लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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बीजेपी शुरू से ही उत्तर भारत की पार्टी मानी जाती रही है। कारण यह है कि इसकी शुरुयात उत्तर भारत की हिंदी बेल्ट से हुई और वह पनपी और आगे बढ़ी। कोई तीन दशक पूर्व दक्षिण में कहीं-कहीं कमल दिखने लगा। लगभग ढाई दशक पूर्व पहली बार इस पार्टी की कर्नाटक में सरकार बनी। फिर यह अविभाजित आंध्र प्रदेश में कुछ सीटें जीतने में सफल रही। लेकिन तमिलनाडु और केरल में यह पार्टी अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद अपना कोई वजूद नहीं बना पाई।
2019 में यह एक बार फिर कर्नाटक में सरकार बना पाई। हालाँकि यह सरकार दल बदलुओं के चलते बनी लेकिन इसके बावजूद अपना कार्यकाल पूरा करने में सफल रही। इसका लाभ बीजेपी को 2019 के लोकसभा चुनावों में भरपूर लाभ मिला। पार्टी कुल 28 सीटों में से 26 सीटें जीतने में सफल रही। तेलंगाना में इसको 4 सीटें मिलीं।
दक्षिण के आधे दर्जन राज्यों में लोकसभा की लगभग 150 सीटें है। इसमें से बीजेपी और कांग्रेस के पास 29-29 सीटें है जबकि अन्य सीटें क्षेत्रीय दलों के पास है। मजे के बात यह है कि कांग्रेस की लोकसभा में कुल 53 सीटों में से आधी से अधिक दक्षिण के राज्यों से है। केरल में पार्टी ने कुल 20 सीटों में से 15 सीटें जीती थी जबकि राज्य में वाममोर्चे की सरकार थी और कांग्रेस प्रमुख विपक्षी दल था। तभी से कांग्रेस को दक्षिण का राजनीतिक दल कहा जाने लगा था क्योंकि उत्तर भारत में इसे बहुत ही कम लोकसभा सीटें मिली थी।
ऐसा माना जाता है कि पिछले लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद बीजेपी के नेतृत्व ने यह तय कर लिया था कि अगर इसे पार्टी ने अपना विस्तार करना है तो इसे दक्षिण में अपने पैर ज़माने होंगे।
अगर बीजेपी का पुराना चुनावी इतिहास देखा जाये तो यह बात सामने आती है कि पार्टी अपना चुनावी अभियान उत्तर से शुरू करती आ रही है और अपनी ज्यादा ताकत भी वहीं लगती रही है। इस बार बीजेपी ने जब चार सौ के पार का लक्ष्य तय किया तो तभी यह भी तय कर लिया गया कि इस बार पार्टी अपना चुनाव अभियान दक्षिण से ही शुरू करेगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनावों की तारीखें घोषित होने के काफी पहले कई चुनावी सभाएं तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना तथा कर्नाटक में कर चुके थे। चूँकि उत्तर भारत में बीजेपी अधिकतम सीटें पा चुकी है इसलिए उसे 400 आंकड़ा पाने के लिए दक्षिण से अधिक से जीतनी होगी।
पिछले साल कर्नाटक के विधान सभा चुनावों में कर्नाटक में अधिकांश सीटों पर कांग्रेस, बीजेपी और जनता दल (स) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था। कांग्रेस कुल 225 में से 135 जीतने में सफल रही। जनता दल (स) को इन चुनावों में भारी नुकसान हुआ। इसका वोट बैंक 12 प्रतिशत से घट कर 7 प्रतिशत रह गया। बीजेपी का मानना है कि अगर कांग्रेस और बीजेपी में सीधा मुकाबला होता तो वह एक बार फिर सत्ता आती। इन लोकसभा के चुनावों में बीजेपी और जनता दल (स) मिलकर चुनाव लड़ रहें है। इसलिए इन दोनों दलों के नेताओं का दावा है कि वे राज्य की सभी 28 जीतने में सफल रहेंगे।
तमिलनाडु में बीजेपी ने पिछला चुनाव अन्नाद्रमुक के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। उधर द्रमुक और कांग्रेस में गठबंधन था। द्रमुक गठबंधन सभी सीटें जीतने में सफल रहा। इस बार बीजेपी दो छोटे दलों पी एम् एल तथा तमिल मनिला कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। इन गठबंधन के नेताओ को भरोसा है कि वे कम से कम एक दर्जन सीटें जीतने सफल रहेंगे। तेलंगाना में बीजेपी पांच साल बाद तेलगुदेशम पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। राज्य में हाल ही में कांग्रेस सत्ता में आई है। लेकिन फिर भी बीजेपी के नेताओं का दावा है कि उनका गठबंधन 17 में से कम से कम आधी सीटें जीतने सफल रहेगा।
कर्नाटक में क्षेत्रीय दल वाईआरएस कांग्रेस पार्टी सत्ता में है, इसके पास कुल 25 लोकसभा सीटों में से 22 सीटें है। राज्य में सरकार विरोधी हवा चलने का दावा किया जा रहा है। इसलिए बीजेपी को पूर्व भरोसा है पार्टी यहाँ कई सीटों पर जीतेगी। यहाँ अधिकाश सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले है।
केरल में कांग्रेस नीत मोर्चे तथा वाम मोर्चे के बीच सीधी टक्कर है। लेकिन बीजेपी को यह भरोसा है वह यहाँ पहली बार अपना खाता खोलने में सफल रहेगी। बीजेपी का लक्ष्य 150 में 50 अधिक सीटें जीतने का है। पार्टी यह लक्ष्य पा सकेगी या नहीं यह तो पता नहीं। लेकिन यह तय है कि इस बार दक्षिण से पार्टी को पहले से काफी अधिक सीटें मिलेंगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)