बासी खिचड़ी और हाथी का गू : रमेश जोशी
लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

सम्पर्क : 94601 55700 

www.daylife.page 

आज चाय पीने के बाद तोताराम ने थोड़ा जोर से आवाज लगाई- आदरणीया भाभीजी, संतुष्टि नहीं हुई। 

हमने कहा- सरकारें अपनी गारंटी और डबल इंजन के प्रचार में रोज अखबारों के पहले पेज में विज्ञापन दें लेकिन सब जानते हैं कि ये कैसी गारंटी हैं और इनसे किसे और कितना लाभ हो रहा है। लेकिन हम बिना किसी चुनावी लाभ और गारंटी का ढिंढोरा पीटे तुझे रोज चाय पिलाते आ रहे हैं फिर भी तेरी आत्मा को संतुष्टि नहीं हुई जो ‘आदरणीया भाभीजी’ की गुहार लगा रहा है। याद रख, मनुष्य का स्वभाव ही है कि वह कभी संतुष्ट नहीं होता। और ब्राह्मणों के लिए तो कहा गया है- असंतुष्टा द्विजा नष्टा। तभी कहा गया है- जब आवै संतोष धन सब धन धूरि समान। 

तभी पत्नी कटोरी में कुछ लाई और बोली- लाला, अभी और कुछ संभव नहीं है। यह थोड़ी सी खिचड़ी है, इसी से संतुष्टि प्राप्त करो। 

तोताराम ने अजीब सा मुंह बनाकर कहा- भाभी, लगता है यह मास्टर बहुत  घुन्ना और रहस्यमय व्यक्ति है। कहीं किसी निजी प्लेन से रात रात में जामनगर होकर आ गया और किसीको पता भी नहीं चला। 

पत्नी ने कहा- लाला, लगता है तुम्हारा दिमाग चल गया है। कहाँ का निजी प्लेन? खिचड़ी का जामनगर से क्या संबंध?   

बोला- अकबर के जमाने में बीरबल की खिचड़ी नहीं पकी और आज भी जनता की दाल नहीं गल रही है। 80 करोड़ लोग केवल पाँच किलो अनाज के लिए भिखमंगों की तरह लाइन लगाते हैं लेकिन जामनगर में हाथियों के लिए खिचड़ी पक रही है, दाल भी अच्छी तरह गल रही है । एक करोड़पति एंकर ने तो प्याला भरकर खिचड़ी खाते हुए फैसला दे दिया कि उसने ऐसी स्वादिष्ट खिचड़ी पहली बार खाई है। लगता है मास्टर भी वहीं से खिचड़ी कबाड़ लाया है। यह भी तो खुद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का पत्रकार समझता है।

अगर यह जामनगर वाले अनंत अंबानी के निजी ज़ू ‘वनतारा’ में हाथियों को खिलाई जाने वाली खिचड़ी नहीं है क्या आपके पालतू बिल्ले ‘फाल्गुन’ और पालतू कुतिया ‘कूरो’ के लिया बनाई थी?

हमने कहा- वैसे ये दोनों ही खिचड़ी नहीं खाते फिर भी ऐसा नहीं है कि हम इनके लिए कोई अलग तरह की रोटियाँ बनाते हैं। वही आटा, वही सब कुछ। हाँ, जानवरों की रोटी चुपड़ना ठीक नहीं होता इसलिए घी नहीं लगाते। 

हो सकता है ‘वनतारा’  वाली खिचड़ी में पतंजलि  का घी रहा हो इसलिए एंकर ने तो खा ली लेकिन अनंत ने डाइटिंग के चलते नहीं खाई। तू तो खाले। तू तो 40 किलो का है। अच्छा है, देह यष्टि थोड़ा गदरा जाएगी तो पर्सनेलिटी बन जाएगी। 

बोला-तेरी यह भुक्कड़ वाली खिचड़ी खाकर क्या धर्म बिगाड़ना? कहा भी है- गू ही खाना पड़े हाथी का तो खाओ। सो खिचड़ी ही खाएंगे तो अंबानी वाली खाएंगे। 

हमने कहा- हाथी के मल को गू मत बोल। वैसे घोड़े, गधे और हाथी के मल को लीद कहते हैं लेकिन चूंकि हाथी गणेश का प्रतीक होता है तो उसे कम से कम गोबर जितना पवित्र दर्जा तो दिया ही जाना चाहिए। यदि तेरी अनुप्रास में निष्ठा है तो इसे ‘गजविष्ठा’ कह सकता है। 

बोला- तू माने या न माने लेकिन गू तो गू ही होता है, चाहे सूअर का हो या विष्णु भगवान का। 

हमने कहा- नहीं, ऐसा नहीं होता। व्हेल की उल्टी लाखों रुपए किलो में बिकती है। हाथी के निगलने के बाद कॉफी के जो बीज मल के साथ बाहर आते हैं उनसे बनी कॉफी दुनिया की सबसे महंगी कॉफी होती है। आजकल तो पाद भी बिकता है। सुनते हैं विकसित देशों में कुछ सुंदरियाँ गैस सिलेंडर की तरह शीशी में भरकर अपना पाद बेचकर लाखों रुपए कमाती हैं। कल का प्रवचन इसी पर होगा। फिलहाल इतना समझ ले कि वस्तु का कोई मूल्य नहीं होता उससे जुड़े संदर्भों का होता है। मोदी जी के 15 लाख के सूट को गुजरात के एक व्यापारी ने 4 करोड़ में खरीदा था। एक फुटबॉल खिलाड़ी के पुराने जूते भी लाखों में बिके थे।  

बोला- हजारों व्यापारियों ने करोड़ों रुपए के चुनावी बॉन्ड क्या किसी महान राजनीतिक दर्शन से प्रभावित होकर खरीदे हैं? सब साहब को खुश करके दस-बीस गुना कमाने के लिए खरीदे हैं। तू कुछ भी कह लेकिन मीडिया की तरह मेरे इतने बुरे दिन भी नहीं आए हैं कि तेरी रात की बासी खिचड़ी खाऊँ और न ही इतना गया गुजरा हूँ कि किसी पद या सम्मान के लिए किसी विष्णु के अवतारी के पीछे बैठकर उसका पाद सूँघूँ। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपनी व्यंग्यात्मक भाषा शैली है)