दमदार रही "विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव" विषय पर परिचर्चा


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जयपुर। सामाजिक अपवर्जन एवं समावेशी नीति अध्ययन केंद्र (सी.एस.एस.ई.आई.पी), राजस्थान विश्वविद्यालय एवं विद्या भारती के संयुक्त तत्वावधान में "विकसित भारत के लिए मातृभाषा गौरव" विषय पर एक महत्वपूर्ण परिचर्चा का आयोजन राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में आयोजित किया गया।

सी.एस.एस.ई.आई.पी के निदेशक एवं आयोजन सचिव रोहित कुमार जैन ने बताया कि परिचर्चा की प्रस्तावना माध्यमिक शिक्षा बोर्ड,राजस्थान के पूर्व अध्य्यक्ष प्रो.भरतराम कुम्हार द्वारा रखी गई तत्पश्चात कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष प्रो. वासुदेव देवनानी का सानिध्य प्राप्त हुआ। जिन्होंने अपने उध्बोधन में मातृभाषा की संविधानिक स्थिति का जिक्र करते हुए , भाषा के मूल्य बोध को बताया। विकसित भारत की यात्रा केवल आर्थिक विकास तक सीमित नहीं हो सकती। इसे वास्तविक रूप में सफल बनाने के लिए हमें सामाजिक समावेश और मातृभाषा गौरव को अपने राष्ट्र निर्माण के मूल आधार के रूप में स्वीकार करना होगा। एक सशक्त राष्ट्र वही बन सकता है, जहां पर मातृभाषा के प्रति उचित सम्मान हो।

कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.अल्पना कटेजा कुलपति,राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा की गई। उन्होंने अपने उध्बोधन में बताया की कोई भी देश तब तक विकास नहीं कर सकता जब तक की उसकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खुद की भाषा न हो। भाषा किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता की संवाहक होती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भी भारत के शैक्षणिक परिदृश्य में भारतीय भाषाओं को पहचानने, स्वीकार करने और उनका प्रसार करने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध दिखाई देती है।

मुख्य वक्ता शिवप्रसाद, संगठन मंत्री विद्या भारती ने अपने उध्बोधन में बताया कि  मातृभाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, संस्कृति और चेतना की आधारशिला है। बालक की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा वैज्ञानिक और शास्त्र-सम्मत होती है, जो बालक के समग्र विकास के लिए सबसे उपयुक्त है। इसके बावजूद, आज समाज में मातृभाषा के बजाय विदेशी भाषाओं में संवाद करना विद्वता का प्रतीक समझा जाने लगा है, जो एक भ्रम और मानसिक पराधीनता को बढ़ावा देता है।

विशिष्ट अतिथि जयपुर जिला कलेक्टर डॉ जितेंद्र कुमार सोनी ने अपने उध्बोधन में राजस्थानी भाषा के महत्व पर प्रकाश डाला और बताया की केवल एक भाषा नही मरती अपितु एक पूरी संस्कृति मर जाती है। साथ ही बताया कि आज हम शब्दो को खोते जा रहे है, भाषाओं को सहजना और उनका संरक्षण आवश्यक है।

सी.एस.एस.ई.आई.पी के निदेशक एवं आयोजन सचिव रोहित कुमार जैन ने बताया कि परिचर्चा में मातृभाषा गौरव पुस्तिका का भी माननीय अतिथीयो द्वारा विमोचन किया गया।कार्यक्रम में  बड़ी संख्या में भाषा विशेषज्ञ , शिक्षक , शोधार्थी व अभिभावक शामिल हुए।