जकासा एवं साहित्य सृजन संस्था की काव्य गोष्ठी सम्पन्न

सुनील जैन की रिपोर्ट 

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जयपुर।

फिर धरा पर आ गया ऋतु राज देखो,

किन्तु साजन लौटकर तुम आ न पाए। 

चढ़ गयी है प्रेम धन पर ब्याज देखो,

बिन तुम्हारे कौन इस ऋण को चुकाए। - जगदीश मोहन रावत 

जकासा एवं समरस साहित्य सृजन संस्थान(जयपुर इकाई) की 13वी काव्य गोष्ठी वरिष्ठ कवि जगदीश मोहन रावत की अध्यक्षता एवं श्रीमती वीना रावत जी के मुख्य आतिथ्य में काव्य साधक स्टूडियो में  रितेश शर्मा 'पथिक' की ढूँढाड़ी में सरस्वती वंदना - "हिवड़ै आँगणिये में हुई है हिलोर, पधारों मायड़ सरस्वती" जैसे मधुर शब्दों के साथ प्रारम्भ हुई।  डाँ. संजय गौड़ ने प्रेम गीत सुनाकर हास्य बिखेरा-"तेरी राहों में सर झुका दूं मैं, तुझको अपना सनम बनालूँ मैं। हो इशारा, तो कोई बात बने।  वही समरस के अध्यक्ष लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला ने शहरों में लगते जाम पर चिंता व्यक्त करते गीत सुनाया - फँसी जाम में सड़कें सारी, बेबस सारे महानगर। घर जाने में घण्टों लगते, दुर्घटना का लगता डर ।। छात्र घूमते रात-रात भर, नहीं काल से वे डरते। गली-गली में आवारा से, कुत्ते घूमें खूब निडर।

जकासा के संस्थापक किशोर पारीक 'किशोर' ने फाल्गुनी दोहे और फाल्गुनी मस्ती का गीत-"देह ने तटबन्ध सारे तोड़ डाले, दोष सारा फाल्गुनी मौसम का प्रियतम" सुनाकर फाल्गुणी माहौल को और गरमा दिया । इससे पहले गोप कुमार मिश्र ने "दाल जली तौ बिगडे तेवर। दिलहूँ लैगे, लैगे जेवर .बेचिन जाय दुकनियाँ, बलमा ठहरे बनिया। और -

"रंग को थाल, संग ले ग्वाल, नंद के लाल आज बरसाने आयो री,सुनो राधा मन भायो री।" सुनाकर भाव विभोर कर दिया। संजय फौजदार ने व्यथा बताते कहा कि - 'आज अनीति बहुत पैर पसार रही है धरती पर, अब बुलडोजर अस्त्र का होना बहुत जरूरी है। प्रहलाद कुमावत 'चंचल'- "भारत पूछत आज सखी' एवं बेमेल विवाह से आत्महत्या पर "आटा-साटा"  मार्मिक गीत सुनाया। डाँ.सत्यनारायण शर्मा ने राजनीति पर प्रहार करते लंबा गीत सुनाया -"अवधपुरी में राम लला का मंदिर भव्य बनाया, कैसे लड़ूं अर्जुन से, भीम बलवान से।" रितेश कुमार 'पथिक' ने - "सुदामा कृष्ण के जैसा कहाँ अब मित्र मिलता है,  मुक्तक के साथ-तीखो तीखो नैना में काजल घालै, नैना सूं बलमा' मार डालेगी, धन्ना सेठ री चालैगी चवन्नी, या छौरा की उधार चालैगी। सुनकर हँसी का माहौल बनाया। बाल कवि मेहुल पारीक और वंश ने भी रचना सुनाकर सबका आशीर्वाद लिया।

वैद्य भगवान सहाय पारीक ने ढूँढाड़ी में गीत सुनाया तो वरिष्ठ कवि वरुण चतुर्वेदी ने मुक्तक से आगाज करते हुए सरस भावों का गीत-जुबना चड्यो हवेली गोरी हो गई पहेली। सिगरो तन बगिया सो महकै, मन मतवारो इत-उत बहकै। सुनाकर खूब दाद पायी। वाणी धामाणी ने -ईश्वर ने हमे दिया प्रकृति का उपहार, पर हमने उसकी एक न मानी। रचना सुनाई वही हरिसिंह बानावट ने सुराणा का मटका नाम से रचना सुनाई।

मुख्य अतिथि श्रीमती वीणा रावत ने फाल्गुन का- "रंग दियो डार यशोदा तेरे लाला ने" सर गीत सुनाकर सब का मन मोह लिया। अंत में श्रीमती सुनीता पारीक ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। गोष्ठी का सुंदर सञ्चालन वैद्य भगवान सहाय पारीक ने किया।