कर्नाटक में मंदिरों की आय पर करों का विवाद
लेखक : लोकपाल सेठी

बरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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हाल ही में राज्य में सरकारी अनुदान पाने वाले मंदिरों की आय पर लगाये और बढ़ाये जाने का जो कर लगाया गया था उस विवाद और भी गहरा गया है।    इसका कारण यह है कि कर्नाटक के राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने उस विधेयक पर अपनी सहमति देने से इंकार दिया जिसमें सरकारी अनुदान पाने वाले मंदिरों की आय पर  कर राशि में इजाफा कर दिया गया था। यह  विधेयक राज्य विधान मंडल दवारा अपने बजट सत्र में पारित किया था। राज्य सरकार  ने  विधान मंडल दवारा कर्नाटक हिंदू धार्मिक संस्थान एवं धर्मार्थ  बंदोबस्ती (संशोधन) विधयेक राज्यपाल को उनकी सहमति के लिए भेजा था। सरकार को यह आशा थी कि सामान्य तरीके से राज्यपाल इस पर अनुमति दे देंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मार्च के अंत में राज्यपाल ने विधेयक पर कुछ आपत्तियां जातते हुए सरकार को लौटा दिया। राज्यपाल ने विधेयक के दो मुद्दों पर सरकार से अपना रुख साफ़ करने के लिए कहा है। इनमें से एक मुद्दा कानूनी-संवैधानिक है।  दूसरा यह था है कि यह कानून केवल हिंदू धार्मिक संस्थाओं के लिए ही क्यों बनाया गया अन्य धर्मों के धार्मिक स्थलों को इससे क्यों बहार रखा गया है।            

राज्य सरकार का कहना है कि राज्यपाल की टिप्पणियों और आपत्तियों का निराकरण करने के बाद यह विधेयक फिर राज्यपाल की सहमति के लिए भेजा जायेगा। राज्य के उप मुख्यामंत्रो डी. के. शिवकुमार ने कहा है कि विधेयक फिर विधान मंडल में पेश किया जायेगा और पारित होने के बाद राज्यपाल के  सहमति लिए फिर भेजा जायेगा। 

राज्य में लगभग 34,000 ऐसे हिंदू मंदिर है जिन्हें राज्य सरकार से वार्षिक अनुदान मिलता है। 2024-25 में मंदिरों को दिए जाने वाले अनुदान की राशि 170 करोड़ रूपये है। इन मंदिरों  में कुल 4,0000 पुजारी और अन्य कर्मचारी है इन मंदिरों  को आय के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी में वे मदिर हैं जिनकी वार्षिक आय 10 लाख से कम दूसरी श्रेणी में 10 लाख से एक करोड़ रूपये आय वाले मंदिर आते है। तीसरी श्रेणी इससे अधिक आय वाले मंदिरों की है। राज्य में कुल 87 ऐसे मंदिर हैं जिनकी वार्षिक आय एक करोड़ से अधिक हैं इन मंदिरों को आय के अनुपात में अनुदान दिया जाता है। 

लगभग देश दशक पूर्व तत्कालीन सरकार ने इन मंदिरों की आय पर 5 प्रतिशत कर लगा दिया था। इस कर पर कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ की पीठ ने रोक लगा थी। राज्य सरकार ने इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। न्यायलय ने इस रोक हटा दिया। पर अभी भी इस मामले पर सुनवाई चल रही है जो अब अंतिम चरण में है। 

राज्य सरकार ने जो संशोधन विधेयक राज्य विधान सभा में पेश किया उसमें 10 लाख से एक करोड़ की आय वाले मंदिरों पर 5 प्रतिशत कर लगेगा जबकि इससे अधिक आय वाले मन्दिरों  पर यह कर अब 10 प्रतिशत होगा। विधेयक पेश करते हुए सरकार ने कहा कि कर से मिलने वाली राशि से छोटे और कम आय वाले मंदिरों की सहायता की जायेगी। इन करों से होने वाली आय कर्नाटक धार्मिक परिषद् के खाते जाएगी जो इस धन का प्रबन्धन करेगी। जब यह  विधेयक सदन में पेश किया गया तो प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी ने इसका कड़ा विरोध किया था। इसके नेताओं का कहना था कि मंदिरों की आय पर कर लगाने की बजाये सरकार मंदिरों को दिए जाने वाले अनुदान को बढ़ा दे। 

विधेयक को लौटे हुए राज्यपाल ने कहा है कि चूँकि कर लगाने वाला मूल विधेयक ही अभी सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है इसलिए सरकार इसमें संशोधन का कानून कैसे बना सकती है। सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के इंतजार करना चाहिए। राज्यपाल ने सरकार से यह पूछा है ऐसा कानून केवल हिन्दू मंदिरों के लिए ही क्यों बनाया गया है। चर्चों और मस्जिदों को भी इसी तरह के कानून के अंतर्गत क्यों नहीं लाने के बारे में सोचा गया। उन्होंने यह  भी जानना चाहा है कि इस प्रकार का धार्मिक भेदभाव क्यों किया गया। 

जब यह विधेयक विधान मंडल में लाया गया तो हिंदू मठों के मुखियाओं ने इसका विरोध किया था। कुछ हिन्दू संगठनों ने सरकार को इस बारे में ज्ञापन दिए  भी दिए थे। उधर बीजेपी मंदिरों  की आय पर कर लगाने के सरकार के निर्णय को लोकसभा चुनावों में एक बड़ा मुद्दा बनाने में लगी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)