वैसे तो राजनीति में आने और पद पाने के बाद अंतुले ही क्या, कुत्ता भी जय जैवन्ती गाने लग जाता है, सूअर भी डायरिया होने के डर से बोतलबंद पानी पीने लग जाता है, गधा भी अंगूर छील कर खाने लग जाता है । हम तो अपनी 'आधी और रूखी' में ही खुश हैं पर जब अंतुले ने मुम्बई कांड के बाद संसद में आतंकवाद के विरुद्ध कठोर कानून बनाए जाने के दौरान १७ दिसम्बर को जो अप्रासंगिक बात निकाली उससे बड़ी कोफ़्त हुई । अगले दिन जैसे ही तोताराम आया, हम चालू हो गए- यह क्या तोताराम, सभ्य समाज में चार आदमियों के बीच बैठा आदमी छींकते समय नाक के आगे रूमाल रख लेता है, उबासी लेते समय मुँह के आगे हाथ कर लेता है, आदमी सड़क की तरफ़ पीठ करके पेशाब करता है, कुत्ता भी सड़क के बीच पेशाब नहीं करता बल्कि एक किनारे कहीं झाडी-कूड़े पर जाकर टाँग उठाता है, खाना खाते समय आदमी सोचता है कि ज़्यादा आवाज़ न हो, भले आदमियों के बीच साला पादने का भी एक सलीका होता है पर इस अंतुले को देखो, अस्सी साल की उमर हो गई पर इतना होश नहीं कि संसद में बैठ कर क्या बोल रहे हैं । सारी दुनिया देख-सुन रही है और ये महाशय कितनी खतरनाक और अनर्गल बात मुँह से निकल गए । अगर उचित-अनुचित का होश नहीं है तो आदमी चुप बैठे, बोलना क्या ज़रूरी है ? कहा भी है, -
बोली एक अमोल है, जो कोई बोले जानि ।
हिये तराजू तौल के, तब मुख बाहर आनि ॥
तोताराम मुस्कराया, बोला- मास्टर, यह राजनीति है, इसमें उचित-अनुचित, समय-असमय कुछ नहीं होता । राजनीति में कभी-कभी असम्बद्ध लगने वाली बात भी बड़ी सोची समझी होती है और उसके भी बड़े दूरगामी परिणाम निकलते हैं । यह तो तुझे मालूम ही होगा कि विचार और शब्द कभी नष्ट नहीं होते । वे सृष्टि के सर्वर में ई-मेल की तरह सुरक्षित रहते हैं और कम्प्यूटर खोलते ही प्रकट हो जाते हैं । इसलिए अपने मतलब की बात वक्त-बेवक्त छोड़ते रहना चाहिए । यह राजनीति का 'अंतुले-सिद्धांत' है । अंतुले -सिद्धांत के अनुसार हेमंत करकरे को मरवाने के लिए किसी संघ समर्थक ने उसे ताज होटल की बजाय हॉस्पिटल भिजवा दिया जहाँ आतंकवादियों ने नहीं वरन किसी और (?) ने उसकी हत्या कर दी । इस 'और' का मतलब तो तू समझता ही है । मतलब की करकरे की हत्या के लिए पाकिस्तान से आए आतंकवादी नहीं बल्कि मालेगाँव बम-काण्ड के आरोपी लोग ज़िम्मेदार हैं ।
हमें बड़ी कोफ़्त हुई, कहा- इस अंतुले-सिद्धांत के अनुसार तो हिटलर को बदनाम कराने के लिए यहूदियों ने स्वयं को गैस चेम्बरों में बंद करके आत्महत्या करली, बुश ने आतंकवाद से लड़ने के बहाने दो टर्म तक अपनी कुर्सी पक्की करने के लिए ख़ुद ही ९/११ वाली घटना करवा दी, हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नरेन्द्र मोदी ने स्वयं ही गोधरा कांड करवा दिया और कांग्रेस ने मुस्लिम वोटों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करने लिए मुसलमानों को मरवा दिया, भा.जा.पा. ने चुनावी मुद्दा खड़ा करने के लिए मुम्बई-कांड करवा दिया । छी, क्या घटिया सोच-विचार है!
तोताराम बोला- सौ प्रतिशत इसी तरह न हो तो भी राजनीति हमेशा अपना ही हित देखती है । कौए की दृष्टि हमेशा गंदगी पर ही रहती है । मुम्बई कांड से ज़्यादा लोग तो रोजाना भूख से मर जाते होंगे । बात जनता का मरना नहीं है, जनता तो मरती ही रहती है । जनता को तो मरना ही है । आतंकवादी नहीं मारेंगें तो किसी नेता के जन्म-दिन के लिए फंड जुटाने वाले कार्यकर्ता मारेंगे । अब चाहे अंतुले माफी माँग लें पर उनके सिद्धांत ने चुनाव से पहले संकेत तो भेज ही दिया अपने वोट बैंक के पास । शक के कीटाणु एक बार दिमाग में घुसने के बाद कभी समाप्त नहीं होते ।
याद रख बन्दर कितना ही बूढ़ा हो जाए गुलाटी मारना कभी भूलता । यह कुत्ते वाली पूँछ है । कहा भी है, 'राखो मेलि कपूर में हींग न होए सुगंध ।' (लेखक के अपने विचार हैं)
रमेश जोशी
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