लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
www.daylife.page
एक तरफ केंद्रीय सरकार ने 16 वीं राष्ट्रीय जन गणना अक्तूबर माह से करने की अधिसूचना जारी कर दी है। इसमें 1941 के बाद पहली बार यह जातियों की भी गणना की जायेगी। ऐसे ही समय दक्षिण के कर्नाटक राज्य में सरकार ने राज्य में फिर से जातिय सर्वेक्षण करवाने की तैयारियां शुरू कर दी है। राष्ट्रीय स्त्तर पर होने वाली जन गणना के आंकडे आने में कम से कम दो वर्ष का समय लगेगा वहां कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारामिया ने कहा है कि राज्य में जातिय सर्वेक्षण का काम तीन महीनो में ही पूरा जायेगा। यह दूसरी बार होगा कि कर्नाटक में जातिय सर्वेक्षण होगा। क्योंकि जान गणना करवाने का अधिकार केवल केंद्रीय सरकार के पास है इसलिये राज्य की कांग्रेस सरकार ने अपनी जातिय गणना का नाम आर्थिक, सामजिक तथा शैक्षणिक दिया है। यह बात समझ से परे है कि इस प्रकार के सर्वेक्षण का क्या औचित्त्य है। यह कहा जा रहा है राज्य सरकार का सर्वेक्षण वास्तव में राजनीति के चलते करवाया जा रहा है
देश में कर्नाटक पहला राज्य था जहाँ ऐसा सर्वेक्षण करवाया गया था। यह सर्वेक्षण 2015 में करवाया गया था जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी तथा तब भी सिद्धारामिया ही राज्य के मुख्यमंत्री थे.यह निर्णय पार्टी और पार्टी की सरकार की बजाय सिद्धारामिया का खुद का था जो कुरुबा समुदाय से आते है। यह समुदाय अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में आता है। कन्नड़ भाषा में पिछड़ों को आहिंदा कहा जाता है। वे शुरू से ही इस वर्ग को अधिक प्रतिनिधित्व देने के पक्षधर रहे है।
इस सर्वेक्षण के लिए एक आयोग बनाया गया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 2018 में दे दी थी। चूँकि उस समय राज्य विधानसभा के चुनाव सिर पर थे इसलिए इस रिपोर्ट पर आगे की कार्यवाही नहीं हुई. इसके बाद सत्ता में आई बीजेपी ने इस रिपोर्ट को ठन्डे बस्ते में डाल दिया। वास्तव में यह रिपोर्ट अधिकारिक रूप नहीं ले सकी क्योंकि अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन सचिव ने इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। तब यह भी कहा गया था कि यह सर्वेक्षण सही ढंग से नहीं हुआ तथा इसके आंकड़े भरोसे लायक नहीं है.हालाँकि इस रिपोर्ट के आंकड़े बार बार लीक होते रहे।
इस रिपोर्ट से पहले यह माना जाता था कि राज्य के दो प्रमुख समुदायों, लिंगायत और वोक्कालिंगा आबादी के लगभग 16 और 14 प्रतिशत है। मुस्लिम आबादी लगभग 8 से 9 प्रतिशत है। अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी 59 प्रतिशत के आस पास है। इस लीक हुई रिपोर्ट के अनुसार राज्य में लिंगायत 12 प्रतिशत है जबकि वोक्कालिंगा 10 प्रतिशत ही हैं। मुस्लिम आबादी 13 प्रतिशत है। रिपोर्ट के अनुदार पिछड़ा वर्ग आबादी का 70 प्रतिशत है। इसमें भी कुरुबा समुदाय की आबादी काफी अधिक बताई गई थी। राज्य में लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय का सामाजिक और राजनीतिक रूप से बड़ा प्रभाव है। कभी राज्य में लिंगायत समुदाय पूरी तरह से कांग्रेस के साथ था। लेकिन जब तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी ने राज्य के मुख्यमत्री वीरेन्द्र पाटिल,जो लिंगायत समुदाय से आते थे, को पद हटा दिया तो इस समुदाय ने मोटे तौर पर बीजेपी का साथ देना शुरु कर दिया। इसके चलते तीन दशक पूर्व राज्य में पहली बार कमल खिला और राज्य में बीजेपी की सरकार बनी। तब से यह समुदाय बीजेपी के साथ चला आ रहा है. इस समुदाय के बड़े नेता के रूप में येदियुरिअप्पा उभर कर समानेतथा तथा बे चार बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उधर वोक्कालिंग समुदाय शरू से ही जनता पार्टी तथा इससे टूट कर बने दलों साथ रहा है। इसी के चलते एच डी देवेगौडा पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और फिर देश के प्रधान मंत्री बने। बाद में उनके बेटे कुमारस्वामी भी दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। वर्तमान में यह दल एन डी ए के साथ तथा कुमारस्वामी केंद्र में मंत्री है।
कुछ वर्ष पूर्व डी. के. शिवकुमार को प्रदेश कांग्रेस का मुखिया बनाया गया था। वे वोक्कालिगा समुदाय से आते है। 2023 में वोक्कालिंगा समुदाय के एक बड़े वर्ग ने कांग्रेस का साथ दिया जिसके चलते कांग्रेस फिर सत्ता में आई। डी के शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार थे लेकिन कांग्रेस पार्टी ने के बार फिर सिद्धारामिया को ही मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया।
डी .के. शिवकुमार शुरू से ही कहते आ रहे हैं कि जातीय सर्वेक्षण के आंकडे सही नहीं हैं। लेकिन इसके बावजूद सिद्धारामिया सरकार ने इसी महीने के शुरू में इस रिपोर्ट को अधिकारिक रूप से स्वीकार कर लिया। यह बात शिवकुमार को और उनके समर्थकों को नहीं पची। उन्होंने पार्टी आला कमान को गुहार लगाई। जिसके चलते राहुल गाँधी ने सिद्धारामिया को यह निदेश दिया कि यह सर्वेक्षण फिर से करवाया जाये। कुछ दिन ना नुकर करने के बाद सिद्धरामिया ने फिर से जातिय सर्वेक्षण करवाने के लिए तैयार हो गए। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)