मोदी जी के कहे बिना... : रमेश जोशी

लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com सम्पर्क : 94601 55700 

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प्रथम स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 और प्रथम गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 सबसे पहले हमने अपने प्रधानाध्यापक श्री अमीर बहादुर सक्सेना से नेतृत्व में मनाए। इसके बाद से आज तक हम बिना नागा तिरंगे को नमन करते रहे हैं  कुछेक अवसरों को छोड़कर जब हम देश से बाहर थे। इसमें 15 अगस्त 2023 को भी जोड़ा जा सकता है जब आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मोदी जी ने ‘हर घर तिरंगा’ का नारा दिया ।कारण कुछ नहीं बस, हमें लगा कि कोरोना में थाली बजाने और दीये जलाने की तरह मोदी जी हमारी अक्ल और देशभक्ति की परीक्षा ले रहे हैं।  

31 जुलाई 2002 को केन्द्रीय विद्यालय जयपुर से रिटायर होने के बाद सामान के साथ खादी भंडार से एक तिरंगा भी ले आए थे। तब से घर पर ही तिरंगा फहरा लेते हैं। पिछली बार सँभाला तो पाया कि किसारियों ने उसमें कई जगह छेद कर दिए हैं। सो इस बार नया ले आए।  

आज सुबह सुबह उसे बाँस की एक खपच्ची में फिट करके छत की टंकी के पाइप से बाँध दिया। तभी अखबार भी आ गया। सीकर में रात का पारा .4 डिग्री पढ़कर ठंड लगने लगी। वैसे ही जैसे मोदी जी बताते हैं तो पता चलता है कि विकास जैसा कुछ हो गया है।  

आती जाती ठंड और नेता दोनों खतरनाक होते हैं जैसे अमेरिका में भारत मूल के लोग ट्रम्प के आने से अनुभव कर रहे हैं । सो सुरक्षा की दृष्टि से हम झण्डा टाँगने के बाद रजाई में आ घुसे। और आँख लग गई।  

सुना, दरवाजे पर कोई दस्तक दे रहा है जैसे आजकल ग्रेटनेस भारत और अमेरिका का दरवाजा पीटे जा रही है।  

तोताराम ही था। कह रहा था- ऐ देशद्रोही मास्टर, हर महिने बिना कुछ किए 30-40 हजार रुपए महिने की पेंशन पेल रहा है और राष्ट्रप्रेम के नाम पर खर्राटे। कम से कम साल में दो बार तो झंडे को सलामी दे दिया।चल आ, मंडी या आई आई टी जहाँ भी ध्वजारोहण हो रहा होगा, जन गण मन गा लेंगे।  

हमने कहा- कहीं जाने  की जरूरत नहीं है। ध्वजारोहण हो चुका। ऊपर देख, पानी की टंकी के पाइप से बँधा तिरंगा फहरा रहा है। 

बोला- मास्टर, तेरा भी जवाब नहीं। तेरी डेढ़ चावल की खिचड़ी हमेशा अलग पकती है, भले ही दाल गले या नहीं।  

हमने कहा- तोताराम, हम दाल गलाने या रोटी के नीचे आँच लगाने के लिए न तो तिरंगा फहराते हैं और न ही किसी के मन की बात सुनते हुए फ़ोटो खिंचवाकर ऊपर भेजते हैं ।  2023 में तो हमने जानबूझकर तिरंगा नहीं फहराया क्योंकि उस वक्त नकली देश भक्त तिरंगे के बहाने हम पर रोब गाँठ रहे थे और हमारी देशभक्ति नहीं, संघभक्ति चेक कर रहे थे । हमारा तिरंगा-प्रेम किसी नेता को दिखाने के लिए नहीं है। और फिर किस नेता को दिखाएं । उन्हें जिन्होंने 55 साल तक अपने तथाकथित सांस्कृतिक संगठन के मुख्यालय पर तिरंगा नहीं फहराया।  

बोला- गुस्सा छोड़। यह तो प्रेम, समानता, न्याय और भाईचारे का दिन है। सच्चे अर्थों में सबके साथ और सबके विकास का पर्व। सबके लिए शुभकामना कर। उनके लिए भी सद्बुद्धि की कामना कर जो धर्म के नाम पर संविधान की जड़ें खोद रहे हैं । सबको यहीं रहना है । हम सबके सुख-दुख यहीं से जुड़े हैं। और फिर अब तो संसद में अंबेडकर का अपमान करने वाले भी अपने सीकर में ‘संविधान गौरव यात्रा’ निकाल रहे हैं।  

हमने कहा- यह गौरव यात्रा नहीं, डेमेज कंट्रोल यात्रा है। वैसे ही जैसे जब मध्यप्रदेश में भाजपा के एक वीर क्षत्रिय ने एक आदिवासी के सिर पर पेशाब कर दिया था तो शिवराज सिंह ने किसी और ही आदिवासी को पकड़कर मँगवा लिया और उसके पैर धोते हुए फ़ोटो खिंचवाकर कर वाइरल करवा दिया था। या वैसा ही हरिजनोद्धार है जो मोदी जी ने पिछले साल कुम्भ के चार सफाई कर्मचारियों के पर धोते हुए फ़ोटो खिंचवाकर किया था।  

बोला- ठीक है। तो फिर न सही महाकुंभ का 5 हजार करोड़ का बजट जहाँ धर्म के भोंडे प्रदर्शन की आड़ में राजनीति हो रही है। अपने तो गत शताब्दी के स्वतंत्रता आंदोलन के जनमंथन से निकले गणतंत्र के इस अमृत की सुरक्षा की शुभकामना के साथ यहीं बरामदे में चाय और गाजर के हलवे के साथ सेलेबरेट कर लेते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)