‘स्वतंत्रता संग्राम के अज्ञात पहलू’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

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संबलपुर। आईआईएम संबलपुर में, हम अपने बुनियादी शैक्षिक ढांचे में कला और संस्कृति को बढ़ावा के लिए प्रतिबद्ध हैं। विश्व स्तर पर प्रसिद्ध संबलपुरी कला को बढ़ावा देने के लिए समर्पित रंगावती केंद्र इस प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है। यह बात आईआईएम संबलपुर के डायरेक्टर प्रोफेसर महादेव जायसवाल ने कही। "Unknown aspects of the Freedom Struggle; Cultural Heritage and Sustainable Management in Western parts of Odisha" विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के दौरान अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आईसीएसएसआर के समर्थन से संचालित किए जा रहे रंगावती केंद्र का उद्देश्य यह पता लगाना है कि कला और संस्कृति किस तरह विश्व स्तर पर स्थायी कारोबारी प्रथाओं को आगे बढ़ा सकती है।’’

उन्होंने आगे कहा, ‘‘अनेक बिजनेस स्कूलों के विपरीत, जो पूरी तरह से कॉर्पोरेट ब्रांडों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, हम स्थानीय विरासत को ग्लोबल स्तर पर ले जाने का प्रयास करते हैं। प्रबंधन शिक्षा के प्रति हमारा दृष्टिकोण सामाजिक मूल्यों को व्यावसायिक कौशल के साथ जोड़ता है। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन आईआईएम संबलपुर द्वारा भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली के सहयोग से आईआईएम संबलपुर परिसर के रंगावती सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन कल्चर एंड सस्टेनेबल मैनेजमेंट में किया गया। सेमिनार का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम के अज्ञात पहलुओं के साथ-साथ ओडिशा के पश्चिमी हिस्सों में सस्टेनेबल मैनेजमेंट से जुड़ी जीवंत     सांस्कृतिक विरासत और लोक परंपराओं को उजागर करना था।

उद्घाटन सत्र के दौरान मुख्य अतिथि प्रो. बिधु भूषण मिश्रा, कुलपति, संबलपुर विश्वविद्यालय; सम्मानित अतिथि, भुवनेश्वर में ओडिशा रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर प्रोफेसर चंडी प्रसाद नंदा और आईआईएम संबलपुर के डायरेक्टर प्रोफेसर महादेव जायसवाल उपस्थित थे।

उल्लेखनीय है कि आईआईएम संबलपुर को हाल ही में एक शोध कार्यक्रम “A Critical Study of Folk Tradition, Cultural Heritage, Cultural History & Unknown Aspects of Armed and Non-Violent Freedom Struggle in Western Parts of Odisha by ICSSR.” के लिए सत्तर लाख दिए गए हैं।

संबलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर बिधु भूषण मिश्रा ने मुख्य अतिथि के तौर पर अपने उद्बोधन में कहा, देश के स्वतंत्रता संग्राम में ओडिशा के योगदान को अक्सर अनदेखा किया गया है और यह एक ऐसा महत्वपूर्ण पहलू है, जिस पर हमें ध्यान देना चाहिए। आधुनिक इतिहास की किताबें शायद ही कभी आजादी के आंदोलन में हमारे क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करती हैं। लेकिन अब इस कथा को फिर से लिखने का समय है, यह सुनिश्चित करते हुए कि ओडिशा के योगदान को उचित रूप से मान्यता दी जाए। 

विशिष्ट अतिथि, प्रोफेसर चंडी प्रसाद नंदा, डायरेक्टर, ओडिशा रिसर्च सेंटर, भुवनेश्वर ने कहा, देश आज एक ऐसे महत्वपूर्ण दौर में है, जब बौद्धिक गतिविधियों में महत्वपूर्ण बदलाव देखा जा रहा है और मौजूदा आख्यानों को चुनौती देने वाली सामग्री को फिर से लिखने की कोशिश की जा रही है। रंगावती केंद्र का उद्देश्य भूली हुई यादों, ऐतिहासिक ज्ञान, टिकाऊ प्रबंधन प्रथाओं और सांस्कृतिक विरासत के बारे में फिर से जानकारी हासिल करना और उनका जश्न मनाना है। 

उद्घाटन सत्र का समापन प्रोफेसर हेमचंद्र पधान के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ, जबकि परिचयात्मक टिप्पणी प्रोफेसर सुजीत कुमार प्रूसेथ ने प्रस्तुत की।