केरल में लोकसभा चुनाव के बाद की राजनीति

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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पिछले  लोकसभा चुनावों में दक्षिण के राज्य में  कांग्रेस पार्टी को उसके सहयोगी दलों को 20 से 19 सीटों पर जीती मिली थी। इस नतीजों को राजनीतिक   पर नज़र रखने वाले विशेषज्ञों को चौंका दिया था। कारण यह था कि उस समय राज्य में मार्क्सवादी नीत वाममोर्चे की सरकार थी। इस बार  लोकसभा चुनावों में भी वहां वाममोर्च की सरकार है। कांग्रेस के नेताओं  को विश्वास है इस बार भी इस राज्य लोकसभा के चुनावों में अपना इतिहास दोहराएगी। लेकिन मतदान के बात जो रुझान सामने आई है उससे कांग्रेस पार्टी के नेताओं का दावा सही होता नज़र नहीं आता। पिछले चुनावों में करारी हार के बाद वाम मोर्चे के घटकों ने बड़ी सीख ली और इन सभी घटकों ने अपने-अपने दलों के संगठन को मज़बूत बनाने के ओर ध्यान दिया। सरकार के कामकाज में भी सुधार किया गया। इसका फल यह हुआ कि दो साल बाद राज्य में हुए विधान सभा चुनावों में वाममोर्चा लगातार दूसरी बार सत्ता में आने में कामयाब रहा। जबकि कांग्रेस को पूर्व विश्वास था कि लोकसभा चुनावों की भांति पार्टी राज्य के विधान सभा चुनावों में अपना परचम लहराएगी। 

पिछली बार की तरह कांग्रेस इस बार भी कांग्रेस के भूतपूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने पुराने क्षेत्र वायनाड, जो कि एक मुस्लिम बहुल इलाका है, से मैदान में उतरे थे। कांग्रेस अपने लोकसभा के सभी सदस्यों को मैदान में उतारा है। हाँ कुछ सदस्यों के चुनाव क्षेत्र को बदला जरूर गया है। राहुल गाँधी  पिछली बार 4.31 लाख मतों से जीते थे। आम तौर यही माना जाता है कि इस बार भी वे जीतेंगे तो जरूर लेकिन जीत का अंतर पहले से कम हो जायेगा। पार्टी  के  महासचिव वेणुगोपाल इस बार भी अल्पुज़ा लोकसभा क्षेत्र से मैदान में है। यहाँ बीजेपी ने पार्टी उपाध्यक्ष शोभा सुरेन्द्रन को मैदान में उतारा है। इसके चलते  यहाँ मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। इस अनुमान लगाया जा रहा है कि यहाँ मुकाबला कडा था, जो वेणुगोपाल, पार्टी अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे के बाद पार्टी के दूसरे बड़े नेता है, की जीत के मतों को प्रभावित कर सकता है। 

राज्य पार्टी के पूर्व अध्यक्ष मुरलीधरन इस बार त्रिशुर से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वे  वाडकर से जीते थे। उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए ही उनका चुनाव क्षेत्र बदला गया है। उनका मुकाबला यहाँ बीजेपी के उम्मीदवार सुरेश गोपी से हैं।  गोपी अभिनेता से राजनीतिज्ञ बने है। उन्होंने पिछला चुनाव भी यही से लड़ा था। हालाँकि वे चुनाव हार गए लेकिन उन्हें कुल मतों के लगभग एक तिहाई मत मिले, जो बीजेपी के लिए एक उपलब्धि थे। इस बार बीजेपी को यह सीट जीतने की पूरी आशा है। इसका एक बड़ा कारण कांग्रेस के एक बड़े नेता का पार्टी छोड़ कर बीजेपी में आना है। मुरलीधरन, राज्य में कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता और मुख्यमंत्री रहे करुणाकरण के बेटे है। उनकी बहन पद्मजा वेणुगोपाल भी कांग्रेस पार्टी की एक बड़ी नेता है। लेकिन चुनावों से कुछ पहले उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल होने का निर्णय किया। 

हालाँकि उन्होंने कोई बड़ा चुनाव  नहीं न लड़ा लेकिन इस इलाके में काफी प्रभाव बताया जाता है। पार्टी के अन्य बड़े नेता शशि थरूर चौथी बार राज्य की राजधानी तिरुवनत्पुरम से चुनाव मैदान में थे। यहाँ उनका मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर के साथ है। मुकाबला काफी कड़ा है तथा यह माना जाता है   जीत का अंतर बहुत कम होगा। थरूर पार्टी की केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य है। उन्होंने पार्टी के संगठन के चुनावों में मलिकार्जुन खरगे को चुनौती थी।   हालाँकि वे चुनाव हारे फिर भी उनको जो मत मिले वे अनुमान से काफी अधिक थे। अगर वे चुनाव जीतते है तो उनका कद पार्टी में बढेगा और अगर हारते है तो उनकी स्थिति कमजोर होगी। 

चुनावों से कुछ समय पहले तक  के सुधाकरण राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष थे। चूँकि वे खुद लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे, इसलिए उन्होंने अस्थायी रूप पद का कार्यभार एम  एम हसन को दे दिया था। चुनाव के बाद उन्होंने फिर कार्यभार संभाल लिया। अगर पार्टी इस बार अपेक्षा अनुरूप सीटें नहीं मिली तो यह निश्चित सा है वे या तो खुद पद छोड़ देंगे या फिर उनका इस्तीफ़ा देने के लिए कहा जायेगा। केवल इतना ही नहीं कि ऐसी स्थिति में संगठन के सभी स्तरों पर बदलवा किया जा सकता हैं ताकि आने वाले विधान सभा चुनावो, जो अभी दो साल दूर है, में पार्टी को मजबूती से मैदान में उतारा जा सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)