कोई माने अथवा ना माने, लेकिन एक सच्चाई तो है... : शैलेश माथुर

शैलेश माथुर की कलम से

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सांभर झील। प्रकृति को कोई ना कोई शक्ति चला रही है, और वह शक्ति है एक परमात्मा की, जो कल भी था, आज भी है, और कल भी रहेगा। यानि परमात्मा अविनाशी है, और अविनाशी वही होता है जो शरीरधारी नहीं होता है। हां यह बात इससे अलग हटकर है कि परमात्मा को भी अवतरित होने के लिए कोई ना कोई शरीर चाहिए, इसीलिए समय-समय पर परमात्मा अलग-अलग रूपों में अवतरित हुए हैं। 

परमात्मा एक आत्मा के अंश के रूप में प्रत्येक मनुष्य के शरीर में है, बस फर्क इतना है किसी का परमात्मा जगा हुआ है तो किसी का सोया हुआ है। इस सोई हुई आत्मा को जागृत करने के लिए हजारों सालों से ध्यान जिसे मेडिटेशन कहा जाता है की परंपरा हमारे हिंदुस्तान में चली आ रही है। 

आज के वर्तमान युग में युवाओं को ज्ञान मार्ग पर जाने की खास जरूरत है, ताकि वह अपनी आत्मा को जागृत कर अपनी सर्वांगीण उन्नति कर सके। इसके लिए भी हमें किसी जीवंत गुरु की आवश्यकता होती है जिसे आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। आध्यात्मिक गुरु भी आपको आपके कर्मों के आधार पर ही कब और कहां मिलेगा यह भी पहले से ही निर्धारण होता है। 

इसलिए ध्यान मार्ग में आकर अपनी आत्मा को जागृत करना चाहिए, वह प्रार्थना करनी चाहिए कि उसे कोई उपयुक्त आध्यात्मिक गुरु मिल सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)