व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
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आज जैसे ही तोताराम आया, उसके बोलने से पहले ही हमने मोदी जी के प्रायोजित साक्षात्कार की तरह भावी चर्चा की कमान अपने हाथ में लेते हुए पूछा- क्या हवा-तवा है मतदान के अंतिम चरण का प्रचार समाप्त होने के बाद?
तोताराम ने पलट कर पूछा- स्नान-ध्यान हो गया?
हमने कहा- तोताराम, यह संवाद का एक बहुत ही बदमाश तरीका है कि सामने वाले के प्रश्न का उत्तर देने की बजाय उससे नितांत ही भिन्न किसी विषय पर प्रश्न करके चर्चा को किसी गलत पाले में ले जाना। अगर तुझसे कोई अपना उधार दिया पैसा मांगने आए और तू उसे पूछे कि पहले यह बता कि कांग्रेस वाले राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में क्यों नहीं गए? तो वह उत्तर देने कि बजाय तेरे थोबड़े पर एक झाँपड़ रसीद कर देगा।
हम पूछ रहे हैं तेरे अनुसार चुनाव का संभावित परिणाम और तू ई डी की तरह हमारे स्नान-ध्यान जैसे नितांत व्यक्तिगत मामले पर प्रश्न कर रहा है।
बोला- अब छोड़ भी ये व्यर्थ के सांसारिक झंझट और माया मोह। 82 साल का होने वाला है। 22 साल से आडवाणी जी की तरह ‘बरामदा विष्ठा’ में बैठा दिन गिन रहा है और सांसें हैं कि अटकी हैं चुनाव परिणाम में!
फोटो : साभार |
अरे, माया मोह में पड़े प्राणी, अब और कितने दिन बचे हैं जो गाफिल हुआ बैठा है। अब नहीं तो कब करेगा अगले लोक को सुधारने और आत्मा की शांति का उपाय?
हमने कहा- मोदी जी के ‘हर घर में नल, नल में जल, कल कल, छल छल’ के नारे के बावजूद शाम को 5-7 मिनट के लिए पानी आता है और वह भी मोटर चलाने पर टूट टूट कर। किसी तरह देर सुबह 11-12 बजे एक बाल्टी में शरीर चुपड़ लेते हैं और बचे हुए पानी से कपड़े निचोड़ लेते हैं। वैसे ही जैसे जिसे एक वख्त ही खाना मिलता है वह सुबह का खाना इतनी देर से खाता है कि दोनों टाइम का काम एक बार से ही चल जाए। बस, समझ ले हमारा भी वही हाल है । और रही ध्यान की बात सो 47 डिग्री तापमान में सारे दिन सड़क की छाती कूटते वाहन और ट्रेक्टर ट्रॉलियाँ गुजरते हैं कि ध्यान तो दूर, रात को भी ढंग से नींद नहीं आती। लेकिन मोदी जी को इतनी दूर कन्याकुमारी जाने की क्या जरूरत थी। यहीं दिल्ली में ही उनका 12 एकड़ में एकांत, शांत, हरे भरे वातावरण में सभी सुविधाओं से युक्त आवास फैला है, वहीं कर लेते ध्यान और मौन व्रत। दिन में चार बार नहाते, प्यास लगाने पर दिन में दस बार अमरस पीते और ए सी में मजे से सोते। तन, मन और आत्मा सब शांत हो जाते।
बोला- क्या करें, यहाँ ये मीडिया वाले पीछा ही नहीं छोड़ते । हर वक्त पीछे पड़े रहते हैं। मोर को दाना डालो तो लोग कैमरा लिए पीछा करते रहते हैं, किसी के हवाई जहाज में उसके साथ यात्रा करो तो फ़ोटो खींच लेते हैं, माँ से मिलने जाओ तो मीडिया वाले तंग करते हैं, केदारनाथ की गुफा में जाओ तो लोग चैन से ध्यान नहीं लगाने देते । और देखना, अब ये मीडिया वाले कन्याकुमारी में भी पीछा छोड़ने वाले नहीं हैं ।
हमने कहा- लेकिन मोदी जी को किसी को बताना नहीं चाहिए था कि वे ध्यान करने कन्याकुमारी जा रहे हैं । अब जब बता दिया तो देखा नहीं, उनके पहुँचने से पहले ही दसों कैमरे वाले पहुँच गए ध्यान भंग करने । हमारा तो मानना है कि भोजन, भजन और भोग विलास सब एकांत में सबकी निगाहों से दूर शांति से करने चाहियें।
बोला- मोदी जी तो व्यर्थ के प्रचार-प्रसार में कतई विश्वास नहीं करते लेकिन क्या करें, एक तो यह देश ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ जो ठहरा, दूसरे यहाँ ‘टू मच डेमोक्रेसी’ है, तीसरे मोदी जी नितांत पारदर्शिता में विश्वास करने वाले विनम्र और संकोची नेता हैं इसलिए कुछ कह नहीं पाते हैं और ये मीडिया वाले हैं कि पीछे ही पड़े रहते हैं। जबकि उनसे पहले के सभी प्रधानमंत्री बहुत घुन्ने और रहस्यमय व्यक्ति थे। किसी को पता ही नहीं लगने देते थे कि वे आम खाते भी हैं या नहीं और खाते भी हैं तो काटकर या चूसकर खाते हैं लेकिन जब मोदी जी से एक पत्रकार ने यह नितांत व्यक्तिगत और कठिन प्रश्न पूछ ही लिया तो बेचारे भले और भोले व्यक्ति है सो बताया दिया साफ साफ। अन्यथा बता कि आज तक किसी प्रधान मंत्री ने अपने जीवन की ऐसी गुप्त बात किसी को बताई? पता नहीं कि आम खाते भी थे या नहीं। मनमोहन सिंह जी ने तो यह भी नहीं बताया कि वे कैसे नहाते हैं लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत मोदी जी ने जब ड्रोन से जांच करवाई कि तो पता चला कि महोदय रेन कोट पहनकर नहाते हैं।
हमने कहा- इतना सीधापन भी ठीक नहीं। मोदी जी को हर बात में मीडिया को ऐसे ऐसे नितांत व्यक्तिगत प्रश्न पूछने की छूट नहीं देनी चाहिए। आज जो चारों तरफ कैमरे लगाकर उनके ध्यान में विघ्न डाल रहे हैं वे कल को उनके भांति भांति के शंका समाधानों तक का लाइव टेलेकास्ट करने लग जाएंगे तो क्या होगा ? मोदी जी को शायद पता नहीं है कि कई विदेशी नेता तो अपना मोबाइल टॉइलेट साथ लाते हैं और उसे किसी विदेशी धरती पर विसर्जित करने कि बजाय अपने देश वापिस ले जाते हैं।
वैसे तोताराम, तूने मोदी जी के विवेकानंद स्मारक में ध्यान लगाते फ़ोटो पर पता नहीं गौर किया या नहीं लेकिन ऐसा लगता है कि जैसे फ़ोटो खिंचवाने के लिए ही बैठे हैं, एकदम फिटफाट। और तो और अपना वही दो-चार लाख का चश्मा भी लगा रखा है।
बोला- क्या करें, दुनिया में उनके करोड़ों भक्तों की तरह भगवान जगन्नाथ जी भी तो उनके भक्त हैं। पता नहीं, कब दर्शन करने आ जाएँ इसलिए हर समय ढंग से रहना पड़ता ह । फिर 20-20 घंटे जागने की आदत जो ठहरी । ध्यान बड़ी मुश्किल से लगेगा। और चश्मा भी जरूरी है। पता नहीं, कब इधर-उधर से भारत के विकास की कोई योजना या अच्छे दिन गुजरते दिखाई दे जाएँ तो उन्हें राष्ट्रहित में लपक लें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)