लघु कथा : नकाब : नवीन जैन

लघु कथा : नकाब


सांकेतिक फोटो
लेखक : नवीन जैन

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार 

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रात ढली नहीं थी अभी। बस मुंबई की तरफ जा रही थी।बीच शहर नासिक में यात्रियों को उतारने के लिए बस रुकी। बस चूंकि नॉन एसी थी, इसलिए कुछ अन्य यात्री भी नीचे उतरे। सोचा कुछ फ्रेश हवा ले ली जाए वैसे भी नासिक अपनी बारह मासी अच्छी आबोहवा के लिए देशभर में जाना जाता है। एक युवक भी उतरने वालों में था। दो_तीन मिनट बाद बुर्का पहने एक युवती भी उतरी। वो काफी परेशान दिख रही थी। उसके चेहरे पर डर के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। युवक, समझ तो गया कुछ गडबड, तो जरूर है, लेकिन वो चुप ही रहा। इतने में उस युवती ने ही खुद पूछ लिया_यहां कहीं लेडीज बाथरूम है क्या? उस युवती के चेहरे से झलक रहा था, कि वह कितनी जल्दी में है, लेकिन घुप्प अंधेरे में बहुत डरी हुई भी है। युवक ने आहिस्ता से जवाब दिया_मोहतरमा, यहां  बाथरूम, तो है नहीं। एक काम कीजिए_वो जो ट्रक खड़े हैं, उनके साए में चले जाइए। मैं खड़ा हूं यहां। युवती ने कहा_रहने दीजिए, मगर वो बस पर चढ़ने की बजाय फिर आई। पूछा_किस तरफ जाना होगा मुझे? युवक ने कहा_आइए मेरे पीछे। आगे देखा, तो तीन_चार बंदे शायद चिलम फूंक रहे थे। युवक ने कड़कती आवाज़ में कहा_उठिए आप लोग यहां से कुछ देर के लिए। वो, बंदे समझे इतने सहमे कि इधर_उधर हो गए। युवक ने युवती से कहा_जाइए अब आराम से। डरने की कोई बात नहीं है। मैं, खड़ा हूं यहां। थोड़ी देर बाद युवती लौट आई। उसने कोशिश की कि वो चुपचाप बस में बैठ जाए, लेकिन उसके चेहरे पर एक अजीब_सी मुस्कान आ ही गई। उसने युवक से सिर्फ इतना पूछा_आप भी मुंबई जा रहे हैं क्या? युवक ने कहा_हां जी।

जब मुंबई का एक उप नगरीय ठिकाना सायन आया, तो खिड़की में से युवती उस युवक को अपना लगेज उतारते हुए एकटक देखती रही। इस बीच उसने खिड़की का पर्दा पूरा हटा दिया। युवक भी कुछ-कुछ समझ गया था, लेकिन चुपचाप एक टैक्सी में बैठा और जाने लगा। युवक जब तक नजरों से दूर नहीं होता गया, युवती उसे  किसी अनजानी आस में टकटकी बांधे घूरती रही। आखिर में तो उसने चेहरे से नकाब भी हटा लिया था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)