अब जनता राजा को बेनकाब करेगी : वेदव्यास
लेखक : वेदव्यास

जयपुर (राजस्थान) 

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार हैं

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भूख और प्यास के अथाह समुद्र में डूबा और कुपोषण, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंसा और काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह के दलदल में हाथ पैर मारता आम आदमी  आजकल राम के भरोसे है। कोई राज के खजाने पर निर्भर है, तो कोई भाग्य के सहारे भविष्य के नाम पर प्रार्थना-प्रवचन सुन रहा है। इस तरह विश्व गुरु की तीन पीढ़ियां एक साथ अपनी नाव को लहर-लहर पार करते हुए मझधार में डूब रही है । सब चुप हैं-क्योंकि-फरिश्ता देख रहा है और सब निराश हैं, क्योंकि धर्म दूतों को पूरे आर्यवर्त में कोई संजीवनी पर्वत नहीं मिल रहा है।

यहां सच कहना अपराध है फिर भी विनम्रता और दृढ़ता से कह रहा हूं कि बहुमत की इंद्रसभा में सब कुछ परिवर्तन के नाम पर मनमाना हो रहा है। विगत को गालियां देते-देते संतों की दाढ़ी सफेद हो गई है और मन की बात सुनाते-सुनाते वाणी की अमृत भी विष बन गया है। क्योंकि राजनीति के दंगल में हर पहलवान लूटो-खाओ और मौज मनाओ का मंगल मंत्र पढ़ रहा है। अब जनता से कोई नहीं पूछता कि उसके अच्छे दिन अब कहां दम तोड़ रहे हैं? ऐसे में एक गुजराती कवि पारूल खक्खर कहते हैं कि एक आवाज में मुर्दे बोले, सब कुछ चंगा-चंगा/राजन तेरे वस्त्र दिव्य हैं, और दिव्य है ज्योति/राजन असली रूप ये तेरा देखे सारी बस्ती/ है माई का लाल कोई जो बोले-राजा मेरा नंगा/ लपटें देख के गाल बजाए, वाह रे बिल्ला-रंगा/ राजन, तेरे रामराज्य में शव वाहिनी गंगा।

योग, भोग और रोग की इस प्रयोगशाला का पुण्य प्रताप अब ये है कि सरकार बिना जनता को विश्वासों में लेकर आए दिन संसद में ध्वनि मत से प्रस्ताव पारित करते हुए नोटबंदी कर देती है। आत्मनिर्भर भारत का शंखनाद कर देती है, भूखे-नंगे-अनपढ़ गांवों में डिजिटल इंडिया का जाल फैला देती है। आयात को “मेक इन इंडिया” बनाकर निर्यात कर लेती है, बाजार को काबू करने के लिए एक देश-एक टैक्स (जीएसटी) थोप देती है और पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, खाद-बीज को महंगा करके किसान, मजदूर और नौकरीपेशा मुंगेरीलाल की कमर तोड़ देती हैं।

अब कोई सुनने वाला और जवाब देने वाला नहीं है कि राशन की दुकानों पर गली-मोहल्लों में लाइनें क्यों लगी हैं और मनरेगा में करोड़ों बेरोजगारों की भीड़ क्यों बढ़ रही है और महंगाई तथा बेरोजगारी पर शुतुरमुर्ग की तरह जमीन में क्यों घुस रही है। आश्चर्य तो ये है कि केंद्र तो अपनी छवि चमका रहा है, लेकिन राज्यों का दिवाला निकल रहा है। शिक्षा, चिकित्सा, व्यापार, उद्योग और शासन-प्रशासन सभी चौपट हो गए हैं। कानून और यातना का डंडा बजाकर प्रतिरोध करने वालों को जेलों में ठूंसा जा रहा है तथा अदालतों को देशद्रोह और आतंकवाद का खतरा बताकर गुमराह किया जा रहा है। विद्यार्थियों, सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकार की पैरवी करने वालों और जागरूक नागरिकों की बोलती बंद की जा रही है, तो युवाओं को झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है। अदालतें हैरान हैं, पुलिस ही सरकार की आन-बान और शान है तो शासन के तबेले में सारे घोड़े पहलवान है। किसी ने नहीं सोचा था कि जनता की सरकार ही जनता पर भारी पड़ेगी।

तस्वीर की दूसरी महाभारत ये है कि कभी गौरक्षा के नाम पर, तो कभी लवजेहाद के बहाने, तो कभी तीन तलाक के रास्ते, तो कभी धर्मांतरण की आड़ में, तो कभी आतंकवाद का खेल खेलकर, मुसलमान, ईसाई और दलित, आदिवासी तथा महिलाओं को दमन, उपेक्षा और शोषण की चक्की में पीसा जा रहा है। सरकार मनचाहा कर रही है क्योंकि शासन-प्रशासन के पास बहुमत है और संसद लाचार है तो व्यवस्था बीमार है। सब अपनी-अपनी प्रायश्चित की रामधुनी गा रहे हैं। बस शासन जिस पर मेहरबान है वही समय का सुलतान है।

मेरे प्यारे देशवासियों को इसीलिए आज योग, भोग और रोग की गृह दशा से दिन-रात गुजरना पड़ रहा है, क्योंकि राम मंदिर से लेकर सरकारी राजनीति के चुनावों तक, सब गुप्तदान से फलफूल रहे हैं। सभी तरह तूफान से पहले का सन्नाटा है। लेकिन अकेला शासन-प्रशासन लालकिले से निरंतर बोल रहा है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने निजी विचार हैं)