मानसिक दबाव

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नए साल के अंतर्गत महज 22 दिनों में कोटा में 6 कोचिंग स्टूडेंट आत्महत्या कर चुके है। यदा कदा अखबारों में कोचिंग विद्यार्थी की आत्महत्या की खबरें आती ही रहती है। प्रत्येक अभिभावक यह चाहते हैं कि उनका बच्चा बड़ा आदमी बने और बचपन से ही उस पर दबाव डालना शुरू कर देते हैं कि कक्षा में प्रथम आना है। बाद में बड़े होने पर उसको किस क्षेत्र में जाना है यह भी माता-पिता ही तय करते हैं। कभी यह प्रयास नहीं किया जाता की बच्चों की रुचि किसी और है। उसके अवचेतन मन पर हमेशा एक दबाव बना रहता है जैसे तैसे करके 12वीं कक्षा पास करने के बाद प्रवेश परीक्षा में भाग लेता है उसका चयन हो जाता है और तब तक पढ़ाई को लेकर इतना तनाव हो जाता है कि बच्चे आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते हैं। 

इसका दूसरा पहलू यह है कि उच्च शिक्षा ग्रहण करने परअभिभावक अपनी महत्वाकांक्षा उन पर थोप कर विदेश में जाकर नौकरी करने के लिए प्रेरित करते हैं उस वक्त उन्हें समाज में दिखावा करने का मौका मिलता है और वह बड़े गर्व से सबको यह कहते हैं हमारा बेटा विदेश में है। कहीं पर भी नौकरी करने के लिए कंपनियां अपने काम के लिए टारगेट देती है और निर्धारित टारगेट को पूरा करना बहुत जरूरी है। जब माता पिता या घर में कोई भी ज्यादा बीमार हो जाता है तो फिर वह बेटे से आने के लिए कहते हैं लेकिन कंपनियों के टारगेट की वजह से उसे छुट्टी नहीं मिलती है। फिर अभिभावक कहते हैं हमने बेटे को इतना पढ़ाया लिखाया और उसे हमारे से मिलने की फुर्सत नहीं है और फिर शिकायत का सिलसिला चालू हो जाता है। बच्चों पर दबाव न डालें उनकी रुचि के अनुसार ही उसे आगे बढ़ने दे। 

लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)