राष्ट्रीय पटल पर मल्लिकार्जुन खरगे का बढ़ता कद
लेखक :  लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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लगभग डेढ़ दशक पूर्व तक कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम राष्ट्रीय स्तर पर कहीं भी कहीं भी नज़र नहीं आता था। उनकी राजनीति केवल दक्षिण के कर्नाटक तक ही सीमित थी। बाद वे पहले केंद्र में श्रम मंत्री और बाद में रेल मंत्री बने, लेकिन फिर भी उनका स्थान केंद्रीय राजनीति में कही नहीं था। लेकिन राजनीति के इस मंझे हुए खिलाडी ने अपनी राजनीतिक गोटियों को ऐसे आगे बढाया कि आज वे देश के बड़े नेताओं में से एक है। वे न केवल कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष है बल्कि राज्य सभा में कांग्रेस पार्टी के नेता भी हैं। उनका बढ़ता कद यही तक नहीं थमा बल्कि वे अब विपक्षी गठबंधन इंडिया के अध्यक्ष पर भी पहुँच गए है। वे इस समय  कांग्रेस और इंडिया के दलित चेहरा है। इंडिया अब उन्ही के नेतृत्व में बीजेपी को लोकसभा के चुनावों में चुनौती   देगी। अगर इंडिया सत्ता में आने में सफल रहता है तो दक्षिण के ये 81 वर्षीय नेता प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार होंगे। 

अगर उनकी राजनीतिक यात्रा पर नज़र डाली जाये तो उन्होंने अपनी राजनीति पंचायत के चुनाव लड़ने से शुरू की थी। फिर कलबुर्गी जिले के राजनीति में सक्रिय रहे। वे 8 बार विधायक रह चुके हैं तथा राज्य के 6 कांग्रेस मंत्रिमंडलों में मंत्री भी रहे है। वे जितने राजनीति में सक्रिय उतने ही सामाजिक तौर में भी काम कर रहे है। उन्होंने बहुत पहले ही बौद्ध धर्म अपना लिया था तथा राज्य में कई बौद्ध संस्थान स्थापित किये। कई शैक्षणिक संस्थाए भी शुरू की। उनका कद राज्य की और कांग्रेस की राजनीति में तब बढ़ा जब 2005 में उन्हें प्रदेश कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 

इसी समय वे गाँधी परिवार के निकट होते चले गए। राज्य की और कांग्रेस की राजनीति में कम से कम तीन मौके ऐसे आये जब वे मुख्यमंत्री बनते बनते रहे गए। इसके बाद उन्होंने पार्टी में केन्द्रीय स्तर पर अपने कदम बढ़ाने शुरू किये। उन्होंने 2009 पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। उन्हें मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली दूसरी   कांग्रेस नीत सरकार में श्रम मंत्री बनाया गया। 2013 में जब कर्नाटक में कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में बहुमत मिला तो उनका नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में   बहुत आगे था। लेकिन पार्टी ने मुख्यमंत्री का पद सिद्धारामिया को देने का निर्णय किया। पर पार्टी में उनकी वरीयता को देखते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में रेल मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण पद दिया गया। 

2014 में केंद्र में बीजेपी नीत एनडीए की सरकार बनी और कांग्रेस पार्टी को मात्र 44 सीटें पर संतोष करना पड़ा.  लोकसभा में  कांग्रेस पार्टी को अधिकारिक विपक्षी दल का दर्ज़ा भी नहीं मिला। उस समय जब पार्टी के लोकसभा में नेता की तलाश शुरू हुई तो कई नाम  सामने आये। लेकिन आखिर में खरगे को यह पद देने का निर्णय हुआ। इसके एक से अधिक कारण थे। एक तो वे पार्टी में काफी वरीय स्तर पर थे। दूसरे   वे हिंदी सहित आधी दर्ज़न भाषाएँ बोल सकते थे। तीसरा वे दक्षिण से आते थे। पर जब वे 2019 का चुनाव हार गए तो ऐसा लगा कि राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद अब आगे नहीं बढेगा। लेकिन तब गाँधी परिवार ने उन पर अपना भरोसा जताया। उन्हें ने केवल राज्यसभा में लाया गया बल्कि सदन में पार्टी का नेता भी बनाया गया। इसके चलते वे विपक्ष के नेता भी बन गए। 

पिछले साल के शुरू में जब कांग्रेस पार्टी के शीर्ष स्थल पर संगठनात्मक स्तर चुनाव हुए तो उनकी क्सिमत एक बार और खुल गई। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष  के लिए गाँधी परिवार ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आगे  बढ़ाया। पर उनका कहना था कि पार्टी के अध्यक्ष पर रहते हुए भी उनको मुख्यमंत्री रहने दिया जाये। लेकिन गहलोत की यह बात न तो कांग्रेस हाई कमान को मान्य थी और न ही गाँधी परिवार को। अध्यक्ष पद का मामला काफी दिन अटका रहा आखिर में यह तय हुआ कि पार्टी के अध्यक्ष के रूप में खरगे को ही आगे बढ़ाया।  2

4 साल बाद पार्टी में बाकायदा चुनाव हुए और खरगे ने इन चुनावों शशि थरूर को पराजित किया। अध्यक्ष चुने जाने के बाद भी उन्हें राज्य सभा में पार्टी का नेता रहने दिया गया। जब विपक्षी संगठन इंडिया बना तो उन्होंने इसके लिए बड़ी भूमिका निभाई। लगभग 6 महीने की लम्बी उहापोह के बाद संगठन के सभी दल इस बात पर सहमत हुए कि अध्यक्ष पद के लिए खरगे ही सबसे उपयुक्त व्यक्ति है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)