शाहजादे के राजसी ठाठ और मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

सम्पर्क : 94601 55700 

www.daylife.page 

आज तोताराम बहुत कुढ़ा, चिढ़ा आया और सड़ा हुआ मुँह बनाते हुए बोला- देखे, शाहज़ादे के ठाठ । 

हमने पूछा- शाहज़ादा कौन? जय शाह?

बोला- मास्टर, तेरा भी दिमाग पता नहीं कहाँ-कहाँ आलतू-फालतू घूमता रहता है। जय शाह तो बेचारा अपनी पसीने की कमाई से काम चला रहा है। 

उसके कैसे और कहाँ के राजसी ठाठ? उसके पिता का सरनेम ‘शाह’ है इसलिए तू उसे ‘शाहजादा’ कह सकता है । वैसे उसका किसी शाहजहाँ, अहमदशाह, मोहम्मद शाह, शहाबुद्दीन, बुल्ले शाह, शाहआलम, वाज़िद अली शाह आदि से कोई संबंध नहीं है।  ‘शाह’ शब्द से किसी मुसलमान से भी कोई संबंध जोड़ना ठीक नहीं है। वह तो बेचारा सीधा-सादा, सात्विक, वैश्य बालक है । गुजरात में शाह प्रायः वैष्णव विचारधारा को मानने वाले होते हैं। बहुत से शाहों के आराध्य नाथद्वारा के साँवलिया सेठ हैं। कहते हैं ये वही साँवरिया सेठ हैं जिन्होंने गरीब नरसी मेहता की बहिन नानी बाई का भाई बनकर मायरा (भात) भरा था ।और ये नरसी मेहता वही हैं जिनका लिखा ‘वैष्णव जन’ गांधी जी का प्रिय भजन है। वह भजन एक सच्चे वैष्णव व्यक्ति और उसके सभी गुणों की गणना कुछ ऐसे करता है कि फिर कुछ शेष नहीं रहता। एकदम सम्पूर्ण धर्म।

जो दूसरों के दुख को समझता हो, वाणी, वासना और मन को अडिग रखता हो, किसी की निंदा नहीं करता हो, सेवा करके भी जिसके मन में अभिमान नहीं हो, दूसरों के धन पर कुदृष्टि नहीं रखता हो, सबको समान समझता हो ऐसे जन हो वैष्णव होते हैं और इनकी संगति से खुद का ही नहीं अपने पूर्वजों का भी उद्धार हो जाता है। 

हमने कहा- ऐसे लोग आज के जमाने में ऐसे लोग कहाँ मिलते हैं? आजकल तो बड़े बड़े लोग सत्ता और स्वार्थ सिद्धि के लिए तरह तरह के षड्यन्त्र करते हैं, गाली गलौज करते रहते हैं किसी को एक खास परिवार और खानदान के नाम से, तो किसी को एक खास धर्म के नाम से। 

बोला- मैंने तो सैद्धांतिक बात की है। वास्तव में कौन कैसा है यह आजकल कहाँ पता चलता है? लोग अपने कुकर्म सत्ताबल, धनबल, पदबल, बाहुबल की आड़ में छुपा लेते हैं। यहाँ तक कि कानून,मीडिया, पुलिस सबको खरीदकर संत बने फिरते हैं।

हमने पूछा- तो फिर किस ‘शाहज़ादे’ की बात कर रहा है? 

बोला- एक ही तो शाहज़ादा है इस देश में। जिसके परिवार में तीन तीन प्रधानमंत्री हुए, सबका जीवन ऐशो आराम में बीता और अब भी क्या ठाठ हैं!

हमने कहा- हाँ, बड़े ठाठ हैं, एक ने अपना महल और सब संपत्ति पार्टी के लिए दान में दे दिया, एक ने नौ-दस साल जेल में काटे, किसी ने अपने गहने डिफेंस फंड में दे दिए, घर में दो दो शहीद हो गए, पैंतीस साल से उस परिवार में कोई मंत्री, प्रधानमंत्री नहीं बना, और एक यह है, जुनूनी जो सारे देश को जोड़ने के लिए दक्षिण से उत्तर और पूर्व से पश्चिम धूल धप्पड़ में पैदल घूम रहा है। उसे तू शाहज़ादा कह रहा है। उसके कौनसे ठाठ तुझे अखर रहे हैं? 

तोताराम ने अपनी जेब से अपना स्मार्ट फ़ोटो निकालकर हमारी आँखों में घुसेड़ते हुए कहा- देख, ये हैं ठाठ। 

कभी बनवाई है ऐसे सैलून में कटिंग? 

हमने कहा- हाँ, कल ही बनवाकर आए हैं केला गोदाम के पास वाले सैलून में। लेकिन हम उसके चक्कर में नहीं पड़े। सबसे सस्ती वाली 50 रुपए वाली बनवाकर आए। उसने हमें ललचाने की कोशिश की, कहा- बाबा, सिर की मसाज कर दूँ ? हमने साफ कह दिया- जो चाहे कर दे लेकिन रुपए 50 ही देंगे।

कोरोना की आपदा में अवसर खोजकर हमने एक ट्रिमर मँगवा लिया और पिछले चार साल से संडे की संडे दाढ़ी खुरच लेते हैं और दो महीने में वही ट्रिमर सिर पर घुमा देते हैं। मोदी जी की कृपा और ट्रिक से, न सही खातों में 15 लाख, कटिंग और दाढ़ी के हजारों रुपए तो बचा ही लिए। लेकिन क्या करें,  पाँच सात दिन में पोती अपनी ससुराल से आ रही है और बहू ने कहा- अब तो कटिंग सैलून में ही बनवा आइए।   

बचपन की बात और थी। उन दिनों तो बाजार में कटिंग की कोई दुकान होती ही नहीं थी। घरेलू नाई होता था जो जब तब बरामदे में बैठकर  हमारा सिर अपने घुटनों में दबाकर मूँड देता था। हमारा मुंडना भेड़ का मुंडना होता था। जाते होंगे धार्मिक कनेक्शन वाले मुस्टंडे स्वर्ग, हम तो आज 82 साल बाद भी इस ‘बरामदा कुंभीपाक’ में पड़े हैं। आगे चलकर जब नाइयों ने घर आना बंद कर दिया तो किसी पेड़ के नीचे सड़क किनारे सस्ते में कटिंग बनवा आया करते थे। 

बोला- मोदी जी, शाह जी और उनके शाहज़ादे को तूने कभी सैलून में ऐसे ठाठ से कटिंग बनवाते और दाढ़ी सेट करवाते देखा है? मोदी जी तो इतने मितव्ययी हैं कि जवानी में जब लोग ऐश करते हैं उन्होंने देश के संसाधनों और ऊर्जा की बचत करने के लिए अपने कुर्ते की बाहें ही आधी कर दीं। आजतक दाढ़ी नहीं बनवाई और सिर बाल भी बड़े ही रखते हैं। हमें तो लगता है पिछले 70 साल से नाई को एक पैसा भी नहीं दिए हैं। और ये गांधी नेहरू परिवार के शाहज़ादे! 35 साल से घर में कोई मंत्री और प्रधानमंत्री नहीं है फिर भी ये ठाठ ! लगता है जरूर कोई अंबानी-अदानी टेम्पो में भरकर नोट पहुंचा रहा है। हो जाने दे अबकी बार 400 पार फिर सब पर्दाफाश कर देंगे। 

हमने कहा- लेकिन मोदी जी तो सुना है दुनिया के सबसे अधिक ठाठ से रहने वाले शासनाध्यक्ष हैं। घड़ी, चश्मा, पेन, जूते कपड़े सब लाखों-लाखों के । कपड़े तो दिन में चार बार बदलते हैं और कोई ड्रेस दोबारा नहीं पहनते हैं। 

बोला- 35 साल भीख मांगकर खाया, दस-पाँच साल दौड़ दौड़ कर चलती ट्रेन में चढ़ उतरकर चाय बेची, देश की सेवा के लिए घर-गृहस्थी का सुख त्यागा । अब भी जब तब उपवास करते रहते हैं, भगवा वेश में सन्यासी की तरह नदियों, गुफाओं और यहाँ तक कि समुद्र के नीचे तपस्या करते रहते हैं ।दिन में 36 घंटे काम करते हैं। अब एक आदमी से और कितना त्याग चाहते हो। क्या किसी की जान ही लोगे?     

और जहां तक इन ठाठ और शान शौकत की बात है तो यह सब वे अपने लिए नहीं बल्कि देश की इज्जत के लिए है । अब गांधी जी की तरह दुनिया में अधनंगे घूम-घूमकर सोने की चिड़िया और विकसित भारत की बेइज्जती करवाना क्या तुझे अच्छा लगेगा? 

हमने कहा- लेकिन इन सबमें खर्च तो होता है । 

बोला-  सब जीव सब कुछ यहीं छोड़कर जाते हैं तो क्या मोदी जी ये सब अपने साथ ले जाएंगे? देखना, 2025 में मोदी जी 75 के हो रहे हैं और तभी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शताब्दी पूर्ण हो रही है। उस पुण्य अवसर पर मोदी जी नागपुर मुख्यालय में शस्त्र पूजा करके, शाह जी को सेंगोल सौंपकर केदारनाथ की गुफा में चले जाएंगे। सुना है उसकी साज सज्जा का काम बड़ी तेजी से चल रहा है। 

यह भारतीय ही नहीँ, विश्व राजनीति में मोदी जी का मास्टर स्ट्रोक होगा। 

(लेखक का अपना अध्ययन, व्यग्यात्मक नज़रिया एवं विचार हैं)