सांभर पर्यटन नगरी होने के बवजूद मूलभूत सुविधाओं को भी तरस रहा है

सांभर में इंडस्ट्रीज नहीं होने से रोजगार का संकट, दो दशक में 10000 से अधिक लोग कर चुके हैं पलायन

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के सांभर उपखंड मुख्यालय पर इंडस्ट्रीज स्थापित करने व  निजी नमक उत्पादन की परमीशन दिलवाकर सुलभ रोजगार उपलब्ध करवाने की दिशा  में बीते 70 वर्षों में जितनी भी सरकारें आई उनकी ओर से अनदेखी ही की गई है। जानकारी में आया है कि रोजगार के लिए विगत दो दशक में 2000 से अधिक परिवार यानी करीब 10000 से अधिक लोग सांभर छोड़कर अन्यत्र पलायन कर चुके हैं। सांभर सहित आसपास के करीब 2000 से अधिक लोग जयपुर-अजमेर अथवा अन्य स्थानों पर अप-डाउन कर बमुश्किल परिवार चला रहे हैं। बताया जा रहा है कि मीठे पानी की कमी से सांभर इंडस्ट्रीज नहीं लग पा रही है इसके लिए कोई विकल्प नहीं खोजा जा रहा है। जयपुर जिले में नमक उत्पादन के लिए राज्य सरकार की पाबंदी भी इसमें रोडा बनी हुई है। जबकि भारत सरकार का उपक्रम सांभर सांभर साल्ट लिमिटेड खुद नमक उत्पादन कर भारी मुनाफा कमा रहा है। 

यहां से करीब 30 किलोमीटर नागौर जिले के नावा में प्राइवेट लोगों को नमक उत्पादन की परमिशन है, गुढा, नावा, जाप्तीनगर क्षेत्र में करीब 25000 से अधिक लोग प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इस नमक उत्पादन के रोजगार से जुड़े हुए है। नमक संगठन के अध्यक्ष व नागरिक विकास समिति के कार्यकारी अध्यक्ष अनिल कुमार गट्टानी बताते हैं कि यदि सांभर में नमक उत्पादन की परमिशन होती तो हजारों लोगों को हर तरह का रोजगार उपलब्ध होता। यहां का व्यापारिक क्षेत्र गर्त में नहीं जाता। सांभर में पलायन की जो स्थिति बनी है और लगातार जारी है उसके पीछे मोटा कारण रोजगार का ही अभाव है। सांभर के अस्तित्व व लोगों के पलायन को रोकने के लिए जरूरी है कि राज्य सरकार और भारत सरकार मिलकर जयपुर जिले में नमक उत्पादन की परमिशन के रास्ते खोले, गट्टानी कहते हैं कि इसके लिए समय-समय पर हमारी ओर से सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाया गया लेकिन  कुछ भी नहीं हुआ। 

लोगों का कहना है कि सांभर के विकास के लिए क्षेत्रीय विधायकों की कमजोरी फुलेरा विधानसभा क्षेत्र के लिए दुर्भाग्य साबित हुई है।  उद्योग धंधों के अभाव के कारण सैकड़ों गरीब परिवारों की महिलाएं वर्तमान में भी गुढा, नावा, राजास आदि क्षेत्रों में नमक का काम करने के लिए भोर होते ही घर से निकल जाती है। इतना ही नहीं सांभर को पर्यटन नगरी का दर्जा तो मिला लेकिन पर्यटन जैसा यहां माहौल बनाने में जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संस्थाओं की भूमिका भी शून्य ही रही। विभाग की वेबसाइट पर भी यहां के धार्मिक तीर्थ स्थलों, लवणीय झील में विचरण करते खूबसूरत पक्षियों की तस्वीरें, प्राचीन इमारतों के फोटो सांभर के इतिहास को भली-भांति से दर्शित तो करते हैं लेकिन धरातल पर सब कुछ उल्टा-पुल्टा है। यहां तक की चिकित्सा क्षेत्र की सुविधाएं उप जिला स्तर की अभी तक उपलब्ध नहीं हो पा रही है। 

सांभर से अजमेर व सांभर से सीकर के अलावा शाकंभरी माता मंदिर जाने के लिए राजस्थान रोडवेज की तरफ से बसें उपलब्ध नहीं है, एक दो बस के अलावा आने-जाने का कोई साधन नहीं है जो पूरी तरह से अपर्याप्त है। उपखंड मुख्यालय पर सफाई की व्यवस्था ऐसी कि बाहर से कोई देशी विदेशी आ जाए तो देखकर के सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि क्या मैं वाकई में पर्यटन नगरी में आ गया हूं। इसके अलावा एजुकेशन में भी सांभर उपखंड मुख्यालय पर कॉलेज के बाद दूसरा कोई विकल्प नहीं है। लिहाजा यहां के हजारों अभिभावक अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए उन्हें जयपुर, अजमेर अथवा अन्य जगहों पर भेजने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। रेल मार्ग से सांभर से जयपुर व जयपुर से सांभर के लिए कुछ ट्रेनों के ठहराव की सुविधा अभी तक नहीं हो पाना सैकड़ों मुसाफिरों के लिए दुखदाई बना हुआ है। भूमिगत विद्युत लाईन का कार्य पेंडिग है। सीवरेज लाइन के लिए कोई खाका तैयार नहीं किया गया है। अनदेखी के कारण एशिया का सबसे बड़ा सोलर प्लांट हाथ से निकल गया। यहां पर सड़कों की हालत खस्ता है। यहां के चुने हुए जनप्रतिनिधि अपनी भूमिका सही प्रकार से अदा नहीं कर रहे हैं। विकास करवाने की दिशा में यहां का व्यापारिक संगठन भी सुस्त पड़ा है।