कर्नाटक में टिकटों के बंटवारे में परिवार वाद हावी

लेखक : लोकपाल सेठी

स्वतंत्र पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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राज्य में लोकसभा की 28 सीटो के लिए उम्मीदवारों के चयन में राज्य के दो प्रमुख राजनीतिक दलों में परिवार वाद हावी रहा जबकि तीसरे बड़े राजनीतिक दल पर एक अन्य पार्टी संगठन पर एक ही परिवार का लगभग पूरा वर्चस्व बना हुआ है। 

पिछले साल मई में बीजेपी को पराजित कर सत्ता में आई कांग्रेस इस बार राज्य की अधिक से अधिक सीटो पर जी जीत का परचम लहराने के लिए जो रोड  मैप तैयार किया था उसके अनुसार सिद्धारामिया मंत्रिमंडल के आधा दर्जन से अधिक मंत्रियों को चुनाव  लड़ना था। लेकिन एक-एक करके सभी मंत्रियों ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया। राज्य कांग्रेस पार्टी के पास इतने अधिक कद्दावर चेहरे नहीं थे जो बीजेपी और जनता दल (स) गठबंधन के उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दे सके। इसके बाद इस स्थिति का विकल्प ढूँढने के लिए यह तय किया कि मंत्रियों के बजाये उनके परिवार जनों को टिकट दे दिया जाये। अपने परिवार जन को जीताने का जिम्मा संबधित मंत्रियों को दे दिया गया। 

मुनियप्पा रेड्डी की बेटी सौम्या रेड्डी को बंगलुरु दक्षिण से पार्टी का उम्मीदवार बना दिया इसी प्रकार प्रियंका जार्कीहोली को  चिक्कोड़ी से मैदान में उतारने का निर्णय किया गया। मृणाल हेब्बालकर को बेलगवी से उम्मीदवार बनाया गया  है। संयुक्ता पाटिल को बगलकोट से टिकट दी गई। बीदर से सागर खंडारे को उम्मीदवार बनाया गया है। सूची यहीं रूकती है। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन के बेटे प्रियांक खरगे, जो राज्य में मंत्री भी है, की पत्नी प्रभा खरगे भी मैदान में उतरा गया। 

मल्लिकार्जुन खरगे इस बार खुद काल्बुर्गी से चुनाव नहीं लड़ रहे है। इस चुनाव क्षेत्र से उन्होंने अपने दामाद राधा कृष्ण  डोडामणि  को उम्मीदवार बनाया है। बंगलूरु ग्रामीण से उप मुख्यमंत्री डी के सुरेश फिर उम्मीदवार है। इनमें से सौम्या रेड्डी और सुरेश को छोड़कर किसी को चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है। इन सब की उमर भी 35 साल से कम है। पार्टी के नेताओं का मानना है कि राज्य की कांग्रेस सरकार ने पिछले लगभग एक साल में इतने काम किये हैं कि इनमें से कोई भी नहीं हारेगा। एक अन्य कारण यह भी है कि अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव की बागडोर इन उम्मीदवारों के पिता अथवा भाई को दी गई हैं जिन्हें चुनाव लड़ने और लड़ने का लम्बा अनुभव है। 

पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को केवल एक ही सीट मिली थी। ये उम्मीदवार डीके सुरेश थे जो केवल अपने बल पर फिर से चुनाव जीते थे। इस बार पार्टी का दावा है कि उसे कम से कम 20 सीटें मिलेंगी। 

अब बात करते हैं जनता दल (स) की जो इस बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। बीजेपी ने इस दल को कुल तीन सीटें दी हैं तथा एक सीट पर इसका उम्मीदवार बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ेगा। इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एचडी देवेगौडा है जो कुछ समय के लिए देश के प्रधान मन्त्री  भी  रहे। इनके बेटे एच डी कुमारस्वामी पार्टी की राज्य यूनिट के अध्यक्ष है। वे दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे है। एक बार वे बीजेपी के साथ रह कर मुख्यमंत्री  बने। दूसरी बार वे कांग्रेस के सहयोग से इस कुर्सी तक पहुंचने में सफल रहे। राज्य में इस पार्टी को बाप-बेटे की पार्टी के नाम से जाना जाता है। देवेगौडा  परिवार के लगभग सभी सदस्य राजनीति में है। उनके बड़े बेटे रेवन्ना भी मंत्री रहे है। रेवन्ना के बेटे प्रज्वल इस समय हासन से लोकसभा सदस्य है। इस बार    पार्टी के उम्मीदवारों कि जो सूची सामने आई है उसके अनुसार प्रज्वल हासन से फिर पार्टी के फिर से उम्म्मीद्वार हैं। कुमारस्वामी खुद मंड्यासे चुनाव लड़ रहे है। देवगौड़ा के दामाद बीजेपी के टिकट पर बंगलूरु ग्रामीण से उम्मीदवार है। 

बीजेपी ने एक को छोड़ किसी बड़े नेता के बेटे को पार्टी उम्मीदवार नहीं बनाया है। लेकिन इस पार्टी पर वस्तुत: बाप बेटे का नियंत्रण है। पार्टी के बड़े नेता येद्दीयुरिप्पा न केवल राज्य पार्टी के अध्यक्ष रहे है बल्कि चार बार राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे हैं। इस समय वे पार्टी के संसदीय बोर्ड के सदस्य है। उनके  बेटे को विजयेन्द्र राज्य पार्टी के अध्यक्ष है जबकि बड़े बेटे राघवेन्द्र शिवमोगा से लोकसभा के सदस्य है। उन्हें इस बार फिर उम्मीदवार बनाया गया हैं इस प्रकार कुल मिलाकर सारी पार्टी उनके हाथ में है। इस बार उम्मीदवारों का चयन इन तीनों ने मिलकर किया है। इसलिए टिकटों  के बंटवारे को लेकर पार्टी में  काफी  बवाल भी हुआ है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)