बरामदे की रखवाली और हिमालय की चोरी
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

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हमारे घर का बरामदा सामान्य और परंपरावादी बरामदा है। आजकल के बरामदों की तरह किसी ग्रिल, शीशे और गेट से सज्जित बरामदा नहीं है।  

बस, गेट के पास और कमरे के दरवाजे से लगता हुआ कोई साढ़े चार-पाँच फुट चौड़ा और नौ-दस फुट लंबा रास्ते की तरफ खुलता हुआ स्थान है जिसमें यदि धूप और बरसात न हो तो हम और तोताराम बैठते हैं, चाय पर चर्चा करते हैं। और कभी-कभी कोई रास्ते जाता भी बिना किसी कुंठा और कानूनी परमीशन के हमारी चर्चा में शामिल हो जाता है। कभी कोई राहगीर भी यहाँ बैठकर सुस्ता लेता है तो कभी कोई शराबी भी बैठ जाता है। फिर खुद ही उठकर चल जाता है। पता लगने पर भी हम उससे उलझते नहीं क्योंकि वह अंधभक्त नहीं होता इसलिए खतरनाक भी नहीं होता।  

‘बरामदा’ शायद अंग्रेजी के शब्द ‘वरांडा’ से बना है लेकिन हमारे अनुसार यह अरबी-फारसी के ‘बरामद’ शब्द से बना है। घर के निर्देशक मण्डल में बैठे आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तरह हमें कभी भी यहाँ बरामद किया जा सकता है क्योंकि हमारे पास हजारों करोड़ का कोई प्लेन या कारों का काफिला नहीं है कि जब चाहे, जहाँ चाहे फुर्र से उड़ जाएँ। हमें तो वोट डालने के लिए भी घर वाले किसी ऑटो में पटककर ले जाते है।  

मोदी जी प्रेस वार्ता तो करते नहीं लेकिन कभी-कभी आम खाने के तरीके जैसी अति अंतरंग बातें राष्ट्रहित में किसी कलाकार के माध्यम से जनता तक पहुंचा देते हैं। ठीक से याद नहीं लेकिन मोदी जी ने कभी किसी को किसी इंटरव्यू में बताया था- भगवान ने मेरे दिमाग में कोई ऐसी बड़ी चिप लगाई है कि मैं छोटा सोच ही नहीं सकता। इसलिए वे पहले के बने काशी, उज्जैन और अयोध्या में छोटे परिक्रमा-पथों की जगह बड़े बड़े कॉरीडोर बनाते हैं। इसीलिए नेहरू को छोटा दिखाने की कुंठा में पटेल की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति लगवाई, भले ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ के बावजूद उसे चीन से बनवाना पड़ा। 

एक बार तोताराम ने हमें सुझाव दिया कि क्यों न हम अपने ‘बरामदा-संसद’ का नाम मोदी जी के ड्रीम प्रोजेक्ट की तर्ज पर ‘बरामदा विष्टा’ रख लें । लेकिन हमने उसे स्वीकार नहीं किया क्योंकि जैसे भारत सरकार में कोई भी निर्णय लेने के सर्वाधिकार मोदी जी के पास हैं वैसे ही बरामदा संसद में वीटो पॉवर हमारे पास है। इस ‘बरामदा विष्टा’ नाम को स्वीकार न करने के पीछे एक कारण यह भी था कि हमें ‘विष्टा’ में ‘विष्ठा’ जैसी गंध अनुभव होती है। 

जब से मोदी जी ने चौकीदार होने के कारण हर स्तर पर देश की सुरक्षा की फिक्र करते हुए हर समय जागते रहने या बमुश्किल मात्र एक दो घंटे सोने का कठिन व्रत लिया है तब से हम निश्चिंत हैं। लेकिन अब चुनाव जीतने के लिए कुछ भी कर गुजरने वाले इस ‘इंडिया’ गठबंधन और मोदी जी के अनुसार ‘घमंडिया’ गठबंधन का हिन्दू संपत्ति लूटकर मुसलमानों को दे देने का एजेंडा लीक हुआ है मोदी जी ने सोना, खाना सब छोड़ दिया है और हमें भी ढंग से नींद नहीं आती है।  हालांकि हमारे पास न लाखों का चश्मा, न लाखों का पेन, न लाखों की घड़ी, न करोड़ों के हवाई जहाज, न कोई पुंगनूर गाय, न ही भैंसें। न साइकल, बेटे बहू के साथ रहते हैं सो न कोई मकान। 

पहले कहा जाता था- 

सुख सोवै कुम्हार की, चोर न मटिया लेय  

अर्थात कुम्हार की पत्नी निश्चिंत सोती है क्योंकि कौन चोर मिट्टी उठाया ले जाएगा। लेकिन अब तो वह बात नहीं रही। अब तो रेत माफिया होते हैं जो हर साल हजारों करोड़ की रेत जहाँ तहाँ से खोदकर ले जाते है और कभी नकदी तो कभी बॉन्ड के रूप में दलालों को भुगतान करते रहते हैं। मान लो अगर किसी भक्त ने बरामदे के नीचे त्रिशूल देख लिया तो आधा बरामदा मंदिर के लिए चला जाएगा। अगर किसी घमंडिया ने आधा बरामद किसी मुसलमान को दे दिया तो हमारा और तोताराम का वर्षाकालीन संसद सत्र साढ़े चार गुना साढ़े चार फुट के बरामदे में कैसे संभव हो पाएगा? इसी चिंता में ढंग से नींद नहीं आती। जब भी पेशाब करने उठते हैं या कुत्ता जोर से भूँकता है तो उठाकर देखते हैं कि राहुल गांधी किसी मुसलमान या ज्यादा बच्चों वाले को कब्जा दिलाने तो नहीं आ गए। 

कोई चार बजे कुत्ता बहुत जोर से भूँका तो हमें लगा अब तो जरूर कोई न कोई घमंडिया आ ही गया दीखे । बरामदे में जाकर देखा तो कोई नहीं । सुना है, नींद कम लेने से आदमी का दिमाग खराब हो जाता है । कई मानसिक बीमारियाँ हो जाती हैं । पता नहीं, अहर्निश जागने वाले,  140 करोड़ के प्रधान सेवक और प्रधान चौकीदार मोदी जी का क्या हाल हो रहा होगा ? लेकिन उनके पास इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है । राष्ट्र का अमृत काल जो चल रहा है । सो मोदी जी को चौबीसों घंटे जाग-जाग कर हिंदुओं की भैंसों की रक्षा का काम कम से कम 2047 तक तो करना ही पड़ेगा। उसके बाद वे शायद झोला उठाकर, फोटोग्राफरों को लेकर केदारनाथ की गुफा में ध्यान करने चले जाएँ लेकिन तब तक को यह कठिन व्रत निभाना ही पड़ेगा। वैसे सन्यास आश्रम की आयु तो 2025 में हो जाएगी।

सोचा, अब क्या सोएंगे। सो बरामदे में खड़े थे कि तोताराम भी आ गया। आश्चर्य! इतनी सुबह! 

बोला- क्या नींद नहीं आ रही? कोई बुरा सपना देखा क्या? 

हमने कहा- तोताराम, तुझे कैसे पता चला? 

बोला- लगता है हम दोनों का हाल एक जैसा ही है। मुझे भी बड़ा अजीब सा सपना आया। हालांकि उसमें दिखाई दे रही समस्या का निदान तो हो गया लेकिन समस्या इतनी विचित्र और खौफनाक है कि अब भी वह सोने नहीं देती और तरह तरह की दुश्चिंताओं से डराती है। वैसे तूने क्या सपना देखा?

हमने कहा- पहले तू बता? 

बोला- नहीं, पहले तू बता। 

हमने कहा- कहीं तू हँसेगा तो नहीं। बड़ा ही विचित्र सपना है। लगभग असंभव ।मजाक न उड़ाने का आश्वासन मिलने के बाद हमने बताया- तोताराम, हमने देखा कि राहुल गांधी आधा हिमालय अपने कंधे पर उठाकर दक्षिण दिशा की तरफ भागे जा रहे हैं। हो सकता है केरल के मुसलमानों को देने जा रहे हों।

सोच अगर राहुल गांधी इस में सफल हो गए तो? फिर तो उत्तर दिशा में कोई रुकावट ही नहीं रहेगी। पूरा उत्तर भारत भयंकर ठंड से जम जाएगा। चीन सीधा दिल्ली पहुँच जाएगा। तब गंगा जमुना में पानी नहीं रहेगा, भोले बाबा को गंगा जल, राम लला को सरयू जल और जमना तट पर मथुरा में कृष्ण को तो पीने को पानी तक नहीं मिलेगा।   

तोताराम ने हमारा कंधा थपथपाया, ढाँढ़स बँधाया और बोला- मास्टर, तूने आधा सपना देखा। आगे का आधा मुझे दिखाई दिया। चूंकि सपना बड़ा  विचित्र था इसलिए मुझे भी नींद नहीं आई तो तेरी तरफ चला आया।

अब तो हमारी उत्सुकता अपने चरम पर। कहा- तोताराम, जल्दी बता। क्या राहुल गांधी हिमालय को केरल ले जाने में सफल हुआ?

बोला- कैसे हो सकता था ? 56 इंच का सीना फिर किस दिन के लिए है? मैंने देखा कि मोदी जी राहुल के पीछे दौड़ रहे हैं और उन्होनें झपटकर राहुल से हिमालय छीन लिया और तीव्र गति से दौड़ते हुए गंगोत्री-यमुनोत्री पहुंचे और हिमालय को यथास्थान स्थापित कर दिया। 

हमने कहा- लेकिन तोताराम, यह कोई छोटी बात नहीं है। यह तो मोदी जी सतर्क और सशक्त थे जो छुड़ा लिया हिमालय। आखिर मोदी जी कब तक हिंदुओं की भैंसों, गायों, बकरियों और यहाँ तक कि हिमालय की रक्षा करते रहेंगे? ठीक है। मोदी जी विष्णु के अवतार हैं, लेकिन अवतार भी तो अनंत काल तक नहीं रहते। राम-कृष्ण को भी तो अपनी लीला को समेटकर गोलोक और साकेत जाना ही पड़ा। 

अब जनता को हमेशा के लिए मोदी के भरोसे नहीं रहना चाहिए।  

आज तो यह हिमालय है कल को कोई संविधान को उठाकर भाग जाएगा। तब क्या करेंगे? 

देश नेताओं नहीं, जनता की निगहबानी से चलता है। 

देखा नहीं, अमरीका में इज़राइल के अत्याचारों के विरुद्ध गाजा के प्रति मानवीय संवेदना की रक्षा कौन कर रहा है ? सरकार नहीं, विद्यार्थी । स्वतंत्र सोच के विद्यार्थी। गलगोटिया विश्वविद्यालयों के नहीं, कोलम्बिया कॉलेज के छात्र। वही कोलम्बिया कॉलेज जिसकी एक 23 वर्षीय छात्रा रशैल कोरी 21 साल पहले फिलस्तीनी अधिकारों का साथ देने के लिए एक फिलस्तीनी घर को बचाने के लिए एक इजराइली बुलडोजर के सामने खड़ी हो गई थी और उसे कुचल दिया गया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)