दूषित वायु, प्रदूषित जल, और दूषित करके आकाश

विश्व पर्यावरण दिवस पर

लेखिका : सरिता अग्रवाल, जयपुर
 
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हे मानव ! तुम प्रकृति संपदा,

का,क्यों करते प्रतिपल नाश,

तुम भी उसके अंग, स्वयं ही,

मौत बुलाते अपने पास ।


पशुओं और पक्षियों को भी,

जीने का जग में अधिकार,

वन मैदान बनाकर करते,

प्राणी मात्र का तुम अपकार ।


वृक्षों के हत्यारे तुमको,

नहीं फूल-फल से क्या प्यार,

हरियाली, भंवरों की गुनगुन,

तितली, मधु, औषध की चाह ।


दूषित वायु, प्रदूषित जल, और,

दूषित करके यह आकाश,

जीओगे कैसे जगत में,

मुश्किल जिसमें लेना श्वास ।।