है, शादी जैसे पवित्र बंधन को हम कैसे पैसो से तोल रहे है ! जिसमे भी ये सिर्फ किसी गाव की लड़की की कहानी नहीं है,शहरों की पढ़ी लिखी ,जॉब करती लडकिया भी इसी में शामिल है ! या तो फिर एक लड़की अपने हिसाब से भाग कर शादी कर ले, लव मैरिज करले या अपना करियर बना के खुद ही अपनी जिन्दगी अकेली जी ले और अगर वो अर्रेंज मेरिज करना चाहती है एक आचा जीवन साथी चाहती है तो ये सब तो उसे भुगतना ही होगा ! और शयद यही कारण है की आज की युवापीढ़ी इन जूठी धकोसली बातो से दूर रहने के लिए शादी के बंधन में बंधना ही नहीं चाहते क्युकी उन्हें अपनी जिन्दगी किसी रिश्तेदार या झूठे समाज के लिए नहीं जीनी है उन्हें अपनी जिन्दगी अपनी मर्जी से अपने माता पिता के साथ और अपनी मर्जी से जीनी है , जहां वो अपने फैसले खुद ले सके और अपने तरीके से अपनी जिन्दगी को आगे बढ़ा सके, न की इस दिखावटी की दुनिया के तौर-तरीको के हिसाब से !
दीप्ति सक्सेना, जयपुर