शिक्षा का व्यापार

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हमारे देश में कोचिंग सेंटर का व्यापार बढ़ता ही जा रहा है। कोचिंग संस्थान सामाजिक, आर्थिक असमानता को बढ़ावा दे रहे हैं। प्रतिभावान गरीब बच्चे कोचिंग संस्थानों की फीस व वहां रहने और खाने-पीने का खर्चा नहीं उठा सकते हैं। प्रतियोगी परीक्षा जेईई, नीट, यूपीएससी के लिए कोचिंग का सहारा लेना ही पड़ता है। यह व्यवस्था अमीर वर्ग के लिए उपलब्ध है। गरीब वर्ग वंचित रह जाता है। देश के संविधान में प्रत्येक नागरिक को शिक्षा प्राप्त करने का मौलिक अधिकार है हमारे शिक्षा व्यवस्था ऐसी हो जो व्यक्तित्व विकास व समाज के लिए भी योगदान करें। 

फिनलैंड, स्वीडन, जर्मनी जैसे देशों में प्राथमिक स्तर से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षण व आधुनिक पाठ्यक्रम पर ध्यान दिया जाता है वहां अलग से कोचिंग सेंटर नहीं होते हैं स्कूलों में ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करवा देते हैं अधिकांश देशों में शिक्षा नि:शुल्क या न्यूनतम है। इसके विपरीत भारत में शिक्षा पर ही 18% जीएसटी लगा दिया गया है। हमारे यहां प्राथमिक स्तर से ही शिक्षक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व उचित मार्गदर्शन नहीं करते हैं पढ़ाने के नाम पर केवल खाना पूर्ति करते हैं क्योंकि उनकी कोई जवाब देही तय नहीं होती है। निजी स्कूल भी मनमानी फीस वसूलते है पर निजी स्कूलों के विद्यार्थियों को भी कोचिंग सेंटर का सहारा लेना ही पड़ता है। सरकार राशन मुफ्त देने की बजाय शिक्षा को निशुल्क कर दे। अन्य देशों की तरह भारत में भी शिक्षा प्राथमिक स्तर से ही गुणवत्तापूर्ण दी जाए वह विद्यालयों में ऐसी व्यवस्था हो की प्रतियोगी परीक्षाओं की भी तैयारी करवा दी जाए तो गरीब वर्ग भी आगे बढ़ सकता है। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)