धार्मिक भावनाओं पर प्रहार

आस्था के साथ खिलवाड़ 

लेखक :  ज्ञानेन्द्र रावत

वरिष्ठ पत्रकार 

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पिछले कुछ वर्षों में देश में धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ और खाद्य पदार्थों में मिलावट की घटनाएँ एक रिवाज-सा बन गया है। आलोचकों का मानना है कि यह एक धर्म विशेष के लोगों द्वारा सुनियोजित साजिश के तहत दूसरे धर्म के अनुयायियों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने का प्रयास है। जूस, फल, रोटी, दूध या अन्य खाद्य-पेय पदार्थों में थूक या अखाद्य पदार्थ मिलाने की कथित घटनाएँ बार-बार सामने आ रही हैं। हाल ही में लखनऊ में दूध में थूकने की घटना ने सुर्खियाँ बटोरीं। विशेष रूप से सावन माह में काँवड़ यात्रा के दौरान ऐसी घटनाएँ आम हो गई हैं, जो हर साल विवाद, तनाव और सांप्रदायिक उन्माद का कारण बनती हैं। दिल्ली-देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पंडित जी वैष्णो ढाबे पर भगवा झंडे और भगवान वाराह की तस्वीरें लगाकर काँवड़ यात्रियों को धोखा देने का मामला उजागर हुआ। स्वामी यशवीर और उनके समर्थकों द्वारा चलाए गए अभियान में इस ढाबे के मालिक सनब्बर और कर्मचारी तजम्मुल की असल पहचान सामने आई। तजम्मुल ने स्वीकार किया कि मालिक सनब्बर, जो मुस्लिम है, ने उसे कड़ा पहनने और पूछने पर गोपाल या पंडित जी का बेटा बताने का निर्देश दिया था। इस तरह की गतिविधियाँ देशभर में हजारों ढाबों और होटलों में चल रही हैं, जो लोगों की आस्था को खंडित कर रही हैं।

स्वामी यशवीर महाराज, काँवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों और ढाबों पर नेमप्लेट लगाने की माँग के लिए चर्चा में रहे हैं। उनके अभियान ने कथित रूप से काँवड़ मार्ग पर कई ढाबों और खान-पान के कारोबारियों की पहचान उजागर की, जो गलत तरीके से हिंदू नामों का उपयोग कर रहे थे। उनके अभियानों ने कई विवादों को भी जन्म दिया। 2015 में, पैगंबर मोहम्मद पर कथित विवादित टिप्पणी के लिए उन पर धार्मिक भावनाएँ भड़काने का मुकदमा दर्ज हुआ और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत जेल भेजा गया। 

2023 में, उन्होंने जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अरशद मदनी के बयान को हिंदुओं की भावनाएँ भड़काने वाला बताकर देवबंद में बहस की चुनौती दी। 2024 में, उनके “पहचान अभियान” के दौरान, उनकी टीम पर पंडित जी वैष्णो ढाबे के कर्मचारी के साथ दुर्व्यवहार और पैंट उतारने का प्रयास करने का आरोप लगा, जिसके बाद पुलिस ने छह कार्यकर्ताओं को नोटिस जारी किया। 2024 में, शामली में मुस्लिमों के खिलाफ कथित भड़काऊ बयानों के लिए उनके और 47 अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। वे मुजफ्फरनगर के बघरा गाँव में योग साधना यशवीर आश्रम के संचालक, सनातन धर्म के प्रचारक और “घर वापसी” अभियान से जुड़े हैं। 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी और अन्य मुस्लिम नेताओं ने स्वामी यशवीर जैसे हिंदू संगठनों पर कानून को अपने हाथ में लेने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि इस तरह के अभियान सामुदायिक विद्वेष को बढ़ावा दे सकते हैं और सभी दुकानदारों को एक ही नजरिए से देखना अन्यायपूर्ण है। ओवैसी ने कहा कि ऐसी कार्रवाइयाँ संविधान के खिलाफ हैं और धार्मिक आधार पर लोगों को निशाना बनाना सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाता है। दूसरी ओर, कई दुकानदारों ने अपनी सफाई में कहा कि वे केवल अपने व्यवसाय को चलाने के लिए मजबूरी में ऐसा करते हैं, क्योंकि ग्राहकों की प्राथमिकताएँ और बाजार की माँग के कारण उन्हें अपनी पहचान छिपानी पड़ती है। उनका तर्क है कि वे किसी की आस्था को ठेस पहुँचाने का इरादा नहीं रखते, बल्कि केवल अपनी आजीविका कमाने का प्रयास करते हैं।

फोटो : साभार 
पर ऐसी घटनाएँ केवल खाद्य पदार्थों की शुद्धता तक सीमित नहीं हैं। कुछ लोग छद्म नामों से व्यवसाय चलाकर धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हैं। यह सवाल उठता है कि अपनी पहचान छिपाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है? सरकारी सुविधाएँ, आरक्षण और वजीफा लेते समय तो धर्म और जाति खुलकर बताई जाती है, लेकिन व्यवसाय में पहचान छिपाना बदनीयती का सबूत माना जा रहा है। आलोचकों का कहना है कि यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसका उद्देश्य धार्मिक विद्वेष फैलाना और सांप्रदायिक उन्माद भड़काना है। ऐसी गतिविधियाँ राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए कलंक हैं।

इन घटनाओं पर राजनीतिक नेताओं और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वालों की चुप्पी सवाल खड़े करती है। कांग्रेस के शीर्ष नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के नेता असदुद्दीन ओवैसी और समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद एस टी हसन जैसे नेताओं पर आरोप है कि वे ऐसी घटनाओं की निंदा करने के बजाय उनका समर्थन करते हैं या चुप रहते हैं। इन नेताओं द्वारा ऐसी गतिविधियों का विरोध करने वालों की भर्त्सना की जाती है, बिना यह सोचे कि यह उचित है या अनुचित। आलोचकों का मानना है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण ये नेता मौन रहते हैं, जिससे ऐसी गतिविधियाँ और बढ़ रही हैं।

इसके अलावा, देश में लंबे समय से छद्म नामों के जरिए हिंदू लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन कराने और उन्हें खाड़ी देशों में बेचने की घटनाएँ सामने आ रही हैं। केरल और पीलीभीत की हालिया घटनाएँ इसका जीवंत उदाहरण हैं। ऐसी सैकड़ों घटनाएँ रोजाना हो रही हैं, लेकिन इन पर न तो राजनीतिक नेता, न धर्मगुरु और न ही धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाले बोलते हैं। आलोचकों का कहना है कि यह सब एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य हिंदुओं का धर्म भ्रष्ट करना और उनकी बहन-बेटियों को प्रेम के जाल में फंसाकर खाड़ी देशों में बेचना है। यदि ऐसी साजिशों को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह सामाजिक और राष्ट्रीय एकता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कठोर कदम उठाए हैं। उन्होंने खाद्य पदार्थों में मानव अपशिष्ट या अखाद्य चीजों की मिलावट को संज्ञेय अपराध घोषित किया है। उनका मानना है कि उपभोक्ताओं को विक्रेता और सेवा प्रदाता की पूरी जानकारी रखने का अधिकार है। खाद्य पदार्थों की शुद्धता सुनिश्चित करने और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए कठोर कानून बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ढाबों, होटलों और सड़क किनारे के विक्रेताओं के लिए स्पष्ट नियम बनाए जा रहे हैं, ताकि छद्म पहचान और धोखाधड़ी पर रोक लगे। 

गलत जानकारी देने या कानून का उल्लंघन करने वालों के लिए कठोर कारावास या आर्थिक दंड का प्रावधान करने की योजना है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी ‘थूक जिहाद’ जैसे कृत्यों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने इसे गंभीरता से लेने और कठोर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि ऐसी गतिविधियाँ न केवल खाद्य पदार्थों को दूषित करती हैं, बल्कि धार्मिक भावनाओं को भी आहत करती हैं, जिससे सामाजिक सौहार्द पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। यदि इन गतिविधियों को नहीं रोका गया, तो यह राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों से उम्मीद है कि खाद्य सुरक्षा और धार्मिक भावनाओं की रक्षा हो सकेगी, लेकिन इसके लिए सामाजिक जागरूकता और पारदर्शिता भी उतनी ही जरूरी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)