लेखक : रमेश जोशी
व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com सम्पर्क : 94601 55700
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आज सोमवार है । रात ठंड कुछ अधिक अनुभव हुई । आज अखबार भी अन्य दिनों की बजाय जल्दी आ गया। नींद खुली हुई थी सो उठा लाए। जैसे ही शेखावाटी भास्कर परिशिष्ट पर नज़र पड़ी तो ठंड और अधिक लगने लगी। बाईं तरफ छापा था आज रात का तापमान 2 डिग्री।
जैसे किसी त्योहार या रैली-जुलूस की सूचना मिलने पर डरपोक और शांतिप्रिय लोग घर पर रहना ही उचित समझते हैं वैसे ही हमने रजाई पर कंबल डालकर फिर एक झपकी लेना ही उचित समझा।
पता नहीं, कब तोताराम ने अपनी दहाड़ से हमें जगाया- अरे विकास विरोधी मास्टर, राजस्थानद्रोही ब्राह्मण, उठ। यहीं गहलोत मोटर्स के पास से बस पकड़ लेंगे।
हमने कहा- ऐसी ठंड में हमें कहीं नहीं जाना।
बोला- जाएगा कैसे नहीं ? वहाँ जयपुर में मोदी जी भजनलाल और अनेक देशी-विदेशी निवेशकों के साथ इंतजार कर रहे हैं। देख, पहले पेज पर ही विज्ञापन छपा है-
राइजिंग राजस्थान : रिप्लीट, रेस्पोंसिबल, रेडी
हमने कहा- यह स्टाइल तो तोताराम मोदी जी का ही है। अनुप्रास की यह छटा तो ‘कालिंदी कूल कदंब की डारन’ वाले रसखान और ‘तरणि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ वाले जगन्नाथदास से कहीं भी कम नहीं है। मोदी जी और कुछ करें न करें लेकिन अनुप्रास से दिल खुश कर देते हैं भले ही मोदी जी के अलावा किसी को ‘रिप्लीट’ का मतलब समझ में न आए। वैसे इसं ‘र’ के अनुप्रास वाले विज्ञापन के साथ तो राजनाथ और रजूजू फिट बैठते।
बोला- मास्टर, तू भी मोदी जी से कम नहीं है। अच्छी भली दीवाली को होली में घुसेड़कर गरिमा का गोबर कर देता है। इस देश में जहाँ रेल को ढंग से हरी झंडी दिखाने वाला रेलमंत्री तो मिलता नहीं तो इतनी बड़ी औद्योगिक जिम्मेदारी के लिए कोई धनग का उद्योगमंत्री खां से मिलेगा। अगर तुझे अनुप्रास से ही शांति मिलती हो तो इसका नाम मोदी जी से अनुप्रास मिलाने के लिए ‘राइजिंग राजस्थान’ की जगह ‘मतवाली, मोहक मरुधरा में मनीता मोदी जी की मोकली मिजमानी’ कर देते हैं।
हमने कहा- तोताराम, इस मामले में तू भी मोदी जी कम नहीं है। वैसे एक बार जब 2000 में गहलोत जी ने राजस्थान कान्क्लैव का आयोजन किया था तब हम अमरीका में थे। हमने भी भाग लेने के लिए ईमेल से रजिस्ट्रेशन करवाया था लेकिन कोई उत्तर ही नहीं मिला। तब से हमारा मन खट्टा हो गया। फिर भी इस फ़ॉरेन इनवेस्टमेंट सम्मिट में हमारा क्या काम ? राम राम करके पेंशन में महिना निकल जाए यही क्या कम है?
बोला- एक बार प्रपोजल तो बना फिर लोन का क्या है बैंकों से ले लेंगे।
हमने कहा- हम कोई नीरव मोदी थोड़े हैं जो सरलता से 20 हजार करोड़ का लोन मिल जाएगा और फिर इंग्लैंड भाग जाएँगे।
बोला- तो इससे क्या फरक पड़ता है। हम अपने प्रोडक्ट का नाम ‘मोदी झाड़ू’ रख लेंगे। सस्ता प्रोडक्ट, कम निवेश और मोदी जी का मनपसंद प्रोजेक्ट।
हमने कहा- मोदी जी का दुनिया में डंका बज रहा है। वे दुनिया की आशा है, निर्विवाद नेता हैं। क्या ऐसे में ‘मोदी झाड़ू’ नाम से उनका अपमान नहीं होगा? तुझे पता है ना कैसे ‘’मोदी’ नाम के चक्कर में राहुल गाँधी को दो साल की सजा हो गई थी।
बोला- लगता है तभी मोदी जी ने ‘स्वच्छ भारत’ अभियान में दाढ़ी की जगह गाँधी का चश्मा चिपकाया था। कुछ और नाम सोच।
हमने कहा- तो फिर ‘प्रधानमंत्री झाड़ू’ कैसा रहेगा?
बोला- लेकिन तेरी सोच झाड़ू से आगे नहीं जा सकती। यह नाम तो सीधे-सीधे इतने बड़े पद का अपमान है।
हमने कहा- अपमान तो अपमान है। क्या ‘डॉक्टर्स ब्रांडी’ या ‘डॉक्टर ब्रांड टॉइलेट क्लीनर’ से डॉक्टरों का अपमान नहीं होता?
बोला- डाक्टरों का क्या अपमान। गुजरात में 70 हजार रुपए में बिना एक दिन कॉलेज में गए ही लोग डॉक्टर बनाए जा रहे हैं। मान-अपमान कर्मों से होता है। एक रावण ने साधु का वेश बनाकर सीता का हरण करके दुनिया के सभी साधुओं की छवि का सत्यानाश कर दिया। जैसे कि कल इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने बहुसंख्यकों के अनुसार न्याय की बात कहकर संविधान पर थूक दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)