सियासी खींचतान के चक्र में फंसी प्यासी दिल्ली : ज्ञानेन्द्र रावत

हिमाचल, हरियाणा और दिल्ली के बीच उलझा दिल्ली का जल संकट 

लेखक : ज्ञानेन्द्र रावत 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पर्यावरणविद् हैं।

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दिल्ली का जल संकट भयावह रूप लेता जा रहा है। ऐसा लगता है कि यह दिल्ली, हिमाचल और हरियाणा के बीच उलझ कर रह गया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की अवकाश कालीन पीठ ने भीषण गर्मी से जूझती राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पानी की विकराल होती स्थिति के लिए दिल्ली और हिमाचल सरकार के कथित रवैये पर जमकर लताड़ लगाई।  पीठ ने कहा कि हिमाचल  सरकार का यह दावा कि पानी पहले ही बैराज में बह चुका है,  कहां तक न्याय संगत है। शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार के टैंकर माफिया पर अंकुश लगाने में नाकाम रहने पर कड़ी आपत्ति जतायी और कहा कि उसकी वजह से ही यह विकराल स्थिति पैदा हुयी है। क्यों न इस मामले पर दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने को कहा जाये। पीठ ने हिमाचल सरकार के अधिवक्ता से कहा कि आप पहले से ही पानी छोड़ रहे हैं तो गलत बयानी क्यों की जा रही है। हम देख रहे हैं कि लोग पानी की समस्या से पीड़ित हैं और पानी की चोरी व उसकी बर्बादी पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। 

असलियत में इसमें दो राय नहीं  है कि भीषण गर्मी में दिल्ली पीने के पानी के संकट से जूझ रही है। वैसे तो मौसम की मार झेल रहे दिल्ली वासियों को हर साल भीषण गर्मी के दौरान पानी की भारी किल्लत से जूझना पड़ता है। रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून, पानी गये न ऊबरै मोती, मानुष चून। रहीम की कही यह पंक्ति आज दिल्ली वासियों पर बिल्कुल ठीक बैठ रही है। हकीकत में दिल्ली वाले बीते दिनों से पानी की भारी किल्लत का सामना कर रहे हैं। विडम्बना यह है कि दिल्ली सरकार और दिल्ली के उप राज्यपाल के बीच जारी रस्साकशी का खामियाजा दिल्ली वालों को भुगतना पड़ रहा है। हालत यह है कि दिल्ली की जल मंत्री आतिशी दिल्ली के जल संकट के लिए कभी दिल्ली के उप राज्यपाल को और कभी हरियाणा सरकार को दोषी ठहरा रही हैं, वहीं उपराज्यपाल जल संकट के लिए पानी की चोरी और बर्बादी को मुख्य कारण बता रहे हैं। इस बाबत हिमाचल के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि हिमाचल दिल्ली सरकार के साथ किए गये समझौते के तहत दिल्ली को पानी देने के लिए प्रतिबद्ध है। 

हम समझौते का पालन करते हुए किसी भी तरह की कटौती के बिना दिल्ली को पूरा पानी दे रहे हैं। जबकि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार द्वारा दिये गये शपथ पत्र के आंकड़ों से दिल्ली की जल मंत्री आतिशी के कथन की सत्यता प्रमाणित होती है कि दिल्ली को उसके हिस्से का पानी नहीं मिल रहा है। वहीं दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना यह दावा कर रहे हैं हरियाणा दिल्ली को पूरा पानी दे रहा है। उनका यह भी दावा है कि दिल्ली सरकार मुनक नहर की मरम्मत नहीं करा रही है और वह टैंकरों के जरिये पानी की चोरी करवा रही है। अब सवाल यह उठता है कि जब हरियाणा द्वारा दिल्ली को पूरा पानी दिया जा रहा है तो दिल्ली पानी की किल्लत क्यों झेल रही है। दिल्ली वाले पानी के लिए क्यों तरस रहे हैं, मारामारी करने पर क्यों उतारू हैं। असलियत में यह मसला दो दलों भाजपा और आप के राजनैतिक अस्तित्व की लड़ाई में उलझा हुआ है जिसमें दिल्ली की जनता पिसने को मजबूर है। 

यह सिलसिला दिल्ली में आप की सरकार के अस्तित्व में आने के साथ से ही लगातार जारी है। बीते बरस इसके जीते-जागते सबूत हैं। इसी के चलते दिल्ली के विकास कार्य भी लटके पड़े हैं। हां इतना जरूर है कि इस सबके लिए वह चाहे निगम का मसला हो, मोहल्ला क्लीनिक का मसला हो, स्कूलों का हो या फिर जनहित के कार्यों या फिर बजट या अधिकारों का हो, केन्द्र की भाजपा सरकार, दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली की आप सरकार एक दूसरे पर बीते दशक से ठीकरा फोड़ती रही है। यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि दिल्ली सरकार और राज निवास किसी भी मसले पर बीते इन बरसों में एकमत नहीं रहे हैं और आप राजनिवास पर भाजपा के इशारे पर काम करने और दिल्ली सरकार के काम में जबरन अड़ंगा डालने का आरोप लगाती रही है। आप का कहना है कि उपराज्यपाल को दिल्ली वालों के प्रति जबावदेह होना चाहिये न कि भाजपा के लिए।असली समस्या देश की राजधानी दिल्ली में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की विरोधी पार्टी आप की सरकार का होना है।

मौजूदा समस्या दिल्ली में जल संकट की है। हकीकत यह है कि दिल्ली को हरियाणा से कुल1,050 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए। एक मई से 22 मई तक हरियाणा मुनक नहर के कैरियर लाइन नहर यानी सीएलसी में 719 कयूसेक और दिल्ली सब ब्रांच यानी डीएसबी नहर में 350 क्यूसेक पानी छोड़ा गया था। मतदान के दो से तीन दिन पहले इसे 91क्यूसेक तक कम कर दिया गया। बीते चार दिनों से केवल 985 क्यूसेक पानी छोड़ा गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हिमाचल अतिरिक्त पानी भी छोड़ने को तैयार है लेकिन इसके लिए हरियाणा सरकार तैयार नहीं है और वह इसका पुरजोर विरोध कर रही है। जहां तक मुनक नहर की मरम्मत और रखरखाव का सवाल है, इसका ठीकरा दिल्ली सरकार पर फोड़ना नितांत गलत है जबकि नहर की मरम्मत और उसके रखरखाव का जिम्मा हरियाणा सरकार के सिंचाई विभाग का है। हकीकत में मुनक नहर से पानी बवाना लाया जाता है। 

बवाना से पहले यदि पानी की चोरी होती है तो इसके लिए हरियाणा सरकार जिम्मेदार है, दिल्ली सरकार पर आरोप लगाना पूरी तरह गलत है। लेकिन दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा बार-बार दिल्ली सरकार के मंत्रियों के दावे को झूठ का पुलिंदा करार देते हुए कहते हैं कि दिल्ली सरकार के संरक्षण में‌ पानी की चोरी अब भी जारी है जिसकी वजह से दिल्ली की जनता पानी का संकट झेल रही है। सचदेवा की मानें तो मुनक नहर से काकोरी आते-आते 20 फीसदी पानी की चोरी हो रही है। इसके तो उन्होंने सबूत भी दिए हैं। 

इस बाबत जब उप राज्यपाल से दिल्ली की जल मंत्री और शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज ने भेंट की, उस दौरान अपर यमुना रिवर बोर्ड के अधिकारियों ने खुलासा किया कि हरियाणा से तय सीमा से ज्यादा पानी छोड़ा जा रहा है लेकिन बवाना आते आते वह 20 फीसदी तक कम हो रहा है। वह पानी टैंकरों से चोरी कर लिया जाता है। सचदेवा के बयान पर दिल्ली की मंत्री आतिशी कहती हैं कि यदि पानी की चोरी टैंकरों के जरिये हो रही है तो पुलिस तो उनकी है। वह क्यों नहीं कार्रवाई करते और क्यों नहीं टैंकर माफिया को गिरफतार करवाते हैं। इस सबके बाद भी राजनिवास द्वारा दिल्ली की जल मंत्री आतिशी पर जनता को गुमराह करने का आरोप लगाया जा रहा है और दिल्ली भाजपा अध्यक्ष सचदेवा दिल्ली सरकार पर पैसा कमाने के लिए पानी की चोरी करवाने का आरोप लगा रहे हैं।

यह तो रही दूसरे राज्यों से पानी आने न आने की बात। कम पानी आने से बजीराबाद जलाशय का स्तर सामान्य से पांच फीट नीचे आ जाना खतरे का संकेत है। अब जरा दिल्ली में जगह-जगह लोगों के लिए लगाये गये वाटर एटीएम की बात करें जिसके बारे में भीषण गर्मी में लोगों की प्यास बुझाने के बाबत बढ़ चढ़ कर दावे किए जा रहे थे। उनकी हकीकत यह है कि वे खराब पड़े हैं। कहीं तो वे ठीक से काम ही नहीं कर रहे हैं। कहीं उनकी हालत इतनी खस्ता है कि लगता है वे अब गिर पड़ेंगे। कहीं उन पर ताले लटके हैं। जहां तक वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की बात है, हाल फिलहाल नौ वाटर ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता से ज्यादा काम कर रहे हैं। दिसम्बर तक द्वारका में एक नया प्लांट बनकर तैयार हो जायेगा। असली समस्या तो पानी की मांग और उपलब्धता की है। दिल्ली में पानी की मांग 1296 एमजीडी से 1300 एमजीडी तक है लेकिन सप्लाई केवल 998.8.से 1000 एमजीडी ही है। स्वाभाविक है 300 एमजीडी पानी की कमी तो बरकरार रहती ही है। जल संकट के मद्देनजर कुल 587 टयूबवैल लगाने की योजना थी। 

पहले चरण में इसमें कुछ लगे भी हैं जिनसे 19 एमजीडी पानी मिल रहा है जबकि दूसरे चरण में 2590 ट्यूबवैल के लिए 1800 करोड़ की राशि की दरकार थी जिसकी अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। फिर दिल्ली सरकार के जल बोर्ड की क्षमता केवल 90 करोड़ गैलन पानी के ट्रीटमेंट की ही है। हकीकत यह है कि दिल्ली सरकार खुद ही पानी के ट्रीटमेंट और स्टोरेज पर पूरी तरह ध्यान नहीं दे पा रही है जैसा कि आरोप लगाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में दिल्ली सरकार दिल्ली वासियों की पानी की ज़रूरत कैसे पूरी कर पायेगी, यह समझ से परे है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पानी की बर्बादी रोकने की बाबत योजना पेश करने का निर्देश दिया है। उस स्थिति में जबकि तकरीब 40-50 साल पुरानी पाइप लाइन लीकेज और जगह-जगह फटने से हजारों गैलन पानी की बर्बादी रोजमर्रा की बात है। ऐसी हालत में आने वाले दिनों में दिल्ली वाले पानी के संकट से कैसे निजात पायेंगे, यह समझ से परे है। दिल्ली सरकार की कोशिशों से तो ऐसा लगता नहीं। हां सुप्रीम कोर्ट का दखल जरूर दिल्ली वासियों को राहत दिला सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)